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मई-मखण
पाइअसहमहण्णवो
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मई स्त्री [दे] मदिरा, दारू (दे ६, ११३)। मउल प्रक [मुकुलय् ] सकुचना, संकुचित मऊह पुं[मयूख] १ किरण, रश्मि (पान)। मई स्त्री [मृगी] हरिणी, हरिण की मादा, होना; 'मउलेंति णप्रणाई' (गा ५) । वकृ. २ कान्ति, तेज । ३ शिखा। ४ शोभा (हे हिरनी (गा २८७ से ६, ८० दे ३,४६, मउलंत,मउलित (से ११, ६२: पि ४६१) १,१७१; प्राप्र)। ५ राक्षस वंश के एक कुप्र १०)।
मउलण न [मुकुलन] संकोच; 'जं चेन राजा का नाम, एक लंका-पति (पउम ५, मई देखो मइ = मति । °म, व वि [°मत् ] मउलणं लोप्रणाणं' (हे २, १८४विसे | २६५)। बुद्धिवाला (पि ७३, ३६६, उप १४२ टी) . ११०६; गउड)।
मए सक [ मदय् ] मद-युक्त करना, उन्मत्त मईअ वि मदीय] मेरा, अपना (षड्; मउलाअ अक [ मुकुलय्] १ सकुचना । २
बनाना । वकृ. मएंत (से २, १७)। | सक. संकुचित करना । वकृ. मउलाअंत कुमाः स ४७७; महा)।
मएजारिस वि [माइश] मेरे जैसा, मेरे मउ [दे] पर्वत, पहाड़ (दे ६, ११३)। (नाट-मालती ५४; पि १२३)।
तुल्य; 'मएजारिसाणं पुरिसाहमारणं इम मउ वि [मृदु. क] कोमल, सुकुमार मउलाइय वि [मुकुलित] सकुचाया हुआ, |
चेवोचियं' (स ३३)। मउअ (हे १, १२७ षड्; सम ४१, सुर
संकोचित (वजा १२६) । मउलाब देखो मउला । कर्म, मउलाविजंति
मं (अप) देखो म% मा (षड्; हे ४, ४१८ ३, ३७ कुमा)। स्त्री. °उई (प्राकृ८;
(पि १२३) । वकृ. मउलावेत (पउम १५, गउड)।
कुमा)। कार पुं[कार] 'मा' अव्यय (ठा
१०-पत्र ४६५)। मउअ वि [दे] दीन, गरीब (दे ६, ११४) ८३)। मउलावअ वि [मुकुलायक संकुचित करने
मंकड देखो मक्कड (प्राचा)। मउइअ वि [मृदुकित] जो कोमल बना
वालाः 'हरिसविसेसो वियसावो य मउलावरो
मंकण पुं[मत्कुण] खटमल, क्षुद्र कीट-विशेष हो (गउड)। य अच्छोरण' (गउड)।
गुजराती में 'मांकरण' (जी १६)। मउई देखो मउ - मृदु । मउलाविय देखो मउलाइय (उप पृ ३२१
मंकग पुंस्त्री [दे. मर्कट] बन्दर, बानर । स्त्री. मउंद पुं [मुकुन्द] १ विष्णु, श्रीकृष्ण सुपा २००; भवि) ।
णी; 'सयमेव मंकणीए धोए तं कंकणी (राय)। २ वाद्य-विशेष; 'दुंदुहिमउंदमद्दलमउलि पुंस्त्री [दे] हृदय-रस का उच्छलन
| बद्धा' (कुप्र १८५)।तिलिमापमुहेण तूरसद्देण' (सुर ३, ६८), (दे ६, ११५)।
मंकाइ पुं [मङ्काति] एक अन्तकृद् महर्षि 'महामदसंठाणसंठिए' (भग)।
| मउलि मुकुलिन्] सर्प-विशेष (पएह १, (अंत १८)मउक्क देखो माउक = मृदुत्व (षड् )।
।१-पत्रः १-पत्र ८, पराग १-पत्र ५०)।
पराण -पत्र ५०) मंकार पुं[मकार] 'म' अक्षर (ठा १०मउड पुंन [मुकुट] शिरो-भूषण, किरीट, मउलि पुंस्त्री [मौलि] १ किरीट, मुकुट, शिरो
पत्र ४६५)। सिरपंच (पव ३८; हे १, १०७; प्राप्र; | भूषण (पास)। २ मस्तक, सिर (कुप्र ३८६;
मंकिअ न [मङ्कित] कूद कर जाना (दे ८, कुमाः पाप्रा औप)। कुमा; अजि २२, अच्चु ३४)। ३ शिरो
१५)। मउड पुंदे] धम्मिल्ल, कबरी, जूट, वेष्टन विशेष, एक तरह की पगड़ी (पव ३८)।
मंकुण देखो मंकण = मत्कुण (दे; भवि) । मउडि जूड़ा (पामा दे ६, ११७)। ४ चूड़ा, चोटी । ५ संयत केश। ६ पुं.
