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पडुल्ल-पढे
पाइअसहमहण्णवो जात (ठा ४, २); 'होति य पडुप्पन्नविणास- पड्डय पुं[दे] भैंसा, पाड़ा, गुजराती में [समवसरण] वर्षा-काल; 'बिइयसमोसरणं रणम्मि गंधग्विया उदाहरणं (दसनि १)।
'पाडो'; 'सो चेव इमो वसभो पड्डयपरिहट्टणं | उदुबद्धं तं पडच वासावासोग्गहो पढमसमोपडल्ल न [दे] १ लघु पिठर, छोटी थाली। २ सहई' (महा)।
सरणं भएणई (निचू १)। सरय पुं वि.चिरप्रसूत (दे ६, ६८)।
| पड्डला स्त्री [दे] चरण-घात, पाद-प्रहार (दे [शरत् ] मार्गशीर्ष मास (भग १५) । पड़वइअ वि [दे] तीक्ष्ण, तेज (दे ६, १४)।
'सुरा स्त्री [सुरा] नया दारू, शराब (दे)। पडुवत्ती स्त्री [दे] जवनिका, परदा (दे ६, पड्डस वि[दे] सुसंयमित, अच्छी तरह से पदमा स्वीप्रमा २२)। संयमित (दे ६, ६)।
(सम २६)। २ व्याकरण-प्रसिद्ध पहली पडह देखो पड्डुह। पडुइ (हे ४, १५४ पड्डाविअ वि [दे] समापित, समाप्त कराया
विभक्तिः ‘णि हेसे पढमा होइ' (अणु)। टि)। हुआ ( षड्)।
पढमालिआ स्त्री [दे. प्रथमालिका] प्रथम पडोअ वि [दे] बाल, लघु. छोटा (दे ६,६)। पड्डिया स्त्री [दे] १ छोटी भैंस, पाड़ी। २
भोजन (प्रोघ ४७ भा; धर्म ३)। पडोच्छन्न वि [प्रत्यवच्छन्न] आच्छादित,
छोटी गौ, बछिया (विपा १,२-पत्र २६)।
पढमिल्लवि [प्रथम] पहला, आद्य प्रावृत अट्टविहकम्मतमपडलपडोच्छन्ने'(उवा)। ३ प्रथमप्रसूता गौ। ४ नव-प्रसूता महिषी
पढमिल्लुअ (भगः श्रा २८ सुपा ५७; पि पडोयार सक [प्रत्युप + चारय् ] प्रतिकूल (वव ३)। पड्डी स्त्री [दे] प्रथम-प्रसूता (दे
पढमिल्लुग ४४६, ५६५: विसे १२२६ उपचार करना । पडोयारेति, पडोयारेह (भग
पढमुल्लअ ! (णाया १, ६-पत्र १४४, पड्ड आ स्त्री [दे] चरण-घात, पाद-प्रहार १५–पत्र ६७९) । पडोयारेउ (भग १५---
पढमेल्लुय बृह १; पउम ६२, ११; धरण पत्र ६७१)। पडोयारे (पि १५५)। कवकृ.
१६; सण)। पडोय (? या) रिजमाण, पडोयारेज्ज. पड डह अक [क्षुभ् ] क्षुब्ध होना। पड् डु.
