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पाइअसहमहण्णवो
णिब्भच्छिअ-णिम्म
णिभच्छिा वि [निर्भसित] अपमानित, णिभिअ । देखो णिहुअ (परह २, ३, गा (सूघ २, २) । ३ शास्त्र-विशेष, भविष्य प्रादि अवहेलित (गा ८६८; सुपा ४.७)। णिभुअ J८००)।
जानने का एक शास्त्र (ोघ १६; भा ८)। णिन्भय बि [निर्भय] भय-रहित, निडर णिभेल सक [निर् + भेलय ] बाहर करना। ४ अतीन्द्रिय ज्ञान में कारण-भूत पदार्थ (ठा (णाया १, ४, महा)।
कवकृ.णिभेल्लंत (पएह १, ३-पत्र ४५)। ८)। ५ जैन साधुनों की भिक्षा का एक दोष णिभर सक[निर+भृ] भरना, पूर्ण णिभेलण नदे] गह, घर, स्थान (कप्प)। (ठा ३, ४) । पिंड [पिण्ड भविष्य करना । कवकृ. णिब्भरत (से १५, ७४)। णिम सक नि+असा स्थापन करना ।
प्रादि बतला कर प्राप्त की हुई भिक्षा (आचा णिभर वि [निभर] १ पूर्ण, भरपूर (से १०, णिमइ (हे ४, १६६ षड् )। णिमेइ (पि
२, १,६)। १७)। २ व्यापक, फैलनेवाला (कुमा)। ३
११८) । वकृ. णित (से १, ४१)।
णिमित्ति वि [निमित्तिन्] निमित्त-शास्त्र का क्रिवि. पूर्ण रूप से 'मेघो य रिणब्भरं वरिसई'
जानकार (कुप्र ३७८)। णिमंत सक [नि + मन्त्रय ] निमन्त्रण देना, (प्रावम)।
णिमित्तिअ देखो मित्तिअ (सुपा ४०२) ।
न्यौता देना । रिणमंतेइ (महा)। वकृ. गिनणिभिद सक [निर + भिताड़ना, विदा
णिमिल्ल अक [नि+मोल ] भाँख मूंदना,
तेमाण (प्राचा २, २. ३) । संकृ.णिमंतिरण करना । कवकृ णिभिजत, णि भ
प्राख मोचना । रिणमिल्लइ (हे ४, २३२) । जमाग (से १४, २६, भग १८, २, जीव ऊण (महा)।
णिमिल्ल वि [निमीलित जिसने नेत्र बंद णिमंतण न [निमन्त्रग] निमन्त्रण, न्यौता,
किया हो, मुद्रित-नेत्र (से ६,६१, ११, ५०)। णिभिच वि [निर्भीक] भय-रहित, निडर
बुलावा (उप पृ ११३)।
णिमिल्लण देखो णिमीलण (राज)। (सुपा १४३, २४६; २७५) । | णिमंतणा स्त्री [निमन्त्रणा] ऊपर देखो (पंचा
णिमिस अक [नि + मिष् ] आँख मूदना ।
१२)। णिभिज्जत र णिमंतिय वि [निमन्त्रित] जिसको न्यौता
निमिसंति (तंदु ५३)। णिभिज्जमाण देखा गणाच्भद।
णिमिस पुं [निमिष] नेत्र-संकोच, अक्षिपिडिभट्ट वि [दे] आक्रान्त (भवि) ।
दिया गया हो वह (महा)।
णिमग्ग वि [निमग्न] डूबा हुआ (पउम णिनिभण्ण वि [निर्भिन्न] १ विदारित, तोड़ा
मीलन, पलक मारने भर का समय (गा ३८५;
सुपा २१६; गउड)। हुआ (पान) । २ विद्ध (से ५, ३४)। १०६, ४; प्रौप)। जला स्त्री [°जला]
णिमीलण न [निमीलन] अक्षि-संकोच (गा
नदी-विशेष (जं ३)। णिभीअ वि [निर्भीक] भय-रहित, निडर
३६७, सून १, ५, १, १२ टी)। (से १३, ७०)। णिमज्ज अक [नि+मरज] डूबना, निम
|णिमीलिअ वि [निमीलित] मुद्रित (नेत्र) णिभुग्ग वि [दे] भग्न, खण्डित (दे ४, जन करना। णिमजइ (पि ११८) । वकृ.
(गा १३३; से ६, ८६ महा)। ३२)। णिमज्जंत (गा ६०६, सुपा १४)।
निमिश्री एक विद्याधर-नगर णिभुय देखो णिभुअ (चेइय ५८६)। णिमज्जग विनिमज्जका १ निमजन करनेणिब्भव [निर्भेद] भेदन, विदारण (सुपा वाला। पुं. वानप्रस्थाश्रमी तापस-विशेष, जो णिमे सक [नि+मा] स्थापन करना । ३२७)।
स्नान के लिए थोड़े समय तक जलाशय में णिमेसि (गउड)। णिब्भेयण न [निर्भेदन] ऊपर देखो (सुर । निमग्न रहते हैं (प्रौप)।
णिमेण न [दे] स्थान, जगह (दे ४, ३७) । २, ६६)।
णिमज्जण न [निमज्जन] डूबना, जल-प्रवेश णिमेल स्त्रीन [दे] दन्त-मांस (दे ४, ३०) । णिभरिय वि [निर्भरित] प्रसारित, फैलाया (सुपा ३५४)।
स्त्री. °ला (दे ४, ३०)। हुअा (उन १२, २६)।
णिमाणिअ देखो णिम्माणि - निर्मानित णिमेस पुं[निष] निमीलन, अक्षि संकोच, णिभ देखो णिह = निभ (उवः जं ३)। (भवि)।
पलक का गिरना, पलक (श्रा १६; उव)। णिभच्छा देखो णिभच्छण (पिंड २१०)। णि म सक [नि + युज ] जोड़ना। णिमेइ णिमेसि देखो णिमे । णिभंग पुं[निभङ्ग भजन, खण्डन, त्रोटन (प्राकृ ६७)।
णिमेसि वि [निमेपिन] प्रांख मूंदनेवाला णिमिअ विन्यस्त स्थापित, निहित (कुमाः ।
मा (सुपा ४४)। णिभाल सा [नि+भालय 1 देखना, से १, ४२; स ६, ७६० सण)।
णिम्म सक [निर + मा] बनाना, निर्माण निरीक्षण करना । रिणभालेहि (प्रावम)। णिमिअ वि [दे] पाघ्रात, सूंघा हुआ (षड् )। करना । णिम्मइ (षड्)। णिम्मेइ (धम्म वकृ. णिमालयंत (उप पृ ५३) । कवकृ. णिमिण देखो णिम्माण = निर्माण (कम्म १, १२ टी) । कवकृ. णिम्माअंत (नाटणिमालिजंत (उप ६८६ टी)। २५)।
मालती ५४)। णिमालिय वि [निभालिस] दृष्ट, निरीक्षित णिमित्त न [निमित्त] १ कारण, हेतु (प्रासू णिम्म पुंस्त्री [नैम] जमीन से ऊँचा निकलता (उप पृ ५८)।
१०४)।२ कारण-विशेष, सहकारि कारण प्रदेश (राय २७) ।
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