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परिण्णाण-परिदेवण
पाइअसद्दमहण्णवो
समरंगणम्मि
त्योम न [परिस्ताद (प्रोप) किया
१, १)। ४ ज्ञान-पूर्वक प्रत्याखान (ठा परिताव पुं[परिताप १ संताप, दाह । २ परित्तज देखो परिचय । संकृ. परित्तजिअ
पश्चात्ताप । ३ दुःख, पीड़ा (महा, प्रौप)। (स्वप्न ५१), परितेजि (अप)। (पिंग)। परिणगाण वि [परिज्ञान] ज्ञान, जानकारी | यर वि [कर] दुःखोत्पादक (पउम परित्ता । सक [परि+त्र] रक्षण करना। (धर्मसं १२५३, उप पृ २७४) । ११०, ६)।
परित्ता परित्ताइ, परिताप्रसु, परित्ताहि, परिण्णाय देखो परिण्णा = परि + ज्ञा। परितावण देखो परितप्पण - परितापन परित्तायह (प्राकृ ७०; पि ४७६; हे ४, परिणाय वि [परिज्ञात] विदित, जाना
२६८)। (मौप)। हुआ (सम १६; प्राचा)।
परिताविअ विपरितापित] १ संतापित परित्ताइ वि [परित्रायिन् ] रक्षण-कर्ता (प्रौप)। २ तला हुआ (मोघ १४७)।
(सुपा ४०५)। परिणि वि [परिज्ञिन्] परिज्ञा-युक्त, 'गीयजुओ उ परिगणो तह जिणइ परीसहाणीय'
परितास परित्रास अकस्मात् होनेवाला परित्ताण न [परित्राण] रक्षण (से १४. भय (णाया १,१-पत्र ३३)।
३५; सुपा ७१; प्रात्मानु ८ सण)। (वव १)।
परित्ताणतय पुंन [परीतानन्तक] संख्यापरितंत वि [परितान्त ] सर्वथा खिन्न, परितुट्टिर वि[परित्रुटित] टूटनेवाला (सण)।
विशेष (अणु २३४)। निविएण (णाया १, ४-पत्र ६७; विपा | परितुट्ठ वि परितुष्ट] तोष-प्राप्त, संतुष्ट
परित्तास देखो परितास (कम्प)। १,१, उव)। (उवः चेइय ७०१)।
परित्तासंखेजय पुंन [परीतासंख्येयक] परितंबिर वि [परिताम्र विशेष ताम्रपरितुलिय वि [परितुलित] तौला हुआ
संख्या-विशेष (अणु २३४)। अरुण वर्णवाला (गउड)। (सण)।
परित्तीकय वि [परीत कृत] संक्षिप्त किया परितज सक [ परि + तर्जय ] तिरस्कार परितेजि देखो परित्तज।
हुप्रा, लघूकृत (गाया १, १-पत्र ६६)। करना । वकृ. परितज्जयंत (पउम ४८, १०)। | परितोल सफ [ परि + तोलय 1 उठाना। परित्तीकर सक [परीती + कृ] लघु करना,
परितोल सक [ परि + तोलय] उठाना। पारर परितड्डविय वि [परितत खूब फैलाया | वकृ. 'जुगवं परितोलंता खग्गं समरंगरण म्मि छोटा करना । परित्तीकरेंति (भग) । हुआ (सण)।
तो दोवि' (सुपा ५७२)।
परित्थोम न [परिस्तोम] १ मस्तक । २ वि. परितणु वि [परितनु अत्यन्त पतला (सुपा परितोस सक [परि + तोपय ] संतुष्ट वक्र 'चितपरित्थोमपच्छद' (ोप)।
करना । भवि, परितोसइस्सं (कपूर ३२)। परिथभिअ वि [परिस्तम्भित] स्तब्ध किया परितप्प अक [परि + तप्] १ संतप्त होना, परितोस पुं[परितोष] आनन्द, खुशी ।
त होना, परितोस पुं[परितोष] आनन्द, खुशी हुमा (सुपा ४७५)। गरम होना। २ पश्चात्ताप करना । ३ दुःखी । (नाट--मालवि २३)।
परिथु सक [परि + स्तु] स्तुति करना । होना । परितप्पइ (महा; उव); परितपति परितोसिय वि [परितोषित] संतुट किया
कवकृ. परिथुव्वंत (सुपा ६०७) । (सूत्र २, २, ५५), 'ता लोहभारवाहगनरुब्ब
परिथूर । वि [परिस्थूर] विशेष स्थूल, हुआ (सण)। परितप्पसे पच्छा' (धर्मवि ६)। संकृ. परित
परिथूल खूब मोटा (धर्मसं ८३८ चेइय प्पिऊण (महा)।
परित्त वि [परीत] १ व्याप्त (सिरि १८३)। ८५४ श्रा ११)। परितप्प सक [परि + तापय ] परिताप
२ प्रभ्रट (सूअ २, ६, १८)। ३ संख्येय, परिदा सक [परि + दा] देना। कर्म. परि
जिस की गिनती हो सके ऐसा (सम १०६)। दिज्जसु (अप), (पिंग)। उपजाना । परितप्पंति (सूप २, २, ५५)।
४ परिमित, नियत परिमाणवाला (उप परिदाह परिदाह] सैताप (उत्त २, परितप्पण न [परितपन] परितप्त होना ४१७)। ५ लघु, छोटा । ६ तुच्छ, हलका भग)। (सूत्र २, २, ५५)।
(अ २७०, ६६४)। ७ एक से लेकर परिदिण्ण वि [परित्त] दिया हुमा (अभि परितप्पण,न [परितापन] परिताप उपजाना असंख्येय जीवों का प्राश्रय, एक से लेकर १२५) । (सूम २, २, ५५)।
असंख्येय जीववाला (मोघ ४१)। ८ एक परिदिद्ध वि [परिदिग्ध] उपलिप्त (सुख परितलिअ वि [परितलित] तला हुआ जीववाला (पएण १)। करण न करण] २, ३७)। (प्रोघ ८८)।
लघुकरण (उप २७०)। जीव ' [जीव] परिदिन्न देखी परिदिण्ण (सुपा २२)। परितविय वि [परितप्त ] परिताप युक्त
एक शरीर में एकाकी रहनेवाला जीव (पएण परिदेव प्रक [परि + देव] विलाप करना । (सण)।
१)। गंत न [नन्त] संख्या-विशेष परिदेवर (उत्त २, १३)। वकृ. परिदेवंत परिताण न [परित्राण] १ रक्षण। २
(कम्म ४, ७१; ८३)। संसारिअ वि (पउम २६, ६२, ४५, ३६)। वागुरादि बन्धन (सूत्र १, १, २, ६) । [ संसारिक] परिमित संसारवाला (उप परिदेवण न [परिदेवन] विलाप, 'तस्स परिताव देखो परितप्प = परि + तापम् ।। ४१७)। सिंख न [संख्यात] संख्या- कंदणसोयणपरिदेवणताडणाई लिंगाई (संबोध कृ. परितावेयव्य (पि ५७०)। - विशेष (कम्म ४,७१, ७८)।
४६ संवे)।
।
एक
२, ३७) या परिदि
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