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परिपूय-परिभाष पाइअसहमहण्णवो
५५६ परिपूय वि [परिपूत] छाना हुआ (कप्प; परिप्फुड पुं[परिस्फोट] १ प्रस्फोटन, भेदन। परिभम सक [परि + भ्रम् ] पर्यटन तंदु ३२)।
२ वि. फोड़नेवाला, विभेदक; 'तमपडल- करना, भटकना। परिब्भमइ (प्राकृ ७६; भवि परिपूर सक [परि + पूरय ] पूर्ण करना, परिप्फुडं चेव तेअसा पज्जलतरूवं' (कप्प)। उव)। वकृ. परिब्भमंत (सुर २, ८७; ३, भरपूर करना । वकृ. परिपूरंत (पि ५३७)। परिप्फुर अक [ परि + स्फुर ] चलना। ४. ४, ७१; भवि)। संकृ. परिपूरिअ (नाट-मालवि १५)। परिप्फुरदि (शौ) (नाट-उत्तर २८)। परिब्भमण न [परिभ्रमण] पर्यटन (महा)। परिपूरिय वि [परिपूरित] भरपूर, व्याप्त | परिप्फुरण न [परिस्फुरण] हिलन, चलन | सिमित विपरिभात भटका (सुर २, ११)। (सरण)।
(वै ६३, सण, भवि)। परिपेच्छ सक [परिप्र + ईक्ष ] देखना । | परिप्फुरिअ वि [परिस्फुरित] स्फूर्ति-युक्त,
परिब्भीअ वि [परिभीत] भय-प्राप्त (पउम वकृ. परिपेच्छंत (अच्चु ६३)। 'वयणु परिप्फुरिउ' (भवि)।
५३, ३६)। परिपेरंत परिपर्यन्त प्रान्त भाग (गाया परिफंस j [परिस्पश] स्पर्श, छूना (पि |
परिभूअ वि [परिभूत] पराभव प्राप्त (सुपा १, ४, १३; सुर १५, २०२) । ७४; ३११)।
२५८)। परिपेरिय वि परिप्रेरित] जिसको प्रेरणा परिफंसण न [परिस्पर्शन ऊपर देखो (उप परिभग्ग वि [परिभग्न] भांगा हुआ की गई हो वह (सुपा १८६)। ६८६ टी)।
(प्रात्मानु १४)। परिपेलव वि [परिपेलव] १ सुकर, सहज, परिफग्गु वि [परिफल्गु] निस्सार, प्रसार
| परिभट्ट देखो परिब्भट्ठ (महा; पि ८५) । सहल, पासान (से ३, १३)। २ अढ़ । ३ (धर्मसं ६५३)।
परिभणिर वि [परि + भणित] कहनेवाला निःसार । ४ वराक, दीन (राज)। परिफासिय वि [परिस्पृष्ट] व्याप्त (दस ५,
(सण)। परिपेल्लिअ देखो परिपेरिय (गा ५७७)।
१,७२)।
परिभम देखो परिभम । परिभमइ (महा)। परिफुड देखो परिप्फुड = परिस्फुट (पउम ३, परिपेस सक [ परिप्र + इष ] भेजना।
वकृ. परिभमंत, परिभममाण (महा सण;
प्रासू ११९)। परिपेसइ (भवि)।
भवि; संवेग १४)। संकृ. परिभमिऊणं परिफुडिय वि [परिस्फुटित] फूटा हुआ, | परिपेसण न [परिप्रेषण] भेजना (भवि)।
(पि ५८५) । हेकृ. परिभमिउं (महा)। भान (पउम ६८,१०)। परिपेसल वि [परिपेशल] सुन्दर, मनोहर परिफुर देखो परिप्फुर। परिप्फुरइ (सण)।
परिभमिअ देखो परिभमिअ (भवि)। (सुपा १०६)। वकृ. परिफुरंत (सरण)।
परिभमिर वि [परिभ्रमित] पर्यटन करनेपरिपेसिय वि [परिप्रेषित] भेजा हुआ परिफुरिअ देखो परिप्फुरिय (सण)।
वाला (सुपा २६६)। (भवि)।
परिभव सक [परि + भू] पराजय करना, परिपोस सक [परि + पोषय ] पुष्ट करना। परिफुल्लिअ बि [परिफुल्लित] फूला हुआ,
तिरस्कारना। परिभवइ (उव)। कर्म. परिकवकृ. परिपोसिज्जत (राज)। कुसुमित (पिंग)।
भविजामि (मोह १०८)। कृ. परिभवणिज परिप्पमाण न [परिप्रमाण] परिमाण (भति)। परिफुस सक [परि + स्पृश ] स्पर्श करना,
(णाया १. ३)। परिप्पव सक [परि + प्लु] तैरना, गोता
छूना। वकृ. परिफुसंत (धर्मवि १२६;
परिभव पुं[परिभव] पराभव, तिरस्कार लगाना। वकृ. परिप्पवंत (से २, २८ परिफुसिय वि [परिप्रोञ्छित] पोंछा हुआ
(औपः स्वप्न १० प्रासू १७३) । १०, १३; पान)। (उप पृ ६४)।
परिभवंत पुं[परिभवत् ] पार्श्वस्थ साधु, परिप्पुय वि [परिप्लुत] प्राप्लुत, व्याप्त
परिफोसिय वि [परिस्पृष्ट] छूना हुआ, | शिथिलाचारी मुनि (वव १)। (राज)।
'उदगपरिफोसियाए दब्भोवरिपच्चत्थुयाए परिभवण न [परिभवन] ऊपर देखो (राज)। परिप्पुया स्त्री [परिप्लुता] दीक्षा-विशेष
भिसियाए णिसीयति' (णाया १, १६, उप परिभवणा स्त्री [परिभवन] ऊपर देखो (राज)। परिप्फंद पुं[परिस्पन्द] १ रचना-विशेष, ६४८ टी)।
(प्रौप)। 'जयइ वायापरिप्फंदो' (गउड)। २ समन्तात् परिबृहण न [परिबृहण] वृद्धि, उपचय
परिभविअ वि [परिभूत] अभिभूत (धर्मवि चलन (चारु ४५)। ३ चेष्टा, प्रयत्नः 'थोया
३६)। परिभंत वि [दे] १ निषिद्ध, निवारित । २ परिभाअनद [परि + भाजय ] बॉटना, रंभेवि विहिम्मि प्रायसग्गे व खंडणमुवैति।
भीरु, डरपोक (दे ६, ७२)। स-परिप्फंदेणं चिय णीमा भमिदारुसयलं व
विभाग करना। परिभाएइ (कप्प)। वकु. परिभंसिद (शौ) नीचे देखो (मा ५०)। परिभाइंत, परिभायंत, परिभाएमाण परिप्फुड वि [परिस्फुट अत्यन्त स्पष्ट (से परिभट्ट वि [परिभ्रष्ट] पतित, स्खलित (प्राचा २, ११, १८ पाया १,७-पत्र ११, ६०; सुर ४, २१४; भवि)। । (णाया १,१३ सुपा ५०६, अभि १४४)।। ११७ १,१; कप्प)। कवकृ. परिभाइज्ज
रचना-विशेष, परिवहण २,६)।
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