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विअरण-विआरणा
पाइअसद्दमहण्णवो
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विअरण न [वितरण] प्रदान, अर्पण, (पंचा | विआउआ स्त्री [विपादिका] रोग-विशेष, विआर सक [वि + कारय् ] विकृत करना। ७, ६; उप ५६७ टीः सण)बिवाई, या बेवाई (दे ८, ७१)।
विपारेदि (शौ) (मा ५१) विअरिय वि [विचरित] जिसने विचरण विआउरी श्री [विजनयित्री] व्यानेवाली, | विआर सक [वि
चरण विपरीती विजनयिकी व्यानेवाली विआर सक [वि+चारय] विचारना, किया हो वह विहृत (महा); 'विमलोकयम्ह
। प्रसव करनेवाली (णाया १,२-पत्र ७६) विमर्श करना। विद्यारेइ (प्राकृ ७१% भग), चक्खू जहत्थया वियरिया गुणा तुज्झ' विआगर देखो वागर । वियागरेइ, वियागरंति
वियारिज (सत्त ३६)। वकृ. विधारयंत (पिंड ४६३)
(श्रा १६)। कवकृ. वियारिजंत (सुपा (प्राचा २, २, ३, १; सूत्र १, १४, १८), विअल अक [ भुज् मोड़ना, वक्र करना ।
वियागरे, वियागरेज्जा (सूम १, ६, २५,
| १४८)। संकृ. विआरिअ (अभि ४४) । विअलइ (धात्वा १५२) विसे ३३६; सूत्र १, १४, १९)। वकृ.
कृ. विआरणिज (श्रा १४)। विअल प्रक [वि+ ग १ गल जाना, वियागरेमाण (प्राचा २, २, ३, १)
विआर सक [वि + दारय ] फाड़ना, क्षीण होना। २ टपकना, झरना। वकृ.
विआघाय देखो वाघाय (प्राचा) याय देखो वाघाय (ग्राचा)
चीरना । विनारे (अप) (पिंग)। संकृ. विअलंत (गा ३६८ सुर ५, १२७)।
वियारिऊण (श २६०) विअल अक [ओजय ] मजबूत होना (संक्षि विआण सक [वि + ज्ञा] जानना, मालूम |
| विआर पुं[विकार] विकृति; प्रकृति का ३५)। करना। वियारण्इ, विमाणंति (भगः गा
भिन्न रूपवाला परिणाम (हे ३, २३ गउड; विअल वि [विकल] १ हीन, असंपूर्ण (पएह
४८), वियाणासि (पि ५१०), वियाणाहि,
वियाणेहि (परण १-पत्र ३९; महा)। १, ३-पत्र ४०)। २ रहित, वजित, वन्ध्य
सुर ३, २६ प्रासू ४६) कम. वियाणिजइ ( सट्ठि १६)। वकृ. (सा २)। ३ विह्वल, व्याकुल; 'विप्रलुद्ध
| विआर पुं[विचार १ तत्त्व-निर्णय (गउड; वियाणंत, वियागमाण (औप; उव)। रणसहावा हुवंति जइ केवि सप्पुरिसा' (गा
विचार १; दं१)। २ तत्त्व-निर्णय के २८५) । देखो विगल = विकल । संकृ. वियाणिआ, वियाणिऊण, विया
अनुकूल शब्द-रचना (जी ५१)। ३ ख्याल,
सोच; 'अराणो बक्करकालो अपणो कजविविअल सक [विकलय] विकल बनाना ।
णित्ता (दसचू १, १८; महा; प्रौप; कप्प)। वियलई (सण)
प्रारकालो' (कप्पू)। ४ दिशा-फरागत के कृ. वियाणियव्य (उप पृ ६०)।
लिए बाहर जाना (पव २; १०१)। ५ विअल देखो विअड = विकट (से ८, २१)। आिण न [विज्ञान] जानकारी, ज्ञान;
गमन की अनुकूलता (पव १०४)। ६ विचरण । विअल देखो विदल = द्विदल (संबोध ४४) एक्कपि भाय ! दुलहं जिणमयविहिरियण
७ अवकाश; 'अंतेउरे य दिएणवियारे जाते विअलंबल वि दे] दीर्घ, लम्बा (दे७. सुवियाणं' (सट्ठि १६)। देखो विनाण ।
यावि होत्था' (विपा १, ५-पत्र ६३)। विआण न [वितान] १ विस्तार, फैलाव
विमश, मीमांसा । ६ मत, अभिप्राय (भवि) विअलिअ वि [विगलित] १ नाश-प्राप्त, (गउड १७६, ३८६, ५६२)। २ वृत्ति
धवल [धवल] एक राजा का नाम नष्ट (से २, ४५; सण)। २ पतित, टपक विशेष । ३ अवसर । ४ यज्ञ (हे १, १७७;
(उप ७२८ टी महा)। भूमि स्त्री [भूमि] कर गिरा हुआ; 'विप्रलिनं उच्चतं' (पान) प्राप्र)। ५ पुन. चन्द्रातप, चंदवा, पाच्छादन
दिशा-फरागत जाने का स्थान (कप्प; उप विअल्ल अक [वि + चल.] १ क्षुब्ध होना। विशेष (गउड २००० ११८०; हे १, १७७;
१४२ टी). २ अव्यवस्थित होना; 'खलइ जोहा, मुहप्राप्र)।
विआरण न [विचारण] १ विचार करना वयणु वियल्लई' (भवि)। | विआणग वि [विज्ञायक] जानकार, विज्ञ
(सुपा ४६४, साधं ६०)।२वि. विचार (उप पृ ११६). विअस अक [वि+ कस् ] खिलना।
करनेवालाः 'जय जिणनाह समत्थवत्थुपरमत्थविप्रसइ (प्राकृ ७६; हे ४, १९५)। वकृ.
विआणण न [विज्ञान] जानना, मालूम वियारण' (सुपा ५२) । ३ वि. विचरण विअसंत, विअसमाण (प्रौप; सुपा २०)। करना (स २६७; सुर ३, ७)।
करनेवाला; 'अंबरंतरविवारणिमाहि' (अजि विअसावय वि [विकासक] विकसित |
वियाणय देखो विआणग (सम्म १६०; भगः २६)।करनेवाला (गउड)।
औप; सुर ६, २१; सण)।
विआरण न [विदारग] चीरना, फाड़ना विअसाविअ वि [ विकासित विकसित विआणिअपि [विज्ञात] जाना हमा, विदित (साध ४६; स २४१)।किया हुआ (सुपा २२५)
(स २६७; सुपा ३६१ महाः सुर ४, २१४, विआरण देखो वागरण (कुप्र २४५)। विअसिअ वि [विकसित] विकास-प्राप्त
१२, ७१, पिंग)।
विआरण वि [वैदारण] विदारण-संबन्धी, (गा १३; पान; सुर २, २२२; ४, ५८; विआय सक [वि+ जनय ] जन्म देना, विदारण से उत्पन्न होनेवाला। स्त्री. "णिआ औप)
प्रसव करनाः 'गुजराती में 'वियावु"; (नव १६)विअह देखो विजह = वि + हा । संकृ.. 'वियायइ पढम जं पिउगिहे नारी' (उप | विआरणा स्त्री [विचारणा] विचार, विमर्श वियहित्तु (प्राचा १, १, ३, २)। ९६८ टी)। संकृ. विआय (राज)। (उप ७२८ टी स २४७ पंचा ११, ३४)।
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