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ढंढसिअ-ढोअ
पाइअसहमण्णवो ढंढसिअ [दे] १ ग्राम का यक्ष । २ गाँव दोष, बड़े स्वर से प्रणाम करना (गुभा २५)। ढिल्ल वि [दे] ढीला, शिथिल (पि १५०)। का वृक्ष (दे ४, १५)।
३ वि. वृद्ध, बूढ़ा; 'ढडर-सड्डाण मग्गेण । ढिल्ली स्त्री [ढिल्ली] भारतवर्ष की प्राचीन ढंढुल्ल देखो ढंढल्छ । ढंढुल्लइ (सण)। (साधं ३८)।
और अद्यतन राज-धानी, दिल्ली शहर (पिंग)। ढंढोल सक [गवेषय ] खोजना, अन्वेषण ढणिय वि [ध्वनित] शब्दित, ध्वनित (सुर | | 'नाह पुं[नाथ दिल्ली का राजा (कुमा)। करना । ढंढोलइ (हे ४, १८६)। संकृ. | १३, ८४)।
ढुंदुल्ल सक [भ्रम् ] घूमना, फिरना, चलना। ढंढोलिअ (कुमा)।
ढमर न [दे] १ पिठर, स्थाली या थाली (दे | दुहुल्लइ (हे ४, १६१) । ढुठुल्लन्ति (कुमा)। ढंढोल्ल देखो ढुंदुल्ल । संकृ. ढंढोल्लिवि ४, १७ पात्र)। २ गरम पानी, उष्ण जल ढुंढुल्ल सक [गवेषय् ] हूँढ़ना, खोजना, (सण)। (दे ४, १७)।
अन्वेषण करना । ढु'ढुल्लइ (हे ४, १८६)। ढंस अक [वि + वृत् ] धसना, धसकर ढयर पु [दे] १ पिशाच (दे ४, १६ दुंदुल्लग न [गवेषण] खोज, अन्वेषण (कुमा)।रहना, गिर पड़ना। ढंसइ (हे ४, ११८)। पाय) । २ ईर्ष्या, द्वेष (दे ४, १६) । दुंदुल्लिअ वि [गवेषित] अन्वेषित, ढूँढा हुमा वकृ, ढंसमाण (कुमा)।
ढल अक [दे] टपकना, नीचे पड़ना, (पास)। ढंसयन [दे] अयश, अपकीति (दे ४,१४) गिरना। २ झुकना। वकृ ढलंत (कुमा); दुक्क सक [ढोक्] १ भेंट करना, अर्पण ढक्क सक [छादय् ] १ ढकना, आच्छादन ढलतसेयचामरुप्पीलो' (उप ६८६ टी)।
करना। २ उपस्थित करना । ३ प्रक, लगना, करना, बन्द करना । ढक्कइ (हे ४, २१)। ढलिय विदे1 झुका हुमा (अ पृ११८)।
प्रवृत्ति करना। ४ मिलना। वकृ. दुक्कंत भवि. ढक्किस्सं (गा ३१४)। क. 'डक्किढाल सक [दे] १ ढालना, नीचे गिराना ।
(पिंग)। कवकृ. दुक्कंत (उप १८६ टी; ज्जउ कूवाई (सुर १२, १०२)। संकृ. २ झुकाना, चामर वगैरह का वीजना।
पिंग)। 'तत्थ ढक्किडं दार', ढक्किऊण, ढक्केढालए (सुपा ४७)।
ढुक्क सक [प्र + विश] ढुकना, घुसना, ऊण (सुपा ६४०) महाः पि २२१)। कृ. ढलहलय वि[दे] मृदु, कोमल, मुलायम (वजा प्रवेश करना। ढुक्कइ (प्राकृ ७४) । ढक्केयव्य (दस २)। ११४)।
दुक्क वि [दे. ढोकित] १ उपस्थित, हाजिर ढक्क पुं [ढक्क] १ देश-विशेष । २ देश- | ढलिय वि [दे] गिरा हुआ, स्खलित (वजा | (स २५१) । समालत (पिग)। ३ प्रवृत्ता विशेष में रहनेवाली एक जाति (भवि)। ३
