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________________ ३७४ पाइअसहमहण्णवो डोंबिलग-ढंढल्लिअ म्लेच्छ-जाति, डोम (पएह १, १, इक पव भूलना। २ संशयित होना, सन्देह करना। डोलायमाण देखो डोलाअंत (निचू १०)। ६)। ३ देखी डुंब (पास)। वकृ. डेलंत (अच्चु ६०)। डोलाविय वि [दोलित] कम्पित, हिलाया डोंबिलगा दे] १म्लेच्छ देश-विशेष । २ डोल पुं[दे] १ लोचन, पाख, नयना गुज- हुआ (पउम ३१, १२४)। डोंबिलय ) एक अनार्य जाति (पएह १, १; राती में 'डोलो' (दे४,६)। २ जन्तु-विशेष डोलिअ पुंदे] कृष्णसार, काला हिरन (दे इक)। ३ डोम, चाण्डाल (स २८६)। (बृह १)। ३ फल-विशेष (पंचव २)। ४, १२) बोल तारिदिय जीव की एक जाति डोलिर वि[ दोलावत् ] डोलनेवाला, काँपनेडोकरी स्त्री [दे] बूढ़ी स्त्री (कुप्र ३५३)। वाला; 'दरडोलिरसीस' (कुमा)। डोड [दे] ब्राह्मण, विप्र (सुख ३, १)। (उत्त ३६, १४८; सुख ३६, १४८)। डोल्लगग पु[दे] पानी में होनेवाला जन्तुडोडिणी स्त्री [दे] ब्राह्मणी (अनु० ६६ सूत्र)। डोला स्त्री दोला] हिंडोला, झूलना या झूला विशेष (सूत्र २, ३)। डोडिणी स्त्री [दे] ब्राह्मणी (अणु ४६) । (हे १, २१७; पाप)। डोव [दे] देखो डोअ (गदि उस पृ २१०)। डोड्ड पुं[दे] एक मनुष्य-जाति, ब्राह्मण डोला स्त्री [दे] डालो, शिविका, पालवी (दे | वी.वा पभा २७) •'दिदो तक्खणजिमिनो निग्गच्छंतो बहि डोड्डोः ४,११)। डोसिणी स्त्री [दे] ज्योत्स्ना, चन्द्र-प्रकाश, 'तो तस्सुदरं फालिम' (उप १३६ ठी)। डोलाअंत वि [दोलायमान] संशय करने- चांदनी ( षड्)। डोर पुं[दे] डोर, गुण, रस्सी (गा २११ वाला, ढुवाडोल (अच्चु ७)। डोहल पुं [दोहद ] १ गर्भिणी स्त्री का वजा ६६)। डोलाइअवि[दोलायित] संशयित, डॅवाडोला अभिलाष । मनोरथ, लालसा (हे १, २१७, डोल अक [ दोलय् ] १ डोलना, हिलना, | "भडस्स डोलाइ हिमश्र' (गा ६६६)। । (कुमा)। ॥ इन सिरिपाइअसद्दमहण्णवम्मि डयाराइसहसंकलणो वीसइमो तरंगो समत्तो।। ढ पुं [6] व्यन्जन वर्ण-विशेष, यह मूर्धन्य ढंकुग पुं[दे] मत्कुण, खटमल (दे ४, १४)। ढंढ पु[ढण्ढण] एक जैन महर्षि, ढाढण है, क्योंकि इसका उच्चारण मूर्द्धा से होता | ढंकुण पुंढ-कुण] वाद्य-विशेष (पाचा | ऋषि (सुख २, ३१) । है (प्रामाः प्राप)। २,१११)। ढंढ वि [दे] दाम्भिक, कपटी (सम्मत्त ३१)। ढंक दे] काक, वायस, कौमा ( दे ४, ढंख देखो ढंक = (दे) (पि २१३, २२३)। । ढंढण पुढण्ढन] स्वनाम-ख्यात एक जैन १३; जं २ प्राप: सण; भविः पाप्र) 'वत्थुल न [वास्तुल] शाक विशेष, एक ढंखर पुन [दे] फल पत्र से रहित डाल, मुनि (विवे ३२पडि)। | 'हँखरसेसोवि हु महुअरेण मुक्को ण मालई- ढंढणी स्त्री [दे] कपिकच्छ, केवाँच, वृक्षतरह की भाजी या तरकारी (धर्म २)। विडवों (गा ७५५; वज्जा ५२) ढंक पुं [ढङ्क] कुम्भकार-जातीय एक जैन विशेष (दे ४, १३)। उपासक (विसे २३०७)। ढंखरअ [ दे] ढेला। गु० ढेखारा (पाख्या- ढंढर पुं [दे] १ पिशाच । २ ईर्ष्या (दे ढंक देखो ढक्क । भवि. ढंकिस्सं (पि २२१)। नकम० को० नागश्री आख्यानक पत्र ४ पद्य ६१) ढंकण न [दे. छादन] १ ढकना, पिधान | ढंढरिअ पु[दे] कर्दम, पंक, कादा, काँदो (प्रासू ६० अणु) | ढंखरी स्त्री [दे] वीणा-विशेष, एक प्रकार की ढंकण देखो ढिंकुण (राज)। वीणा (दे ४, १४)। | ढंढल्ल सक [ भ्रम् ] घूमना, फिरना, भ्रमण ढंकणी श्री [दे. छादनी] ढकनी, पिघानिका, | ढंढ [दे] १ पंक, कीच, कर्दम, काँदो (दे | करना । ढंढल्लइ (हे ४, १६१) । ढकने का पात्र-विशेष (दे ४, १४)।- ४, १६)। २ वि, निरर्थक, निकम्मा (दे ४, ढंढल्लिअ वि [भ्रान्त] म्रान्त, घूमा हुमा ढंकि देखो ढक्किम (सिरि ५२९)। ।१६ भवि)। (कुमा)। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016080
Book TitlePaia Sadda Mahannavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas T Seth
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1986
Total Pages1010
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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