________________
७६४
पाइअसहमहण्णवो
वाहगण-वि
पाठ सौ पाढ़क का एक मान (तंदु २९)। | बाहरण न [व्याहरण] १ उक्ति, कथन | वाहित्त वि [व्याहृत] १ उक्त, कथित (हे ५ शाकटिक, गाड़ी होकनेवाल। (सूम १, २, (कुमा)। २ आह्वान (स २५२, ५०६) १, १२८, २, ६६ प्राप्र)। २ माहूत, शब्दित ३, ५)। वाहिया स्त्री [°वाहिका] घुड़- वाहाविय वि [व्याहारि] बुलवाया हुआ | (पामा उत्त १, २०)। सवारी (धर्मवि ४) (कुप्र १५; महा)
वाहित्ति स्त्री [व्याहृति १ उक्ति, वचन । वाहगण [दे] मन्त्री, अमात्य, प्रधान | वाहरिअ देखो वाहित्त = व्याहृत (सुर १, २ माह्वान (अच्चु २) । वागणय, (दे ७, ६१) -
१५० ४, ६, सुपा १३२, महा)
वाहिप्प देखो वाहर।। वाहड विदे] भृत, भरा हुआः 'बहुवाहडा वाहलार वि [दे. वात्सल्यकार] १ स्नेही, | वाहिम देखो वाह वाहय ।अगाहा (दस ७, ३६)
अनुरागी । २ सगाः गुजराती में 'वाहलेसरी'; वाहियाली श्री [वाह्यालो] प्रश्व खेलने की वाहडिया श्री [दे] काँवर, बहँगी (उप पू 'मह सत्थाहो तमन्नजायंपि । नियतराज | जगह (स १३; सुपा ३२७ महा)।। ३३७)
मन्नतो लालेइ वाहलारुष्व (धर्मवि १२८) वाहिल्ल वि [ व्याधिमत् ] रोगो (धम्म ८ वाहण पुंन [वाहन] १ रथ प्रादि यान; 'जह वाहलिया। स्त्री [दे] क्षुद्र नदी, छोटा जल- टी)। भिच्चवाहणा लोए' (गच्छ १, ३८; उवा,
वाहली प्रवाह (वज्जा २२० ५४० दे७, वाही देखो वाह = व्याघ । प्रौप; कप्प)। २ जहाज, नौका, यानपात्र; ३६)
वाहुडिअ वि [दे] गत, चलितः 'तो वाहुडिउ गुजराती में 'वहाण (उवा, सिरि ४२३ वाहा स्त्री [दे] वालुका, रेत (द ७, ५४) ।
जवेण' (कुप्र ४५८) । देखो बाहुडिअ।कुम्मा १६) । ३ न. चलाना; 'वाहवाहणवाहाया श्री [दे] वृक्ष-विशेष; 'समिसंगलिया
वाहुय देखो वाहित = व्याहृत (प्रौप)। परिस्संतो' (कुप्र १४७)। ४ शकट, बोझ
ति वा वाहायासंगलिया ति वा प्रगत्थिसंगलिया
| वि देखो अवि = अपि (हे २,२१८ कुमा, गा मादि ढोग्राना, भार लाद.कर चलाना (पराह
ति वा' (अनु ५)। १, २-पत्र २६; द्र २६)। "साला स्त्री
११; १७; २३; कम्म ४, १६, ६०; ६६ वाहाविय वि [वाहित] चलाया हुपा (महा)
रंभा)। [°शाला] यान रखने का घर (प्रौप) । वाह देखो वाहर । संकृ. वाहिता (प्राक,
| वि अ [वि] इन अर्थों का सूचक अव्यय
३८. पि ५८२) वाहणा स्त्री [वाहना] वहन कराना, बोझ, | वाहि पुंस्त्री [व्याधि] रोग, बीमारी; 'चउविहे |
१ विरोध, प्रतिपक्षता; 'विगहा', आदि ढोग्राना (थावक २५८ टी) वाही पन्नत्ते' (ठा ४, ४–पत्र २६५, पाम;
