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पाइअसहमहण्णवो
पडिक्खाविअ-पडिच्छंद पडिक्खाविअ वि [प्रतीक्षित] १ स्थापित। पडिग्गह पुं [पतग्रह, प्रतिग्रह] १ पात्र, पडिचरणा देखो पडिअरणा (राज)।
२ कृतः 'विरमालिन संसारे जेण पडिक्खा- भाजन (पएह २, ५ प्रौपः प्रोध ३६; २५१ पडिचार पुं [प्रतिचार] कला-विशेष-१ वित्रा समयसत्था' (कुमा)।
दे ५, ४८ कप्प) । २ कर्म प्रकृति-विशेष, वह ग्रह प्रादि की गति का परिज्ञान । २ रोगी पडिक्खिअ वि[प्रतीक्षित] जिसकी प्रतीक्षा
प्रकृति जिसमें दूसरी प्रकृति का कर्म-दल को सेवा-शुश्रूषा का ज्ञान (जं २ प्रौप; स की गई हो वह (दे ८, १३)।
परिणत होता है (कम्मप)। धारि वि
[धारिन्] पात्र रखनेवाला (कप्प)। पडिक्खित्त वि [परिक्षिप्त] विस्तारित
पडिचारय पुंस्त्री [प्रतिचारक] नौकर, (अंत ७)।
पडिग्गहिअ वि [प्रतिग्रहिन, पतग्रहिन] कर्मकर । स्त्री. 'रिया (सुपा ३०४) । पडिखंध न [दे] १ जल-वहन, जल भरने
पात्रवाला; 'समणे भगवं महावीरे संवच्छरं पडिचोइज्जमाण देखो परिचोय । का दृति आदि पात्र । २ जलवाह, मेघ, बादल साहियं मासं जाव चीवरधारी होत्था,
पडिचोइय वि [प्रतिचोदित] १ प्रेरित (उप (दे, २८)। तेण परं अचेलए पाणिपडिग्गहिए' (कप्प)।
पृ ३६४)। २ प्रतिभणित, जिसको उत्तर पडिखंधी स्त्री [दे] ऊपर देखो (दे ६,२८)। पडिग्गहिद (शौ) वि [प्रतिगृहित् , परि
दिया गया हो वह (पउम ४४, ४६)। पडिखद्ध वि [A] हत, मारा हुमा (?);
गृहीत] स्वीकृत (नाट-मृच्छ ११०) रत्ना
पडिचोएत्तु वि [प्रतिचोदयित] प्रेरक (ठा १२)। 'किमेइणा सुणहपाएण पडिखद्धेण' (महा)।
पडिगगाह देखो पडिगाह । पडिग्गाहेइ पडिखल देखो पडिक्खल (भवि)। कर्म,
पडिचोय सक [प्रति + चोदय् ] प्रेरणा पडिखलियइ (कुप्र २०५)। (उवा) । संकृ. पडिग्गाहेत्ता (उवा)। हेकृ. |
करना। पडिचोएंति (भग १५)। कवकृ. पडिग्गाहेत्तए (कसः औप)। पडिखलण देखो पडिक्खलण (धर्मवि ५६)।
पडिचोइज्जमाण (भग १५–पत्र ६७६)। पडिखलिअ वि [प्रतिस्खलित] १ रुका पडिग्गाह सक [प्रति + ग्राह्य ] ग्रहण
पडिचोयणा स्त्री [प्रतिचोदना] प्रेरणा हुमा (भवि)। २ रोका हुमा; 'सहसा तत्तो कराना । कृ. पडिग्गाहिदव्य (शौ) (नाट)।
(ठा ३, ३, भग १५-पत्र ६७६)। पडिखलिनो अंगरक्खेण' (सुपा ५२७) । पडिग्गाहय वि [प्रतिग्राहक] प्रत्यादाता,
पडिचोयणा स्त्री [प्रतिचोदना] निर्भत्सना, देखो पडिक्खलिअ। वापस लेनेवाला (दे ७, ५६)।
