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पाइअसहमणवो
. विआरणा-विइण्ण विआरणा स्त्री [वितारणा] विप्रतारणा, विआलय वि [विदारक] विदारण-कर्ता | 'पण्णत्ति स्त्री [प्रज्ञप्ति] पाँचवाँ जैन अंगठगाई (उप ६१६) (सूअनि ३६)
ग्रन्थ (भग १, १ टी)। विआरय वि [विचारक] विचार करनेवाला | विआलय पुं[विकालक] एक महा ग्रह, | विआह वि [वित्राध] बाध-रहित (भग १, (पउम ८, ५)
ज्योतिष्क देव-विशेष (सुज २०). १ टी) पण्णत्ति स्त्री [प्रनप्ति पाँचवाँ विआरि वि [विचारिन] ऊपर देखो (प्रौप)। विआलिउ न [दे] व्यालू, सायंकाल का | जैन अंग-ग्रन्थ (भग १, १ टी)। विआरिअ वि [विचारित] जिसका विचार | भोजन; 'जा महु पुत्तह करयलि लग्गइ सा | विआह स्त्री व्याख्या] १ विशद रूप से किया गया हो वह (दे १, १६८)।
अमिएण वियालिउ मग्गई' (भवि)। अर्थ का प्रतिपादन । २ वृत्ति, विवरण ।। विआरिअ वि [विदारित] १ खोला हुआ. | विआलुअ वि [दे] असहन, असहिष्णु (दे
पण्णत्ति स्त्री [प्रज्ञप्ति] पाचवाँ जैन अंग
ग्रन्थ (भग १, १ टी)। फाड़ा हुमाः 'दूरविनारिअमुहं महाकायं
विआव सक [वि + आप्] व्याप्त करना सीह' (णमि १२) । २ विदीर्ण किया हुआ,
विआहिअ वि [व्याख्यात १ जिसकी
व्याख्या की गई हो वह, वरिणत (श्रा २२)। (प्रामा)iv चीरा हुआ (भवि)
२ उक्त, कथित; 'स एव भव्वसत्ताएं चक्खुभूए विआरिअ वि [वितारित] १ अपित, दिया विआवड देखो वावड=ध्यापृत (ोधभा
विप्राहिए' (गच्छ १,२६, भग)।गया; 'वालि या सिरोहरा वियारिया दिट्ठी | (स ३३७) । २ ठगा हुमा, विप्रतारित; 'जइ विआवत्त पु[व्यावर्त्त] १ घोष और महाघोष | विइ स्त्री [वृति] रज्जु-बन्धन (प्रौप)। देखो पुण धुत्तेण अहं वियारिओ' (सुपा ३२४)।
इन्द्रों के दक्षिण दिशा के लोकपाल (ठा ४,
| वइ=वृति ।
विअइ वि [विदित] ज्ञात, जाना हुआ (पात्र; विआरिआ स्त्री [दे] पूर्वाह्न का भोजन (दे
१-पत्र १९८; इक)। २ ऋजुवालिका नदी के तोर पर स्थित एक प्राचीन चैत्य (कप्प)।
पिंड ८२; संबोध ४६ स १६२; महा)।
| विइइन्न देखो विइकिण्ण (भग १, १ टीविआरिल्ल1 वि [विकारवत् ] विकारवाला,
३ पुंन. एक देव-विमान (सम ३२)
पत्र ३७) विआरल्ल विकारयुक्त (प्राप्र; हे २, विआवाय पुं व्यापात भ्रश, नाश (प्राचा
विइंचिअ वि [विविक्त] विनाशित (स १५६) । श्री.ल्ला (सुपा १६४) । १, ६, ५, ६ टि)
१३५) । विआल देखो विआल = वि + चारय । वकृ. | विआविअ देखो वावढ = व्यापृत (धर्मसं
विइंत सक [वि + कृत् ] काटना, छेदना। वियालंत (उबर ८२)। ६७६)।
विईतेइ (णाया १, १४ टी-पत्र १८७)।विआल देखो विआर = वि + दारय । कृ. | विआस पुं[विकाश १ मुँह प्रादि की फाड़
विईत देखो विचिंत । वकृ. विइंतंत (गउड वियाणिय (सूअनि ३६; ३७)। खुलापन, 'थूलं वियासं मुहे' (सूत्र १, ५, २,
६७८)
३)। २ अवकाश (गउड २०१)। विआल पुं[विकाल] सन्ध्या, साँझ, सायंकाल
| विइकिण्ण वि [व्यतिकीर्ण] व्याप्त, फैला विआस पुं [विकास] प्रफुल्लता (पि १०२; (दे ७,६१ कप्पू: विपा १, ५-पत्र ६३;
हुमा (भग १, १-पत्र ३६)भवि)। हे ४, ३७७, ४२४, कस, भवि चारि वि
विश्कत वि [व्यतिक्रान्त] व्यतीत, गुजरा विआस देखो वास = व्यास (राज) [चारिन्] विकाल में घूमनेवाला (णाया
हुमा (ठा 8--पत्र ४४५; उवा; कप्प) १, १-पत्र ३८; १, ४; प्रौप)। विआसइत्तअ (शौ) वि [विकासयितृक]
विइगिंछा । देखो वितिनिछा (प्राचा;
विकसित करनेवाला (पि ६००) विआल [दे] चोर, तस्कर (दे ७,६०)
विआसग वि[विकासक] ऊपर देखो (सुपा विआल वि [व्याल] दुष्ट; 'मोणं वियालं
विइगिट्ठ वि [व्यतिकृष्ट] दूर-स्थित, विप्रकृट ६५८) पडिपहे पेहाए, महिस वियाल पडिपहे पेहाए, | विआसर वि विकस्वर] विकसनेवाला,
(बृह १)
विइगिण्ण देखो विइकिण्ण (कस) IN चिताचेल्लर वियाल पडिपहे पेहाए' (प्राचा
। प्रफुल्ल (षड्)। २, १, ५, ४)। देखो वाल = व्याल ।। विआसि विविकासिन्] ऊपर देखो
विइजत देखो वीअ = वीजय ।। विआल देखो विचाल (राज)।
विआसिल्लS (पि ४०५, सुपा ४०२, ६) विइजत देखो विकिर ।। विआलग देखो विआलय = विकालक (ठा
विआह सक [व्या + ख्या] व्याख्या करना । | विइण्ण वि [विकीर्ण] १ बिखरा हमाः २,३-पत्र ७७)
कर्म, विमाहिति (गदि २२६)। 'विइएणकेसी' (उवा) । २ विक्षिप्त, फेंका विआलए देखो विआरण% विचारण (ोष | विआह पुं[विधाह] १ व्याह, परिणयन, | हुआ (से १०,३) । देखो चिकिण्ण, विकिन्न। ६६; विरो १७६; पिंड ५६७)।
शादी (गा ४७६; नार-मालती ६)। २ | विइण्ण वि [वितीण] दिया हुआ, अर्पित विआला देखोविआरणा= विचारणा (विसे | विविध प्रवाह । ३ विशिष्ट प्रवाह । ४ वि. (गा ३४६, ६१७ से ८, ६५, १०, ३, हे ५४७ टी पिड ५६७).
विशिष्ट संतानवाला (भग १, १ टी) ४, ४४४ महा)।
विकासयितक] विइगिंठा । देखो वता)
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