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पाइअसहमहण्णवो
अक्खिजंत-अखादिम अक्खिजंत देखो अक्खा = आ + ख्या। अक्खित्त वि [आक्षिप्त] सब तरह से प्रेरित (सिरि ३६६)। अक्खित्त वि [आक्षिप्त] १ व्याकुल । २ जिस पर टीका की गई हो वह । ३ आकृष्ट, खींचा हुआ (सुर ३,११५)। ४ सामर्थ्य से लिया हुआ (से ४, ३१)। अक्खित्त न [अक्षेत्र मर्यादित क्षेत्र के बाहर का प्रदेश (निचू १)। अक्खिा सक [आ + क्षि ] १ आक्षेप करना, टीका करना, दोषारोप करना । २ रोकना । ३ गॅवाना। ४ व्याकुल करना । ५ फेंकना । ६ स्वीकार करना, 'अक्खिवइ परिसगारं' (उवर ४६)। हेकृ. अक्खिविउं (निर १, १); 'तो न जुत्तमिह कालम्
अक्खिविउं' (स २०५; पि ५७७)। कर्म. 'अक्खिप्पइ य मे वाणी' (स २३; प्रामा)। अक्खिव सक [आ+क्षिप्] आक्रोश करना। अखिवंति (सिरि ८३१)। अक्खिवण न [आक्षेपण व्याकुलता, घबराहट (पण्ह १, ३)। अक्खीण वि [अक्षीण] १ ह्रास-शून्य, क्षयरहित, अखूट (कप्प)। २ परिपूर्ण, संपूर्ण (कुमा)। महाणसिय वि [ महानसिक] जिसको निम्नोक्त प्रक्षीण महानसी शक्ति प्राप्त हुई हो वह (पएह २, १) महाणसी स्त्री [महानसी] वह अद्भुत आत्मिक शक्ति जिससे थोड़ा भी भिक्षान्न दूसरे सैकड़ों लोगों को यावत्-तृप्ति खिलाने पर भी तबतक कम न हो, जबतक भिक्षान्न लानेवाला स्वयं उसे न खाय (पव २७०)। महालय वि[ महालय जिससे थोड़ी जगह में भी बहुत लोगों का समावेश हो सके ऐसी अद्भुत आत्मिक शक्ति से युक्त (गच्छ २)। अक्खुअ वि [अझत] अक्षीण, त्रुटि-शून्य 'अक्खुमायारचरित्ता' (पडि)। अक्खुडिअ वि [अखण्डित संपूर्ण, अखण्ड, त्रुटिरहित; 'अक्खुडिओ पखुडियो छिक्कतोवि सबालबुड्ढजणो' (सुपा११६)। अक्खुण्ण वि [अक्षुण्ण] जो टूटा हुआ न हो, अविच्छिन्न (बृह १)।
अक्खुद्द वि [अक्षुद्र] १ गंभीर, अतुच्छ | अक्खोड पुं[आस्फोट प्रतिलेखन की क्रिया(दव्व ५) । २ दयालु, करुण (संचा२)। ३ | विशेष (पव २)।
उदार (पंचा ७)। ४ सूक्ष्म बुद्धिवाला अक्खोडिय बि [कृष्ट] खींचा हुआ, बाहर (धर्म २)।
निकला हुआ (खड्ग) (कुमा)। अक्खुद्द न [अक्षौद्रय] क्षुद्रता का अभाव
अश्वोभ पु[अक्षोभ १ क्षोभ का (उप ६१५)।
अक्खोह प्रभाव, घबराहट का अभाव अक्खुपुरी स्त्री [अक्षपुरी] नगरी-विशेष र (गाया १,६)। २ यदुवंश के राजा (गया २)।