निष्ठुरता से प्रेरणा (विचार २३८)। पडिखिज्ज अक [परि + खिद् ] खिन्न होना, पडिग्घाय पुं[प्रतिघात] १ निरोध, अटकाव
पडिच्चारग देखो पडिचारय (उप ९८६ क्लान्त होना। पडिखिजदि (शौ) (नाट
(दस ६, ५८) । २ विनाश (धर्मवि ५४)। । मालती ३१)। पडिघाय पुं [प्रतिघात] १ नाश, विनाश ।
पडिच्छ देखो पडिक्ख। वकृ. पडिच्छंतः पडिगमण न [प्रतिगमन] व्यावर्तन, पीछे । २ निराकरण, निरसनः 'दुक्खपडियायहे'
'अहिसेयदिणं पडिच्छमाणो चिट्टई' (उव: लौटना (वव १०)। (प्राचा; सुर ७, २३४)।
स १२५; महा)। कृ. पडिच्छियव्व पडिगय Q[प्रतिगज] प्रतिपक्षी हाथी (गउड)। पडिघायग वि [प्रतिघातक प्रतिघात करने- (महा)। पडिगय पुं [प्रतिगत] पीछे लौटा हुआ, | वाला (उप २६४ टी)।
पडिच्छ सक [प्रति + इष् ] ग्रहण करना। वापस गया हुआ (विपा १, १; भग पौफ पडिघोलिर वि[प्रतिपूर्णित] डोलनेवाला, ! पडिच्छइ, पडिच्छति (कप्प; सुपा ३६) । महा, सुर १, १४६)। हिलनेवाला (से ६, ५१)।
वकृ. पडिच्छमाण, पडिच्छेमाण (औपः पडिगह देखो पडिग्गह (दे ४, ३१)। पडिचंत पुं[प्रतिचन्द] द्वितीय चन्द्र, जो
कप्पा रणाया १, १)। संकृ. पडिच्छइत्ता, पडिगाह सक [प्रति + ग्रह. ] ग्रहण
उत्पात आदि का सूचक है (अणु)।
पडिच्छिअ, पडिच्छिउं, पडिच्छिऊण करना, स्वीकार करना। पडिगाहइ (भवि)। पडिचक्क न [प्रतिचक्र] अनुरूप चक्र—समु
(कप्पा अभि १८५; सुपा ८७ निचू २०) । पडिगाह, पडिगाहेहि (कप्प) । संकृ. पडिगादाय (राज)। देखो पडियक = प्रतिचक्र ।
हेकृ. पडिच्छिउं (सुपा ७२)। कृ. पडिहिया, पडिगाहित्ता, पडिगाहेत्ता (कप्प;
च्छियव्व (सुपा १२५; सुर ४, १८९)। प्राचा २, १, ३, ३)। हेकृ. पडिगाहित्तए पडिचर देखो पडिअर = प्रति = चर । संकृ.
प्रयो, कर्म, पडिच्छावीअदि (शौ) (पि पडिचरिय (दस ६, ३)। कृ. 'संजमो
५५२, नाट)। वकृ. पडिच्छावेमाण पडिगाहग वि [प्रतिग्राहक] ग्रहण करने पडिचरियव्वो' (माव ४)।
(कप्प)। वाला (गाया १, १-पत्र ५३; उप पू पाडचर सक [प्रति + चर Jपरिभ्रमण पडिच्छंद घुन [प्रतिच्छन्द] १ मूत्ति, प्रति२६३)। करना। पडिचरइ (सुज्ज १, ३)।
बिम्ब (उप ७२८ टी. स १६१, ६०६)। पडिगाहिय वि [प्रतिगृहित] लिया हुआ, पडिचरग पुं [प्रतिचरक] जासूस, चर पुरुष २ तुल्य, समान (से ८, ४६)। कय वि उपात्त (सुपा १४३)। ! (बृह १)।
[कृत समान किया हुआ (कुमा)।
टी)।
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