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परिच्छेअग-परिणम
पाइअसद्दमहण्णवो परिच्छेअग वि [परिच्छेदक] निश्चय करने- परिजुण्ण वि [परिजीर्ण] १ फटा-टूटा, परिट्रवणा स्त्री [प्रतिष्ठापना] प्रतिष्ठा कराना, वाला (उप ८५३ टो)।
अत्यन्त जीणं (प्राचा)। २ दुर्बल (उत्त २, वेयावच्चं जिणगिहरक्खणपरिटुवणाइजिणपरिच्छेज्ज वि[परिच्छेद्य] वह वस्तु जिसका १२)। ३ दरिद्र, निधन: 'परिजुएणो उ किच्चं' (चेइय ७७६)। क्रय-विक्रय परिच्छेद पर निमर रहता है- दरिदो (वव ४)।
परिट्रविय स्त्री [प्रतिष्टापित] संस्थापित रत्न, वस्त्र आदि द्रव्य (श्रा १८)।
परिजुण्णा देखो परिजुन्ना (ठा १०-पत्र (भवि)।। परिच्छेद देखो परिच्छेअ = परिच्छेद (धर्मसं ४७४ टी)।
परिट्ठा देखो पइट्ठा (हे १, ३८)। १२३१) ।
परिजुत्त वि [परियुक्त] सहित (संबोध १)। परिट्राइ वि[परिष्ठापिन] परित्यागी (नाटपरिच्छेदग देखो परिच्छे अग (धर्मसं ५०)। परिजुन्न देखो पारजुण्ण (उप २६४ टी)। साहि१६२)। परिच्छोय वि [परिस्तोक] थोड़ा, अल्प
। परिजुन्ना स्त्री [परिजीर्णा, परिघुना] प्रव्रज्या, परिहाण न [परिस्थान] परित्याग (नाट)। (प्रौप)। विशेष, दरिद्रता के कारण ली हुई दीक्षा
परिट्राय देखो परिव हेकृ. परिहावित्तए परिछेज देखो परिच्छेज्ज (था १८)। (ठा १०-पत्र ४७३) ।
(कप्प; पि ५७८)। परिजुसिय देखो परिझुसिय (ठा ४, १परिजंपिय वि [परिजल्पित
परिट्रावअ वि [परिस्थापक] परित्याग उक्त, कथित पत्र १८७ औप)। (सुपा ३६४)।
करनेवाला (नाट) परिजुसिय न [पर्युषित] रात्रि-परिवसन, परिजजर वि [परिजर्जर] प्रतिजीर्ण (उप
परिद्विअ वि [परिस्थित] संपूर्ण रूप से । रात का बासी रहना, बासी (ठा ४, २-पत्र
स्थित (पब ६६)। २६४ टी;६८६ टी)। २१६) । देखो परिउसि।
परिट्रिअ देखो पइट्ठिय (हे १, ३८ २, पपिजडिल वि [परिजटिल] अतिशय जटिल । परिजूर अक परि + जू] सर्वथा जीर्ण होनाः
२११ षड्। महाः सुर ३, १३)। (गउड)।
'परिजूरइ ते सरीरयं (उत्त १०, २६)। परिठव देखो परिव । परिठबहु (अप) परिजण देखो परिअण (उवा)।
परिजूरिय वि [परिजीण अतिजीर्ण (अणु)। (पिग)। परिजव सक [ परि + विच ] पृथक् करना,
परिजय पुं[दे] कृष्ण पुद्गल-विशेष (सुज्ज परिठवण देखो परिट्रवण = परिष्ठापन (पवअलग करना । संकृ. परिजविय (सूम २, २०)।
गाथा २४)। २, ४०)। । परिज्जुन्न देखो परिजूरिय (दस ६, २, ८)।
परिण देखो परिणी, 'परिणइ बहुयाउ खयरपरिजव सक [परि + जप्] १ जाप करना। । परिज्झामिय वि [परिध्यामित] श्याम
कन्नानो' (धर्मवि ८२) । वकृ. परिणत २ बहुत बोलना, बकवाद करना । संकृ. 'स । (काला) किया हुआ (निचू १)।
(भवि) । संकृ. परिणिऊण (महा: कुप्र ७६; भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामारणगामं दृइज- परिज्मुसिय । वि [परिजुष्ट] १ सेवित ।
१२७)। परिझुसिय २ प्रीत; परिझुसियकामभोमाणे णो पोहि सद्धि परिजविया २ गामापरिभूसिय ) गसंपयोगसंपउत्ते' (भग २५,
परिणइ स्त्री [परिणति परिणाम; (गा ५६८ गुगामं दूइज्जेजा' (प्राचा २, ३, २, ८)। । ७–पत्र ६२३, ६२५ टी। ३ परीक्षण,
धर्मसं ६२३)। परिजवण न [परिजपन] जाप, जपन, मन्त्र ठा ४, १-पत्र १८८ टी; पि २०६)। परिणत देखो परिण। पादिका पुनः पुनः उच्चारण (विसे ११४०;
परिट्ठव सक [परि + स्थापय् ] १ परि- परिणतु वि [परिणत] परिणाम को प्राप्त सुर १२, २०१)।
त्याग करना । २ संस्थापन करना । परिवेइ; होनेवाला. परिणत होनेवाला (विसे ३५३४)। परिजाइय वि [परियाचित] माँगा हुआ । परिवेज्जा (प्राचा २, १, ६, ५, उवा)। परिणंद सक [परि + नन्दु] वर्णन करना, (धर्मसं १०४५)।
संकृ. परिवेऊण, परिटुवेत्ता (बृह ४ | श्लाघा करनाः 'तारणं परिणंदंता (? ति) परिजाण सक [परि + ज्ञा] अच्छी तरह कस) । हेकृ. परिवेत्तए (कस) । वकृ. (तंदु ४०)। जानना । परिजाइ (उवा)। वकृ. परिजा- परिहवंत (निचू २) । कृ. परिदृप्प, परिणद्ध वि परिणद्ध] १ परिगत, वेष्टिता णमाण (कुमा)। कवक, परिजाणिज्जमाण परिटवेयव्व (उत्त १४, ६, कस)। "उंदुरमालापरिणद्धसुकर्याचधे' (उवा, पाया (णाया १, १, कुमा)। संकृ. परिजाणिया परिठ्ठवण न [प्रतिष्ठापन प्रतिष्ठा कराना १,८-पत्र १३३)। २ न. वेष्टन (णाया (सूअ १, १, १, १, १, ६, ६; १, ६, (चेइय ७७६) । १०) । कृ. परिजाणियव्य (प्राचाः पि परिवण न [परिष्ठापन] परित्याग (उवः । परिणम सक [परि + णम्] १ प्राप्त करना । पव १५२)।
२ अक. रूपान्तर को प्राप्त होना। ३ पूर्ण परिजिअ विपरिजित] सर्वथा जीत, जिस- परिट्रवणा स्त्री [परिष्टापना] ऊपर देखो, होना, पूरा होना; 'किराहलेसं तु परिणमे' पर पूरा काबू किया गया हो वह (विसे 'अविहिपरिटुवणाए काउस्सग्गो य गुरुसमी- (उत ३४, २२), 'परिणमइ अप्पमानो' ८५१)। घम्मि' (बृह ४)।
(स ६८४ भग १२, ५)। वकृ. परिणमंत,
संक परिवेऊण,
कस) । वकृ. । (तदु
प रिणद्ध] १ परिणत
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