________________
५२८
पाइअसहमहण्णवो
पडिस्सुया-पडुप्पन्न पडिम्सुया देखो पडंसुआ (णाया १. ५)। पडिहाण देखो पणिहाणः 'मणदुपडिहाणे पडीणा स्त्री [प्रतीची] पश्चिम दिशा (ठा पडिस्सुया देखो पडिसुया = प्रतिश्रुता (ठा (उवा)।
६-पत्र ३५६७ सूत्र २, २, ५८)। १०-पत्र ४७३)।
| पडिहाण न [प्रतिभान] प्रतिभा, बुद्धि- पडीर ([दे] चोर-समूह, चोरों का यूथ (दे पडिहच्छ वि [दे] पूर्ण (सण) । देखो विशेष । "व वि[वत्] प्रतिभावाला (सूमा पडिहत्थ। १, १३, १४)।
पडीव वि [प्रतीप] प्रतिकूल, प्रतिपक्षी, पडिहटु भ[प्रतिहत्य अर्पण करके (कसः पडिहाय देखो पडिहा = प्रति + भा। पडिहा
विरोधी (भवि)। बृह ३)। यइ (स ४६१; स ७५६)।
पडु वि [पटु] निपुण, चतुर, कुशल (प्रौप; पडिहड पुं[प्रतिभट] प्रतिपक्षी योद्धा (से पडिहाय पुं [प्रतिघात] १ प्रतिहनन, घात
। कुमाः सुर २, १४५)। का बदला। २ निरोध, अटकाव, रोक
पडु (अप) देखो पडिअ = पतिन (पिंग)। पडिहण सक [प्रति + हन] प्रतिघात करना, (पउम ६, ५३)। प्रतिहिंसा करना । पडिहणति (उव)। पडिहार पुं[प्रतिहार] इन्द्र-नियुक्त देव (पव
पड़आलिअ वि [दे] १ निपुण बनाया पडिहणण न [प्रतिहनन] १ प्रतिघात । २ ३६) ।
हुना। २ ताड़ित, पिटा हुआ। ३ धारित वि. प्रतिघातक (कुप्र ३७)। | पडिहार पुंस्त्री प्रतिहार] द्वारपाल, दरवान
(दे ६, ७३)। पडिहणणा स्त्री [प्रतिहनन] पतिधात (ोघ | (हे १, २०६; गाया १,५; स्वप्न २२८ पडुक्खेव पुं[प्रत्युत्क्षेप १ वाद्य-ध्वनि । ११०)। अभि ७७) । स्त्री. 'री (बृह १)।
२ उत्थापन, उठान (अणु १३१)। पडिहणिय देखो पडिहय (सुपा २३)। पडिहारिय देखो पाडिहारिय (कस; पाचा पडुक्खेव पुं[प्रत्युत्थेप, प्रतिक्षेप १ वाद्यपडिहणिय देखोपडिभणिय (धर्मसं ७०८)। २, २, ३, १७:१८)।
ध्वनि । क्षेपण, फेंकना; 'समतालपडुक्खेवं' पडिहत्थ वि [दे] १ पूर्ण, भरा हुआ (दे ६, पडिहारिय वि [प्रतिहारित अवरुद्ध, रोका (ठा ७-पत्र ३६४)। २८; पापः कुप्र ३४ वजा १२६; उप पृ हुमा (स ५४६)।
पडुच्च प्र[प्रतीत्य] १ प्राश्रय करके (प्राचा १८१, सुर ४, २३६ सुपा ४८८); 'पडिह- पडिहास अक [प्रति + भास् ] मालूम
सून १,७ सम ३६; नव ३६)। २ अपेक्षा थबिबगहवइवप्रणेता वज्ज उजाणं (वान होना, लगना । पडिहासेदि (शौ) (नाट)।
करके (भग) । ३ अधिकार करके; 'पडुच्च त्ति १५)। २ प्रतिक्रिया, प्रतिकार, बदला। ३ वचन,पहासनिभामा निशा पनिभान
