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पाइअसहमहण्णवो
विक्खेविया-विगिंच विक्खेविया स्त्री [विक्षेपिका ] व्याक्षेप, विगप्प देखो विअप्प = वि + कल्पय्। वकृ. विगलिंदिय पुं[विकलेन्द्रिय दो, तीन या विक्षेप (वव ६)।
विगप्पयंत, विगप्पमाण (सुर ६, २२४० चार इन्द्रियवाला जन्तु (ठा २, २, ३, १विक्खोड सक [दे] निन्दा करना; गुजराती ३, १२४)।
पत्र १२१)। में 'वखोडवु" । विक्खोडेइ (सिरि ८२५)।
विगप्प पुं[विकल्प] १ एक पक्ष में प्राप्तिः विगम प्रक[वि + कम ] खिलना, फूलना। विखंडिय वि [विखण्डित] खण्डित किया 'चसद्दो विगप्पेण' (पंच ३, ४४)। २
विगसति (तंदु ५३) । वकृ. विगसंत (गाया हुमा (पउम २२, ६२)
१,१-पत्र १६) देखो विअप्प = विकल्प (णाया १,१६विग देखो विअ% वृक (पएह १, १-पत्र
विगह सक [वि + ग्रह ] १ लड़ाई करना। पत्र २१८; सुर ३, १०२, ४, २२२; सुपा ७; सण; णाया १,१-पत्र ६५)।
२ वर्ग-मूल निकालना । ३ समास आदि का १२६ जी २५) । विगइ स्त्री [विकृति] १ विकार-जनक घृत
समानार्थक वाक्य बनाना । संकृ. "भूमो भूत्रो विगप्पण देखो विअप्पण (उत्तर २३, ३२ । आदि वस्तु (णाया १, ८-पत्र १२२
विगज्म मूलतिगं' (पंचा २, १८)। महा) उवः सं ७२, श्रा २०)। २ विकार (उत्त
विगह देखो विग्गह; 'हालदवविवजिए विगह३२,१०१)
विगाप्पअ वि [विकाल्पत १ उत्प्रक्षित, मुके' (गच्छ २, ३३)। विगइ स्त्री [विगति] विनाश (विसे २१४६)
कल्पित (पव २; उव) । २ चिन्तित, विधारित विगहा बी विथा1 शास्त्र-विरुद्ध वार्ता. विगइंगाल वि [विगताङ्गार] राग-रहित ।
(पव १४५) । ३ काटा हुमा, छिन्न; 'हत्थपा
। स्त्री आदि की अनुपयोगी बात (भग; उवः सुर (ओघ ५७६)
यपाडाच्छन्न कन्ननासावगाप्पम वस ८,२६/ १४, ८८; सुपा २५२; गच्छ १,११)IV विगइच्छ वि [विगतेच्छ] इच्छा-रहित, विगम ' [विगम] विनाश (सुर ७, २२६ विगाढ वि [विगाढ] १ विशेष गाढ, अतिशय निःस्पृह (उप १३० टी ६१३)। १२, १६)
निबिड (उत्त १०, ४ टी)। २ चारों ओर से विगंच देखो विगिंच। संकृ. विगंचिउं, विगय वि [विकृत] विकार-प्राप्त (णाया १, | व्याप्त (राज) विगंचिऊण (वव २; संबोध ५७)। २-पत्र ७६; १, ८-पत्र १३३)।
विगाण न [विगान] १ वचनीय, लोकापवाद विर्गचण देखो विगिंचणः 'काए कंडूयणे वजे विगय वि |विगत १ नाश-प्राप्त, विनष्ट
(दे ३, ३)। २ विप्रतिपत्ति, विरोध (धर्मसं तहा खेलविगंचणं' (संबोध ३)।
२६६ चेइय ७५६) (सम्म १३४. विसे ३३७७; पिंड ६१०)।
विगार पु[विकार] विकृति, प्रकृति का अन्यथा विगंचिअ देखो विज्ञचिअ (स १३५ टि)। २ पुं. एक नरक-स्थान (देवेन्द्र २६) धूम
। परिणाम (उप ९८६ टी; विसे १९८८) 10 विगच्छ प्रक [वि + गम् ] नष्ट होना। वि [ धूम] द्वेष-रहित (ोघ ५७६) वकृ. विगच्छंत (सम्म १३४)।
विगारि विविकारिन] विकृत होनेवाला 'सोग [शोक] एक महा-ग्रह, ज्योतिष्क
देव-विशेष (ठा २,३-पत्र ७८), देखो विगझ देखो विगह = वि + ग्रह ।
(पिंड २८०; पउम १०१. ४८) ।। वीअ-सोग सोगा स्त्रो [शोका] विजय- विगाल देखो विआल = विकाल (सुर १, विगड देखो विअग = विकट (पएह १, ४
विशेष की एक नगरी (ठा २, ३–पत्र ८०) पत्र ७८ औप) विगड देखो विअड = विवृत (ठा ३,१टीविगरण न [विकरण] परिष्ठापन, परित्याग
विगालिय वि [विगालित] विलम्बित, प्रती
क्षित; 'एत्तियमेत्तं कालं विमा (?गा)लियं पत्र १२२)। (कस)।
जेण आसाए' (सुर ६. २३)। विगण सक [वि+ गणय ] १ निन्दा विगरह सक [वि + गर्ह ] निन्दा करना। करना। २ घृणा करना। कवक विगणित वक, विगरहमाण (सन २.६.१२) विगाह सक।वि+ गाह । १ अवगाहन
करना । २ प्रवेश करना । संकृ. विगाहिआ (तंदु १४)। विगराल वि [विकराल] भीषण, भयंकर |
(सम ५०) विगत्त सक [वि + कृत् ] काटना, छेदना।। (सुपा १८२:५०५; सण) -
विगिंच सक [वि+विच्] १ पृथक् संकृ. विगत्तिऊणं (सूम १, ५, २, ८) विगल सक[ वि+ गल] टपकना, चूना । करन, अलग करना । २ परित्याग करना । विगत्त वि [विकृत] काटा हुमा, छिन्न विगलइ (षड् )।
३ विनाश करना। विगिचइ, बिगिचए, (पएह १, १-पत्र १८)।
विगल [विकल] १ विकलेन्द्रिय-दो, विगिचंति (आचा; कसः श्रावक २६२ टी; विगत्तग वि [विकर्तक] काटनेवाला (सूत्र
तीन या चार ज्ञानेन्द्रियवाला जन्तु (कम्म ३, सून १, १, ४, १२; पिड ३६६), विगिंच २, २, ६२)
१३, ४, ३, १५, १६ जी ४१)। २ देखो (सूम १, १३, २१: उत्त ३, १३; पिड विगत्तणा स्त्री [विकर्तना] छेदन (उव)। विअल = विकल (उवः उप पृ १८१; पंचा ३६५)। वकृ. विगिचंत, विगिचमाण विगत्थय वि [विकत्थक] प्रशंसा करनेवाला, १४, ४७) देस पुं[देश] नय-वाक्य (श्रावक २६२ टी; पाचा)। संकृ. विगिंचिप्रात्मश्लाघा करनेवाला (भवि)। (अज्झ ६२)
ऊणं, विगिचित्ता (पिंड ३०५; आचा)।
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