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आता है। आचार्य हेमचन्द्र के प्राकृत-व्याकरण के अनुसार उक्त लुप्त व्यजनों के दोनों तरफ अवर्ण (म या मा) होने पर लुप्त व्यञ्जन के स्थान में 'य' होता है। 'गउडवहो' में यह 'य' अधिक मात्रा में (उक्त व्यञ्जनों के पूर्व में अवर्ण-भिन्न स्वर रहने पर भी) पाया जाता है। परन्तु जैन अर्धमागधी में, जैसा हम ऊपर देख चुके हैं, प्रायः उक्त व्यञ्जनों के स्थान में अन्य अन्य व्यञ्जन होते हैं और कहीं कहीं तो वही व्यजन कायम रहता है। हाँ, कहीं कहीं उक्त व्यञ्जनों के स्थान में अन्य व्यञ्जन होने या वही व्यञ्जन रहने के बदले महाराष्ट्री की तरह लोप भी देखा जाता है; किन्तु यह लोप वहाँ पर ही देखने में आता है जहाँ उक्त व्यञ्जनों के बाद प्र या प्रा से भिन्न कोई स्वर होता है। जैसे—लोकः = लोमो, रोचित = रोइत, भोजिन् = भोइ, पातुर = पाउर, प्रादेशि = पाएसि, कायिक = काइय, प्रावेश - पाएस वगैरह। शब्द के आदि में, मध्य में और संयोग में सर्वत्रण की तरह न भी होता है। जैसे-नदी = नई, ज्ञातपुत्र = नायपुत्त,
पारनाल = प्रारनाल, अनल = मनल, अनिल = अनिल, प्रज्ञा = पन्ना, अन्योन्य = अन्नमन्न, विज्ञ = विन्नु, सर्वज्ञ = सव्वन्नु इत्यादि । ११. एव के पूर्व के प्रम् के स्थान में माम् होता है; यथा-यामेव = जामेव, तामेव = तामेव, क्षिप्रमेव = खिप्पामेव, एवमेव = एवामेव,
पूर्वमेव = पुवामेव इत्यादि । १२. दीर्घ स्वर के बाद के इति वा के स्थान में ति वा और इ वा होता है। जैसे-इन्द्रमह इति वा= इंदमहे ति वा, इंदमहे.इ
वा इत्यादि। १३. यथा और यावत् शब्द के य का लोप और ज दोनों ही देखे जाते हैं; जैसे-यथाख्यात = प्रहक्खाय, यथाजात = महाजात, यथानामक = जहाणामए, यावत्कथा=प्रावकहा, यावजीव = जावजीव ।
वर्णागम १. गद्य में भी अनेक स्थलों में समास के उत्तर शब्द के पहले म आगम होता है; यथा-निरयंगामी, उर्दुगारव, दीहंगारव,
रहस्संगारव, गोणमाइ, सामाइयमाइयाई, मजहएणमणुक्कोस, मदुक्खमसुहा आदि । महाराष्ट्री के पद्य में पादपूर्ति के लिए ही कहीं कहीं म् आगम देखा जाता है, गद्य में नहीं।
शब्द-भेद १. अर्धमागधी में ऐसे प्रचुर शब्द हैं जिनका प्रयोग महाराष्ट्री में प्रायः उपलब्ध नहीं होता; यथा-प्रज्झत्थिय, प्रज्झोव
वरण, प्रणवीति, माधवणा, माघवेत्तग, प्राणापाणू, प्रावीकम्म, कण्हुइ, केमहालय, दुरूढ, पचत्थिमिल्ल, पाउकुवं, पुरथिमिल्ल, ...पोरेवच, महतिमहालिया, वक्क, विउस इत्यादि। २. ऐसे शब्दों की संख्या भी बहुत बड़ी है जिनके रूप अर्धमागधी और महाराष्ट्री में भिन्न भिन्न प्रकार के होते हैं।
उनके कुछ उदाहरण नीचे दिए जाते हैं :अर्धमागधी महाराष्ट्री
अर्धमागधी
महाराष्ट्री अभियागम अब्भाप्रम
तच्च (तथ्य)
तच्छ माउंट माउंचरण
तेगिच्छा
चिइच्छा माहरण उग्राहरण
दुवालसंग
बारसंग उप्पि उवरि, प्रवरि
दोच्च
दुइम किया किरिया
नितिय
रिणच कीस, केस केरिस
खिमम केवचिर किचिर
पडुप्पन्न
पच्तुप्परण पच्छेकम्म
पच्छाकम्म चियत्त चइम पाय (पात्र)
पत्त छच छक्क पुढो (पृथक् )
पुर्ह, पिह जाया जत्ता पुरेकम्म
पुराकम्म रिणगण, णिगिण (नग्न) गुग्ग
पुब्वि णिगिणिण (नाग्न्य) रगग्गत्तण माय (मात्र)
मत्त, मेत्त ६ तच्च (तृतीय)
माहण
बम्हण
निएय
गेहि
गिद्धि
पुवं
तम
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