वितिउं ढुक्को' (श्रा २७ सण भवि)। भाट की एक जाति (उप पृ ११२)। ढालिअ वि [दे] नीचे गिराया हमा, ढुक्कलुक्क न [दे] चमड़े से मढ़ा हया ढक्कय न [दे] तिलक (दे ४, १४)। 'सीसामो ढालिगो सूरो (सुर ३, २२८)।
वाद्य-विशेष (सिरि.४२६) । ढक्करि वि [दे] अद्भुत, पाश्चर्य-जनक | ढाव पुं[दे] अाग्रह, निबन्ध (कुमा)।
दुक्किअ वि [ढौकित] ऊपर देखो (पिंग)।
दुम ) सक[भ्रम् ] भ्रमण करना, घूमना। (हे ४, ४२२)। | लिंक पुं [ढिङ्क] पक्षि-विशेष (पएह १, १
ढुस । ढुम ढुसइ (हे ४, १६१, कुमा)। ढक्कवत्थुल देखो ढंक-वत्थुल (पव ४)। पत्र ८)।
दुरुतुल्ल देखो दुंदुल्ल = भ्रम् । वकृ. दुरुङल्लंत ढक्का स्त्री [ढक्का ] वाद्य-विशेष, रंका, लिंकण [दे] क्षुद्र जन्तु-विशेष, गौ
(वजा १२८)। हिंकुध मादि को लगनेवाला कीट-विशेष नगाड़ा, डमरू (गा ५२६; कुमाः सुपा २४२)।
ढेंक पुं [ ढेङ्क] एक जल पक्षी, पक्षि-विशेष
(राव जी १८) ढक्किअ वि [छादित] बन्द किया हुआ,
(वज्जा ३४)। ढिंकलीआ श्री [दे] पात्र-विशेष (सिरि ढंका स्त्री [दे] १ हर्ष, खुशी। २ ठेकुवा, आच्छादित (स ४६६ कुमा)।
४२६)। ढकि न [दे] बैल की गर्जना (अणु
लॅकली, कूप-तुला (दे ४, १७)।ढिंग देखो ढिंक (राज) २१२; सुख ६, १)।
ढेंकिय देखो ढिक्किय (राज)। ढिंढय वि [दे] जल में पतित (दे ४,१५)। ढग्गढग्गा स्त्री [दे] 'ढग-ढग' आवाज,
ढेकी स्त्री [दे] बलाका, बक-पंक्ति (दे पानी वगैरह पोने की आवाजः 'सोरिणयं
ढिक्क अक [गजे ] साँड़ का गरजना। ४, १५)। ढग्गढग्गाए घोट्टयंतो' (स २५७) ।
ढिक्कइ (हे ४, ६९)। वकृ. ढिक्कमाण ढेकुण पुं[दे] मत्कुण, खटमल (दे ४, १४)। (कुमा)।
ढिअ वि [दे] धूपित, धूप दिया हुआ ढज्जंत देखो डज्मंत (पि २१२; २१९)।
ढिक्कय न [दे] नित्य, हमेशा, सदा (दे डड्ढ पु [दे] भेरी, वाद्य-विशेष (दे ४, १५)।
ढेणियालग। पुस्त्री [डेणिकालक] पक्षि| ढिक्किय न [गर्जन] साँड़ की गर्जना ढेणियालय विशेष (पएह १, १)। स्त्री. ढड्ढर पुं [ दे ] राहु (सुज्ज २०)।
लिया (अनु ४)। ढड्ढर पु[दे] १ बड़ी प्रावाज, महान ध्वनि | ढिढिस न [ढिढिस] देव-विमान-विशेष | ढेल वि [दे] निधन, दरिद्र (दे ४, १६)।(प्रोध १५६) । २ न. गुरु-वन्दन का एक , (इक) ।
ढोअ देखो दुक्क = ढोक । ढोएज्जह (महा)।
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