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पडिच्छंद-पडिणिविट्ठ पाइअसहमहण्णवो
५१६ पडिच्छंद पुं [दे] मुख, मुँह (दे ६, २४)। पडिच्छिर वि [दे] सदृश, समान (हे २, पडिट्ठावअ देखो पइट्ठावय (नाट-बेणी पडिच्छग वि [प्रत्येषक] ग्रहण करनेवाला १७४)।
११२)। (निचू ११)।
पडिछंद देखो पडिच्छंदः ‘घडियं निपयडिछंद' पडिद्वाविद (शौ) देखो पइद्वाविय (प्रभि पडिच्छण न [प्रतीक्षण] प्रतीक्षा, बाट, राह (उप ७२८ टी) ।
१८७)। (उप ३७८)।
पडिछा स्त्री [प्रतीक्षा] प्रतीक्षण, बाट (मोघ पडिदिअ देखो पइट्रिय (षड् ; पि २२०)। पडिच्छण न [प्रत्येषण] १ ग्रहण, पादान, १७५)।
पडिठाण न [प्रतिस्थान] हर जगह (धर्मवि लेना । २ उत्सारण, विनिवारणः 'कुलिसपडि- पडिछाया देखो पडिच्छाया (चेइय ७५)। । च्छणजोग्गा पच्छा कडया महिहराण' (गउड)। पडिजंप सक [प्रति + जल्प् ] उत्तर देना। पडिण देखो पडीण (पि ८२ ६६)। पडिच्छणा [प्रत्येषणा] ग्रहण, पादान पडिजंपइ (भवि)।
पडिणव वि [प्रतिनव] नया, नूतन; 'तुरप्र(निचू १६)।
पडिजग्ग देखो पडिजागर = प्रति + जागृ।। पडिणवखुरघाद रिणरंतरखंडिदं' (विक्र २६) । पडिन्छण्ण। विप्रतिच्छन्न] आच्छादित, पडिजग्गइ (बृह ३)।
पडिणिसण न [दे] रात में पहनने का पडिच्छन्न पदका हुमा (णाया १,१-पत्र पडिजग्गय वि [प्रतिजागरक सेवा-शुश्रूषा बस्न (दे ६, ३६)। १३; कप्प)। करनेवाला (उप ७६८ टो)।
पडिगिअत्त प्रक [प्रतिनि+ वृत् ] पीछे पडिच्छय पुं[दे] समय, काल (दे ६, १६)। पडिजग्गिय वि[प्रतिजागृत] जिसकी सेवा- । लौटना, पोछे वापस जाना। पडिणियत्तई पडिच्छय देखो पडिच्छग (प्रौप)। शुश्रूषा की गई हो वह (सुर ११, २४)।। (प्रौप)। वकृ. पडिणिअत्तंत, पडिणिअत्तपडिच्छयण न [प्रतिच्छदन] देखो पडि- पडिजागर सक[प्रति + जागृ] १ सेवा- माण (से १३, ७५; नाट–मालती २६)। च्छायण (राज)। शुश्रूषा करना, निर्वाह करना, निभाना। २
संकृ. पडिणियत्तित्ता (प्रौप)। पडिच्छा स्त्री [प्रतीच्छा] ग्रहण, अंगीकार गवेषणा करना । पडिजागरंति (कप्प) । वकृ...