पढाइद [शौ] नीचे देखो (नाट-चैत ८६)। माण (पि १६३; भग १५-पत्र ६७६)। हइ (हे ५, १५४; कुमा)।
पढाव सक [पाठय् ] पढ़ाना । पढावेद (प्राकृ पडोयार पुं[दे] उपकरण (पिंड २८)। पढ सक [पठ् ] १ पढ़ना, अभ्यास करना।
६०)। संकृ. पढाविऊण, पढावेऊण (प्राकृ २ बोलना, कहना। पढइ (हे १, १६६ पडोयार पुं [प्रत्युपचार] प्रतिकूल उपचार
६१)। हेकृ. पढाविउं, पढावेउं (प्राकृ (भग १५–पत्र ६७१, ६७६)। २३१)। कर्म, पढीअइ, पढिजइ (हे ३,
६१)। कृ. पढावणिज, पढाविअव्व पडोयार प्रत्यवतार] १ अवतरण । २ १६०)। वकृ. पढंत (सुर १०, १०३)।
(प्राकृ ६१)। कवकृ. पढिजंत, पढिजमाण (सुपा २६७) प्राविर्भावः 'भरहस्स वासस्स केरिसए आगार
पढावअ वि [पाठक अध्यापक (प्राकृ ६०)।
उप ५३० टी)। संकृ. पढित्ता (हे ४, भावपडोयारे होत्था' (भग ६, ७–पत्र २७६;
पढावण न [पाठन] पढ़ाना (कुप्र ६०) । २७१; षड् ), पढिअ, पढिऊण (शौ) (हे ७, ६--पत्र ३०५, प्रौप)।
पढाविअ वि [पाठित] पढ़ाया हुआ (सुपा पडोयार पुं [पदावतार] किसी वस्तु का ४, २७१), पढि (अप) (पिंग)। हेकृ.
४५३; कुप्र ६१)। पढिडं (गा २; कुमा)। कृ. पढियव्व, पदों में विचार के लिए अवतरण (ठा ४,
पढाविअवंत वि [पाठितवत् ] जिसने १-पत्र १८८)। पढेयव्व (पंसू १, वजा ६)। प्रयो. पढावइ
पढ़ाया हो वह (प्राकृ ६१)। पडोयार पुं[प्रत्युपकार उपकार का उपकार (कुप्र १८२)।
पढाविउवि [पाठयित अध्यापक (प्राकृ पढ [पढ] भारतीय देश-विशेष (इक)।
पढाविर ६०)। पडोयार पुं[दे] १ सामग्री। २ परिकर, | पढग वि [पाठक] पड़नेवाला (कप्प)। पढण न [पठन] पाठ, अभ्यास (विसे
। देखो पढ = पठ् । 'पायस्स पडोयार' (प्रोघ ३५२)।
| पढिअसापळ १० । पडोल पुंस्त्री [पटोल] लता-विशेष, परवल १३८४ कप्पू)।
पढिअ वि [पठित] पढ़ा हुआ (कुमाः प्रासू का गाछ (पएण १-पत्र ३२)।
पढम वि [प्रथम] १ पहला, प्राद्य (हे १, पडोहर न [दे] घर का पीछला माँगन (दे ५५; कप्प; उवा; भगः कुमा; प्रासू ४८ पढिजत ।
. देखो पढ़ = पठ् । ६, ३२: गा ३१३; काप्र २२४)।
६८)। २ नूतन, नया (दे)। ३ प्रधान, मुख्य पड्ड वि [दे] धवल, सफेद (दे ६, १)।
(कप्प)। करण न [°करण] प्रात्मा का पढिर वि [पठित] पढ़नेवाला (सण)। पडुस पु[दे] गिरि-गुहा, पहाड़ की गुफा (दे |
परिणाम-विशेष (पंचा ३)। कसाय पुं पढुक्क वि [प्रढौकित] भेंट के लिए उपस्था६,२)।
[कषाय] कषाय-विशेष, अनन्तानुबन्धी पित (भवि)। पड्डच्छी स्त्री [दे] भैस, 'पड्डुच्छिखीर' (प्रोष कषाय (कम्मप)। द्वाणि, ठाणि वि पदुम देखो पढम (हे १, ५५; नाट-विक्र ८७)।
स्थानिन्] अव्युत्पन्न-बुद्धि, प्रनिष्णात २६)। पड्डुत्थी श्री [दे] १ बहुत दूधवाली। २ (पंचा १९)। पाउस पु[प्रावृष्] पढेयव्व देखो पढ = पठ् । दोहनेवाली (दे ६,७०)।
भाषाढ़ मास (निचू १०)। 'समोसरण न पढे देखो पढाव । पढेइ (प्राकृ ६०)।
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