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विकंत-विक्खेवणी पाइअसहमहण्णवो
७७३ विकंत देखो विक्क ।
वकृ. विकिणंत, विकिणित (पि ३६७; विक्खय वि [विक्षत] व्रण-युक्त, कृत-व्रण विकंत वि [विक्रान्त] १ पराक्रमी, शूर
सुपा २७६) । संकृ. विकिणिअ (नाट- (भग ७, ६-पत्र ३०७)। (णाया १, १-पत्र २१; विसे १०५६) मृच्छ ६५)
विक्खर सक [वि + कृ] १ छितरना, प्रासू १०७ कप्प)। २ पं. पहली नरक
विक्किणि वि [विक्रीत] बेचा हुआ (सुपा तितर-बितर करना। २ फैलाना। ३ इधर भूमि का बारहवां नरकेन्द्रक-नरक-स्थान विक्किय ६४२; भवि)।
उधर फेंकना । विक्खर इ (कप्पू), विक्खरेज्जा विशेष देवेन्द्र ५)
विक्किय देखो विउव्य = वैक्रियः कयवि- (उवा २०० टि)। कवकृ. विक्खरिजमाण विकंति स्त्री [विक्रान्ति] विक्रम, पराक्रम
कियरूवो सुरो ब्व लक्खियसि' (सुपा १८७), (राज)। (णाया १, १६-पत्र २११)।
'कत्रिकिय-काओ देवुध' (सम्मत १०४) विक्खवण न [विक्षपण] १ विनाश। २ विकभ देखो विवखंभ = विष्कम्भ (देवेन्द्र | विक्किर सक [वि+का बिखेरना- छितराना, वि.विनाश बज्ज असंखपडिवक्वविक्खवणं
फैलाना। कवकृ. विकिरिजमाण (राय (सुपा ४७) । विक्कणण न [विक्रयण] विक्रय, बेचना |
विक्खाइ स्त्री [विख्याति] प्रसिद्धि (भवि)। (सुपा ६०६, सट्टि ६ टो)। विक्किरिया स्त्री [विक्रिया] विकृति, विकारः विक्खाय वि [विख्यात] प्रसिद्ध, विश्रुत
(पाय सुर १, ४६; रंभाः महा) ।। 'तीए नयणाइएहि विकिरियं कुणइ' (सुपा विक्कम अक [वि + क्रम् ] पराक्रम करना, |
५१४)। देखो विकिरिया। शूरता दिखलाना। भवि. विक्कमिस्सदि
विश्वास वि [दे] विरूप, खराब, कुत्सित (शौ) (पार्थ६) | विक्कीय देखो विक्किय = विक्रीत (सर ह..(दे ७,६३)
विक्खिण्ण वि [दे] १ आयत, लम्बा। २
१९५; सुपा ३८५)। विक्कम पुं[विक्रम १ शौर्य, पराक्रम (कुमा)।
विक्के सकावि+की बेचना । विक्केड. अवतीर्ण। ३ न, जघन (दे ७, ८८)।२ सामथ्यं (गउड)। ३ एक राजा का नाम (सुपा ५६६)। ४ राजा विक्रमादित्य (रंभा
विक्केअाइ (हे ४, ५२ प्राप्र धात्वा १५२)। विक्खिण्ण देखो विकिण्ण (कस) । ७) जस पुं[यशस.] एक राजा
कृ. विकेज (दे ६, ४० ७, ६६) विक्खित्त वि [विक्षिप्त] १ फेंका हुआ (महा) "पुर न [पुर] एक नगर का विक्केणुअ वि [दे] विक्रेय, बेचने योग्य (दे (पाय; कसः गउड)। २ भ्रान्त, पागल; नाम (ती २१) राय पुं [ राज] एक ___७, ६६)
'पसुत्तविक्खित्तजणे परियणे (उप ७२८ टी; राजा (महा) सेण पू [°सेन] एक ( विक्कोण पुं [विकोण] विकूणन, घृणा से दे १, १३३; महा)। राज-कुमार (सुपा ५६२) इच्च, इत्त मुंह सिकुड़ना (दे ३, २८)।
विक्खिर देखो विक्खर । विक्विरेज्जा (उबा)[दित्य] एक सुप्रसिद्ध राजा (गा ४६४ विक्कोस सक [वि + ऋश ] चिल्लाना ।
विक्विरिअ वि [विकीर्ण] बिखरा हुआ, प्र सम्मत्त १४६; सुपा ५६२; गा ४६४) विक्कोश (मा) (मृच्छ २७) ।
छितरा हुमा, फैला हुआ (सुर ५, २०६३ विक्कमण पुं [दे] चतुर चालवाला घोड़ा विक्खंभ पुं [दे] १ स्थान, जगह (दे ७, सुपा २४६; गउड)।
८८)। २ अंतराल, बीच का भाग (दे ७, विक्खिा सक [वि + क्षिप्] १ दूर विकमि वि [विक्रमिन् ] पराक्रमी, शूर ८ से १, ५७)। ३ विवर, छिद्र (से __ करना।२ प्रेरना। ३ फेंकना। विक्खिवइ (कुमा) 10 ३, १४)।
(महा) । विक्कव वि [विक्लव] व्याकुल, बेचैन (पव विक्खंभ पुं [विष्कम्भ] १ विस्तार (पएण | विक्खिवण न [विक्षेपण] १ दूरीकरण । १६९; प्रातः संबोध २१)।
१-पत्र ५२, ठा ४, २-पत्र २२६; दे | २ प्रेरणा (पव ६४) । विक्कायमाण देखो विक्क ।
७, ८८; पान)। २ चौड़ाई; 'जंबुद्दीवे दीवे विक्खेव पुं[विक्षेप] १ क्षोभः 'छोहो विक्कि देखो विक्कर; 'ते नाणविक्कियो पुरण । एग जोयणसहस्सं पायामविक्खंभेण परागते' विक्लेवो' (पान)। २ उचाट, ग्लानि, खेद मिच्छत्तपरा, न ते मुरिणणों (संबोध १६) (सम २)। ३ बाहुल्य, स्थूलता, मोटाई (से ५, ३)। ३ ऊँचा फेंकना, ऊध्र्व-क्षेपण विक्किअ वि [दे] संस्कृत, सुधारा हुआ (दस
(सुज्ज १, १-पत्र ७)। ४ प्रतिबन्ध, (प्रोषभा १६३)। ४ फेंकना, क्षेपण (गा निरोध (सम्यकत्त्वो ८)। ५ नाटक का एक ५८२)। ५ श्रृगार-विशेष, अवज्ञा से किया
अंग (कप्पू)। ६ द्वार के दोनों तरफ के बीच हुआ मण्डन (पएह २, ४-पत्र १३२)। विकिंत वि [विकृत्त छिन्न, काटा हुआ
का मन्तर (ठा ४, २-पत्र २२५) - ६ चित्त-भ्रम (स २८२)। ७विलंब, देरी (पएह १, ३-पत्र ५४) ।
विक्खंभिअ वि [विष्कम्भित निरुद्ध, रोका | (स ७३५)। ८ सैन्य, लश्कर (स २४, विकिंठ देखो विकिट्ट (संबोध ५८)
हुआ (सम्यकत्त्वो ८) विकिण सक [वि+की बेचना । विक्किरणइ विक्खण न [दे] कार्य, काम, काज (दे | विक्खेवणी स्त्री [विक्षपणी] कथा का (प्राप्र)। कम. विक्किणीमति (पि ५४८)। ७,६४)।
एक भेद ( ४,२-पत्र २१०)।
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