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पाइअसहमहण्णवो
परियाणिअ परिलोयण
परियाणिअ पुन [परिगानिक] १ यान, सक. सेवना। परियावज्जइ, परियावज्जति परिछ वि [परिरब्ध] प्रालिङ्गित (गा वाहन । २ विमान-विशेष (ठा ८)। (कप्प; आचा)।
___३६८)। परियादि देखो परियाइ । परियादियति परियावजण न [पर्यापादन] रूपान्तर- | परिरय [परिरय] १ परिधि, परिक्षेप (उत्त (कप्प) । संकृ. परियादित्ता (कप्प)। प्राप्ति (पिंड २८०)।
३६,५६ पउम८६, ६१; पब १५८ औष)। परियाय देखो पन्जाय (ठा ४, ४, सुपा १६ परियावजणा स्त्री [पर्यापादन] प्रासेवन २ पर्याय, समानार्थक शब्दः 'एगपरिरय विसे २७९१; प्रौप; आचा; उवा) । (ठा ३, ४–पत्र १७४) ।
त्ति वा एगपज्जाय त्ति वा एगणामभेद त्ति अभिप्राय, मत; 'सएहि परियाएहि लोयं बूया परियावण देखो परितावण (सूत्र २, २, वा एगट्ठा' (प्राचू १) । ३ परिभ्रमण, फिर कडेति य (सूत्र १, १, ३, ६)। १० ६२)।
कर जाना, 'अहवा थेरो, तस्स य अंतरा प्रव्रज्या, दीक्षा (ठा ३, २-पत्र १२६)। परियावणा स्त्री [परितापना] परिताप, ड्डा डोंगरा वा, जे समत्था ते उज्जुएण ११ ब्रह्मचर्य (प्राव ४)। १२ जिन-देव के संताप (औप)।
वचंति, जो असमत्यो सो परिरएणं-भमाकेवल ज्ञान की उत्पत्ति का समय (रणाया १, परियावणिया स्त्री [परियापनिका] कालान्तर डेण बच्चई (प्रोघभा २० टी)। ८)। शेर स्थावर] दीक्षा की अपेक्षा तक अवस्थान, स्थिति (गाया १,१४---पत्र परिराग अक [ परि + राज] विराजना, से वृद्ध (ठा ३, २)। १८६)।
शोभना । वकृ. परिरायमाण (कप्प) । परियायतकरभूमि स्त्री [पर्यायान्तकृद्- परियावण्ण। वि [पर्यापन] स्थित, प्रव. परिरिख सक [परि + रिङ्ख] चलना, भूमि] जिन-देव के केवल ज्ञान की उत्पत्ति
| परियावन्न । स्थित (पाचा २,१,११,७ । फरकना, हिलना। वकृ. परिरिखमाण (उप के समय से लेकर तदनन्तर सर्व प्रथम मुक्ति ८. भग ३४, २; कस)।
५३० टो)। पानेवाले के बीच के समय का प्रान्तर (गाया
परियावन्न वि[पर्यापन्न] लब्ध, प्राप्त (आचा परिरंभ सक [परि + रुध] रोकना, १,८-पत्र १५४)। २, १, ६, ६)।
अटकाना। कर्म. परिरुज्झइ (गउड ४३४)। परियार सक [परि + चारय ] १ सेवा
| परियावस सक [पर्या + वासय् ] आवास | संकृ. परिरंभिऊण (उवकु १)। शुश्रूषा करना । २ संभोग करना, विषय
कराना। परियावसे (उत्त १८, ५४, सुख परिलंधि वि [परिलड्डिन] लंघन करनेवाला सेवन करना । परियारेइ (ठा ३, १; भग)। १८, ५४)।
(पउड)। वकृ. परियारेमाण (राज)। कवकृ. परि
परियावसह पुं[पर्यावसथ] मठ, संन्यासी परिलंवि वि [परिलम्बिन्] लटकनेवाला यारिजमाण (ठा १०)।
का स्थान (प्राचा २, १, ८, २)। । (गउड)। परियार पुं [परिचार] मैथुन, विषय-सेवन | परियाविय वि[परितापित] पीड़ित (पडि)। परिलभिअ वि [परिलम्भित] प्राप्त कराया (परण ३४-पत्र ७८० ठा ३, १)। परियासिय वि [परिवासित] बासी रखा हुमा, 'सो गयवरो मुणीणं (मुणीहिं) वयारिण परियारग वि [परिचारक] १ विषय-सेवन हुप्रा (कस)।
परिलंभिप्रो पसन्नप्पा' (पउम ८४, १)। करनेवाला (पएण २; ठा २, ४)। २ सेवा- परिरंज सक [भ ] भाँगना, तोड़ना। परिलग्ग वि [परिलम] लगा हुआ, व्यापृत शुश्रूषा करनेवाला (विपा १,१)। परिरंजइ (प्राकृ ७४)।
(उप ३५६ टी)। परियारण न [परिचारण] १ सेवा-शुश्रूषा परिरंभ सक[परि + रभ ] आलिंगन करना। परिलिअ वि [दे] लीन, तन्मय (दे ६, २४)। (सुज १८–पत्र २६५) । २ काम-भोग परिरंभस्सु (शौ) (पि ४६७) । संकृ.
परिली अक [परि + ली] लीन होना। वकृ. (परण ३४)। परिरंभिउं (कुप्र २४२)।
परिलिंत, परिलेंत, परिलीयमाण (णाया परियारणया । स्त्री [परिचारणा] ऊपर
परिरंभण न [परिरम्भन] आलिङ्गन (पामः | १, १-पत्र ५; औपः से ६, ४८; पएह १, परियारणा देखो (पएण ३४ ठा ५, १)। सद्द धू [शब्द] विषय-सेवन के गा ८३५; सुपा २, ३६६) ।
३; राय)। परिरक्ख सक [परि +रक्ष ] परिपालन परिली स्त्री [दे] तोद्य-विशेष, एक तरह का समय का स्त्री का शब्द (निचू १)।
करना । परिरक्खइ (भवि) । कृ. परिक्ख- बाजा (राज)। परियाल देखो परिवार (राय ५४)। णीअ (सिक्खा ३१)।
परिलीण वि [परिलीन निलीन (पान)। परियालोयण न [पर्यालोचन] विचार, परिक्खण न [परिरक्षण] परिपालन (गा परिनुप सक [परि + लुप्] लुप्त करना, चिन्तन (सुपा ५००)। ६०१; भवि)।
अदृष्ट करना । कवकृ. परिलुप्पमाण (महा)। परियाव देखो परिताव = परिताप (प्राचा: परिरक्खा स्त्री/परिरक्षा] ऊपर देखो (पउम परिलेंत देखो परिली = परि + ली। प्रोघ १५४)।
५६, ५३, धर्मवि ५३; गउड) । परिलोयण न [परिलोचन, परिलोकन] परियावज्ज अक [पर्या+ पद्] १ पीडित परिरक्खिय वि [परिरक्षित] परिपालित अवलोकन, निरीक्षण। २ वि. देखनेवाला; होना। २ रूपान्तर में परिणत होना। ३ । (भवि)।
'जुगंतरपरिलोयणाए दिट्ठीए' (उवा)।
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