क. पडिणिअत्त । वि [प्रतिनिवृत्त पोछे लौटा (द्र ३३, सण)।
पडिजागरमाण (विपा १, १: उवा महा)। पडिणिउत्तहमा (गा९८ अ विपा १,५; पडिच्छायण न [प्रतिच्छादन] पाच्छादन- पडिजागर पुं [प्रतिजागर] १ सेवा-शुश्रूषा। उवा से १, २६ अभि १२४)। वस्त्र, प्रच्छादन-पट; 'हिरिपडिच्छायणं च नो २ चिकित्सा; 'भरिणो सिट्ठी प्रारणसु विजं
पडिणिकास वि [प्रतिनिकाश] समान, संचाएमि अहियासित्तए (प्राचा: गाया १, । पडिजागरठाए' (सुपा ५७६)।
तुल्य (राय ६७)। १-पत्र १५ टी)।
पडिजागरण न [प्रतिजागरण] ऊपर देखो।
'पडिणिक्खम अक [प्रतिनिर + क्रम् ] पडिच्छायण न [प्रतिच्छादन] आच्छादन, (वव ६)।
बाहर निकलना । पडिरिणक्खमइ (उवा)। आवरण (सुज २०)। पडिजागिरय देखो पडिजग्गिय (दे १,
संकृ. पडिणिक्खमित्ता (उवा)। पडिच्छाया स्त्री [प्रतिच्छाया] प्रतिबिम्ब, ४१) ।
पडिणिग्गच्छ अक [प्रतिनिर + गम् ] परछाई (उप ५६३ टी)। पडिजायणा स्त्री [प्रतियातना] प्रतिबिम्ब,
बाहर निकलना । पडिणिग्गच्छइ (उवा) । पडिच्छावेमाण देखो पडिच्छ - प्रति + इप्। प्रतिमा, परछाई (चेइय ७५) ।
संकृ. पडिणिग्गच्छित्ता (उवा)। पडिच्छिअ वि [प्रतीष्ट, प्रतीप्सित] १ पडिजुवइ स्त्री [प्रतियुवति] १ स्व-समान
मान पडिणिजाय सक [प्रतिनिर् + यापय ]
र गहीत, स्वीकृत (स ७,५४; उवा: पीप; सुपा अन्य युवति । २ सपत्नी (कुप्र ४)।
अपंग करना। पडिणिज्जाएमि (गाया १, ५४)। २ विशेष रूप से वाञ्छित (भग)। पडिजोग प्रतियोग] कामण आदि योग ७–पत्र ११८)। पडिच्छिअ देखो पडिच्छ % प्रति + इष् । का प्रतिघातक योग, चर्ण-विशेष (सुर ८, पडिणिभ वि [प्रतिनिभ] १.सदृश, तुल्य, पडिच्छिआ स्त्री [दे] १ प्रतिहारी । २ चिर- २०४।
बराबर । २ हेतु-विशेष, वादी की प्रतिज्ञा का काल से ब्यायी हुई भंस (दे ६,२१)। पडिट्र वि[ पटिष्ठ ] अत्यन्त निपुण, बहुत खंडन करने के लिए प्रतिवादी की तरफ से पडिच्छिउँ
चतुर (सुर १, १३५; १३, ६६)। पडिच्छि ऊण देखो पडिच्छ प्रति + इ ।।
प्रयुक्त समान हेतु-युक्ति (ठा ४, ३)। पडिच्छियव्य पडिट्टविअ वि [परिस्थापित संस्थापित (से
पडिणिवत्त देखो पडिणिअत्त = प्रतिनि + पडिच्छिर वि [प्रतीक्षित प्रतीक्षा करने- ५, ५२)।
वृत् । वकृ. पडिणिवत्तमाण (नाट. रत्ना वाला, बाट देखनेवाला (वज्जा ३६)। पडिविअ वि [प्रतिष्ठापित] जिसकी पडिचिळय विप्रातीच्छिका अपने दीक्षा- प्रतिष्ठा की गई हो वह (अच्चु ६४)। पडिणिवत्त देखो परिणित प्रतिनिवत गुरु की आज्ञा लेकर दूसरे गच्छ के भाचार्य पडिट्ठा देखो पइट्ठा (नाट–मालती ७०)। (काल)। के पास उनकी अनुमति से शास्त्र पढ़नेवाला पडिवाव सक [प्रति + स्थापय ] प्रतिष्ठित पडिणिविट्ठ वि [प्रतिनिविष्ट] द्विष्ट, द्वेषमुनि (णंदि ५४)।
करना । पडिट्ठावेहि (पि २२०; ५५१)। युक्त (पएह १,१-पत्र ७)।
५४)।
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