वा पप्प त्ति वा अहिकिञ्च त्ति वा एगट्ठा' वाणी (दे ६, १६)। ४ अतिप्रभूत (जीव । (हे १, २०६, षड्)।
(प्राचू १; अणु)। करण न [करण] ३) । ५ अपूर्व, अद्वितीय (षड् )।
पडिहासिय वि [प्रतिभासित] जिसका किसी की अपेक्षा से जो कुछ करना, प्रापेपडिहत्थ सक [दे] प्रत्युपकार करना, उपकार
प्रतिभास हुआ हो वह (उप ६८६ टी)। क्षिक कृति (बृह १)। भाव पुं [ भाव का बदला चुकाना । पडिहत्थेइ (से १२, पडिहुअपुं[प्रतिभू] जामीन, जामीन
सप्रतियोगिक पदार्थ, पापेक्षिक वस्तु (भास पडिहत्थ वि [प्रतिहस्त तिरस्कृत (चंड)। पडिहू
२८)। वयण न [°वचन आपेक्षिक वचन दार, मनौतिया (पान दे ५, ३८)।
पडिहू अक [ परि + भू] पराभव करना, पडिहत्या स्त्री [दे] वृद्धि (दे ६, १७)।
(सम्म १००)। सच्चा स्त्री ["सत्या] सत्य पडिहम्म देखो पडिहण । पडिहम्मेज्जा (पि | हराना । कवकृ. पडिहूअमाण (अभि ३६)।
भाषा का एक भेद, अपेक्षा-कृत सत्य वचन
(पएण ११)। ५४०)। भवि. पडिहम्मिहिइ (पि ५४६)। पडी स्त्री [पटी] वस्त्र, कपड़ा (गउड सुर ३,
पडुच्चा ऊपर देखोः 'जे हिंसंति प्रायसुहं डिहय वि [प्रतिहत] प्रतिघात-प्राप्त (प्रौपा कुमा; महा सण)। पडीआर [प्रतीकार] देखो पडिआर = |
पडुच्चा' (सूम १, ५, १, ४)। प्रतिकार (वेणी १७७; कुप्र ६१)। पडिहर सक [प्रति + ह] फिर से पूर्ण करना।
पडुजुवइ स्त्री [दे] युवति, तरुणी (दे ६, पडिहरइ (हे ४, २५६). पडीकर सक [प्रति + कृ] प्रतिकार करना ।
पडुत्तिया स्त्री [प्रत्युक्ति] प्रत्युत्तर, जवाब पडिहा अक [प्रति + भा] मालूम होना, पडीकरेमि (मै ६६) ।
(भवि)। लगना । पडिहाइ (वज्जा १६२; पि ४८७)। पडीकार देखो पडिआर (पएह १, १)।
पडुप्पण्ण) पुं [प्रत्युत्पन्न] १ वर्तमान पडिहा स्त्री [प्रतिभा] बुद्धि-विशेष, नूतन- पडीछ देखो पडिच्छ - प्रति = इष् । पडी
पडुप्पन्न । काल (ठा ३, ४)। २ वि. नूतन उल्लेख करने में समर्थ बुद्धि (कुमा)। छति (पि २७५)।
वार्तमानिक, वर्तमान काल में विद्यमान (ठा पडिहा देखो पडिहाय % प्रतिघात; 'पंचविहा पड़ीण वि [प्रतीचीन] पश्चिम दिशा से संबन्ध १०; भग ८,५; सम १३२; उवा) । ३ पडिहा पन्नत्ता, तं जहा, गतिपडिहा' (ठा ५, रखनेवाला (प्राचाः औप, ठा ५, ३) । वाय प्राप्त, लब्ध (ठा ४,२), 'न पडुप्पन्नो य से १-पत्र ३०३)।
। पुं[वात पश्चिम का वायु (ठा ७)। जहोचिनो माहारों (स २९१)। ४ उत्पन्न,
३१)।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org