हत्थि पुं[हस्तिन] गएडीपद प्राणि-विशेष मउण देखो मोण (हे १, १६२; चंड)। अशोक वृक्ष । ७ स्त्रो. भूमि, पृथिवी (हे १,
| (परण १-पत्र ४६)।
(पएण १-4 मउर पुन [मुकुर] १ बाल-पुष्प, फूल की १६२, प्राकृ१०)।
मंकुस [दे] देखो मंगुस (गा ७८१) । कली. बौर (कमा)। २ दर्पण प्राईना. मउलिअ बि [मुकुलित] १ संकुचित (सुर मंख देखो मक्ख %D बृक्ष । वक़. मंखंत शीशा । ३ कुलाल-दण्ड । ४ बकुल का पेड़।
३, ४५; गा ३२३ से १, ६५) । २ मुकुला- | (राज)। ५ मल्लिका-वृक्ष : ६ कोली-वृक्ष । ७ ग्रंथि
कार किया हुआ (प्रौप)। ३ एकत्र स्थित मंख [दे] अण्ड, वृषण (दे ६, ११२)। पर्ण-वृक्ष, चोरक (हे १, १०७ प्राकृ) (कुमा) । ४ मुकुल-युक्त; कलिका सहित
मंख पुं[मङ्क] एक भिक्षुक जाति जो चित्रमउर । [दे] वृक्ष-विशेष, अपामार्ग,
पट दिखाकर जीवन-निर्वाह करता है (णाया मउरंद ओंगा, लटजीरा, चिरचिरा (दे ६, राचिरा मउवी देखो मउई (हे २, ११३; कुमा)।
१, १ टी प्रौप; पण्ह २, ४ पिड ३०६; ११८)। मऊर पुंस्त्री [मयूर] पक्षि-विशेष, मोर (प्रातः
कप्प)। फलय न [फलक] १ मंख का मउल देखो मउड = मुकुट (से ४, ५१)। हे १, १७१; गाया १, ३)। स्त्री.री
तख्ता । २ निर्वाह-हेतुक चैत्य (पंचा ६, मउल पुन [मुकुल] थोड़ी विकसित कली, (विपा १, ३) । माल न [ माल] एक |
४५ टी) कलिका, बौर (रंभा २६)। २ देह, शरीर । | नगर (पउम २७, ६)।
मंखण न [म्रक्षण] १ मक्खन; 'मखणं व ३ प्रात्मा: 'मउलं, मउलो' (हे १,१०७; मऊरा स्त्री [मयूरा] एक रानी, महापद्म | सुकुमालकरचरणा' (उप ६४८ टी)। २ प्राप्र)
| चक्रवर्ती की माता (पउम २०, १४३)। अभ्यंग, मालिश (सुर १२, ८)
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