'विप्रोग' (ठा ४, २, गच्छ १, ११, सुर वाहणा स्त्री [दे] ग्रोवा, डोक, गला (दे ७
२, २१५)। २ विशेष: 'विउस्सिय सुर ४, ७५; उवाः प्रासू १३३; महा); 'एयानो सत्त वाहीनो दारुणानो (महा)।
(सूत्र १, १, २, २३, भग १, १ टी)। ३ बाहणा स्त्री [ उपानह ] जूता (औप; वाहि विवाहिन] वहन करनेवाला ढोनेवाला
विविधताः 'वियक्खमाण', 'विउस्सग्ग' उवा; पि१४१) 'जहा खरो चंदणभारवाही' (उव) -
(मोघभा १९८ भग १, टीः भावम)। ४ वाणिव वि [वानिक वाहन संबन्धी (उप वाहिअ वि [वाहित] चलाया हुआ. 'वाहियं
कुत्सा, खराबोः 'विरूव' ( उप ७२८ टी)। ७२८ टी) तम्मि वंसकुडंगे तं खरगं' (महा); 'तो तेण
५ प्रभाव; 'विइण्ह' (से २,१०)। ६ महत्त्व वाहणिया स्त्री [वाहनिका] वहन कराना, तेण खग्गेण कोसखित्तेण वाहिनो घामो
'विएम' (गउड)। ७ भिन्नताः 'विएस' (महा)। चलानाः आसवाहणियाए' (स ३००)। (सुपा ५२७) ।
८ ऊँचाई, ऊर्ध्वताः "विक्खेव' (प्रोधमा वाहत्तुं देखो बाहर ।। वाहिअ देखो वाहित्त = व्याहृत (हे २, ६६
१६३) । ६ पादपूर्ति (पउम १७,६७) । १० वाह्य वि वाहक] चलानेवाला, हाँकनेवाला | षड्, महा; णाया १, १-पत्र ६३)।
पुं. पक्षी (से १,१, सुर १६,४३)। ११ वि. (उत्त १, ३७)
उद्दीपक, उत्तेजक । १२ अवबोधक, ज्ञापका वाहिअ वि [व्याधित रोगी, बीमार (सिरि वाय वि [व्याहत] व्याघात-प्राप्त (मोह
'सम्म सम्मतवियासडं वरं दिसउ भवियाणं' १०७८ णाया १,१३-पत्र १७६; विपा १०७; उव)। १,७-पत्र ७५, पएह १, ३-पत्र ५४;
(विवे १४३)। वाहर सक [व्या + हृ] १ बोलना, कहना। कस)।
वि देखो वि= द्विः 'ते पुण होज्ज विहत्या २ आह्वान करना। वाहरइ (हे ४, २५६; वाहिणी स्त्री वाहिनी] १ नदी (धर्मवि ३)॥२ | कुम्मापुत्तादो जहन्नणं' (विसे ३१६६) सुपा ३२२; महा) । कर्म वाहिप्पइ, वाहरिजइ
सेना, लश्कर, 'सेरणा वरूहिणी वारिणी प्रणीमं विवि [विद् ] जानकार, विज्ञ (माचा; (हे ४, २५३); 'वाहिप्पंति पहाणा गारुडिया' चमू सिन्न' (पाप) । ३ सेना-विशेष, जिसमें | विसे ५००)। उच्छा स्त्री [जुगुप्सा] (सुर १६, ६१) । कवकृ. वाहिप्पंत (कुमा)। ८१ हाथी, ८१ रथ, २४३ घोड़े और ४०५ | विद्वान् की निन्दा, साधु की निन्दा (श्रा ६ वकृ. वाहरंत (गा ५०३; सुर ६, १६६)। प्यादें हों वह सैन्य (पउम ५६, ६)। णाह | टी-पत्र ३०)। संकृ. बाहरिउं (वव ४)। हेकृ. वाहत्तुं पुं["नाथ] सेनापति (किरात १३) • °स | वि॰ स्त्री [ विष ] पुरीष, विष्ठा (पएह, २, (से ११, ११६) पुं[श] वही (किरात ११)।
१-६६ संति २, मौप विसे ७८१)।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org