अन्धकवृष्णि का एक पुत्र, जो भगवान् नेमिअक्खुम्भमाण वि [अक्षुभ्यमान] जो क्षोभ ! नाथ के पास दीक्षा लेकर शत्रुजय पर मोक्ष को प्राप्त न होता हो (उप पृ ६२)। गया था (अंत १,७)। ३ न. 'अन्तकृद्दशा' अक्खुभिय देखो अक्खुहिय (एंदि ४६)। सूत्र का एक अध्ययन (अंत १,७)। ४ वि. अक्खुहिय वि [अक्षुभित] क्षोभरहित, क्षोभरहित, अचल, स्थिर (पराह २,५: कुमा)। अक्षुब्ध (सरग)।
अक्खोहणिज वि [अक्षोभणोय] जो क्षुब्ध अक्खूग सि [अक्षुग] अन्यून, परिपूर्ण न किया जा सके (सुपा ११४ )। 'भोयरणवत्थाहरणं संपायंतेण सबमक्खूणं' ।
अक्खोहिणी स्त्री [अक्षौहिणी] एक बड़ी (उप ७२८ टी)।
सेना, जिसमें २१८७० हाथी, २१८७० अक्खेअ देखो अक्खा = आ + ख्या ।
रथ, ६५६१० घोड़े और १०९३५० पैदल अक्खेव पुं[अ+क्षेप] शीघ्रता, जल्दी (सुपा
होते हैं (पउम ५५, ७; ११)। १२६)।
अखंड वि [अखण्ड ] परिपूर्ण, खण्डरहित अक्खेव पुं [आक्षेप] १ आकर्षण, खोंच कर
(प्रौप)। लाना (पण्ह १, ३)। २ सामर्थ्य, अर्थ की संगति के लिए अनुक्त अर्थ को बतलाना (उप
अखंडल पुं [आखण्डल] इन्द्र (पउम ४६, १००२)। ३ आशंका, पूर्वपक्ष (भग २, १; विसे १४३६) । ४ उत्पत्ति, 'दइवेण फलक्लेवे
अखंडिय वि [अखण्डित नहीं टूटा हुआ, अइप्पसंगो भवे पयडो' (उबर ४८)। परिपूर्ण (पंचा १८ )। अक्खेवग पुं[आक्षेपक] १ खींचकर लाने- अखंपण वि [दे] स्वच्छ, निर्मल: 'प्रायववाला, अाकर्षक । २ समर्थक पद, अर्थसंगति
त्ताई। धारिति, ठविति पुरो अखम्पणं दप्पणं के लिए अनुक्त अर्थ को बतलानेवाला शब्द
केवि' (सुपा ७४)। (उप ६६६)। ३ सान्निध्यकारक (उबर १८८)। अखज्ज वि [अखाद्य] जो खाने लायक न हो अक्खेवणी स्त्री [आक्षेपणी] श्रोताओं के (णाया १,१६)।
मन को आकर्षण करनेवाली कथा (ौप)। अखत्त न [अमात्र क्षत्रिय-धर्म के विरुद्ध, अक्खेवि वि [आक्षेपिन] आकर्षण करने- जुलुम; 'यंपइ विजाबलियो, वाला, खींचकर लानेवाला (परह १, ३)।
अहह अखत्तं करेइ कोइ इमो अक्खोड सक [कृष् ] म्यान से तलवार को (धम्म ८ टी)।
खोचना, बाहर करना। अक्खोडइ (हे ४,१८७)। अखम देखो अक्खम (कुमा)। अक्खोड सक [आ + स्फोटय् ] थोड़ा या | अखरय पु[दे] भृत्य-विशेष, एक प्रकार का एक बार झटकना । अक्खोडिजा। वकृ. दास (पिंड ३६७)। अक्खोडंत (दस ४)।
अखलिअ देखो अक्खलिय = अस्खलित अक्खोड पुं[अक्षोट] १ अखरोट का पेड़। २ (कुमा)। न. अखरोट वृक्ष का फल (परण १७, सण)। अखादिम वि [अखाद्य खाने के अयोग्य, ३ राजकुल को दी जाती सुवर्ण आदि की भेंट अभक्ष्यः 'कुपहे धावति, अखादिम खादंति' (वव १ टी)।
(कुमा)।
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