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पाइअसहमहण्णवो
डोंबिलग-ढंढल्लिअ
म्लेच्छ-जाति, डोम (पएह १, १, इक पव भूलना। २ संशयित होना, सन्देह करना। डोलायमाण देखो डोलाअंत (निचू १०)। ६)। ३ देखी डुंब (पास)। वकृ. डेलंत (अच्चु ६०)।
डोलाविय वि [दोलित] कम्पित, हिलाया डोंबिलगा दे] १म्लेच्छ देश-विशेष । २ डोल पुं[दे] १ लोचन, पाख, नयना गुज- हुआ (पउम ३१, १२४)। डोंबिलय ) एक अनार्य जाति (पएह १, १; राती में 'डोलो' (दे४,६)। २ जन्तु-विशेष डोलिअ पुंदे] कृष्णसार, काला हिरन (दे इक)। ३ डोम, चाण्डाल (स २८६)।
(बृह १)। ३ फल-विशेष (पंचव २)। ४, १२)
बोल तारिदिय जीव की एक जाति डोलिर वि[ दोलावत् ] डोलनेवाला, काँपनेडोकरी स्त्री [दे] बूढ़ी स्त्री (कुप्र ३५३)।
वाला; 'दरडोलिरसीस' (कुमा)। डोड [दे] ब्राह्मण, विप्र (सुख ३, १)। (उत्त ३६, १४८; सुख ३६, १४८)।
डोल्लगग पु[दे] पानी में होनेवाला जन्तुडोडिणी स्त्री [दे] ब्राह्मणी (अनु० ६६ सूत्र)। डोला स्त्री दोला] हिंडोला, झूलना या झूला
विशेष (सूत्र २, ३)। डोडिणी स्त्री [दे] ब्राह्मणी (अणु ४६) । (हे १, २१७; पाप)।
डोव [दे] देखो डोअ (गदि उस पृ २१०)। डोड्ड पुं[दे] एक मनुष्य-जाति, ब्राह्मण डोला स्त्री [दे] डालो, शिविका, पालवी (दे | वी.वा पभा २७) •'दिदो तक्खणजिमिनो निग्गच्छंतो बहि डोड्डोः ४,११)।
डोसिणी स्त्री [दे] ज्योत्स्ना, चन्द्र-प्रकाश, 'तो तस्सुदरं फालिम' (उप १३६ ठी)। डोलाअंत वि [दोलायमान] संशय करने- चांदनी ( षड्)। डोर पुं[दे] डोर, गुण, रस्सी (गा २११ वाला, ढुवाडोल (अच्चु ७)।
डोहल पुं [दोहद ] १ गर्भिणी स्त्री का वजा ६६)।
डोलाइअवि[दोलायित] संशयित, डॅवाडोला अभिलाष । मनोरथ, लालसा (हे १, २१७, डोल अक [ दोलय् ] १ डोलना, हिलना, | "भडस्स डोलाइ हिमश्र' (गा ६६६)। । (कुमा)।
॥ इन सिरिपाइअसद्दमहण्णवम्मि डयाराइसहसंकलणो
वीसइमो तरंगो समत्तो।।
ढ पुं [6] व्यन्जन वर्ण-विशेष, यह मूर्धन्य ढंकुग पुं[दे] मत्कुण, खटमल (दे ४, १४)। ढंढ पु[ढण्ढण] एक जैन महर्षि, ढाढण है, क्योंकि इसका उच्चारण मूर्द्धा से होता | ढंकुण पुंढ-कुण] वाद्य-विशेष (पाचा | ऋषि (सुख २, ३१) । है (प्रामाः प्राप)। २,१११)।
ढंढ वि [दे] दाम्भिक, कपटी (सम्मत्त ३१)। ढंक दे] काक, वायस, कौमा ( दे ४, ढंख देखो ढंक = (दे) (पि २१३, २२३)। । ढंढण पुढण्ढन] स्वनाम-ख्यात एक जैन १३; जं २ प्राप: सण; भविः पाप्र) 'वत्थुल न [वास्तुल] शाक विशेष, एक
ढंखर पुन [दे] फल पत्र से रहित डाल, मुनि (विवे ३२पडि)।
| 'हँखरसेसोवि हु महुअरेण मुक्को ण मालई- ढंढणी स्त्री [दे] कपिकच्छ, केवाँच, वृक्षतरह की भाजी या तरकारी (धर्म २)।
विडवों (गा ७५५; वज्जा ५२) ढंक पुं [ढङ्क] कुम्भकार-जातीय एक जैन
विशेष (दे ४, १३)। उपासक (विसे २३०७)।
ढंखरअ [ दे] ढेला। गु० ढेखारा (पाख्या- ढंढर पुं [दे] १ पिशाच । २ ईर्ष्या (दे ढंक देखो ढक्क । भवि. ढंकिस्सं (पि २२१)।
नकम० को० नागश्री आख्यानक पत्र
४ पद्य ६१) ढंकण न [दे. छादन] १ ढकना, पिधान |
ढंढरिअ पु[दे] कर्दम, पंक, कादा, काँदो (प्रासू ६० अणु)
| ढंखरी स्त्री [दे] वीणा-विशेष, एक प्रकार की ढंकण देखो ढिंकुण (राज)।
वीणा (दे ४, १४)।
| ढंढल्ल सक [ भ्रम् ] घूमना, फिरना, भ्रमण ढंकणी श्री [दे. छादनी] ढकनी, पिघानिका, | ढंढ [दे] १ पंक, कीच, कर्दम, काँदो (दे | करना । ढंढल्लइ (हे ४, १६१) ।
ढकने का पात्र-विशेष (दे ४, १४)।- ४, १६)। २ वि, निरर्थक, निकम्मा (दे ४, ढंढल्लिअ वि [भ्रान्त] म्रान्त, घूमा हुमा ढंकि देखो ढक्किम (सिरि ५२९)। ।१६ भवि)।
(कुमा)।
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