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पाइअसद्दमहण्णवो
जोणिय-मख
शास्त्र (विसै १७७५)। "सूल न ['शूल] (मोघ १० भा)। २ धान्य का मर्दन, अन्न- "द्वाण न [°स्थान] सुभटों का युद्ध-कालीन योनि का एक रोग (णाया १, १६)। मलन (ोघ ९० भा)।
शरीर-विन्यास, अंग-रचना-विशेष (ठा १; जोणिय वि [योनिक, यवनिक] अनार्य
जोवारि स्त्री [दे] अन्न-विशेष, जुपारि (दे निचू २०)।
३, ५०)। देश-विशेष से उत्पन्न । स्त्री. या (इक;
जोहणा देखो जोहा (मै ७१)। जोविय वि [दृष्ट] विलोकित (स १४७) । प्रौप; गाया १,१-पत्र ३७)। जोव्वण न [यौवन] १ तारुण्य, जवानी
जोहा स्त्री [योधा] भुज-परिसपं की एक जोण्णलिआ स्त्री [दे] अन्न-विशेष, जुपारि, (प्रातः कप्प) । २ मध्य भाग (से २, १)
जाति (सूम २, ३, २५) । जोन्हरी (दे ३, ५०)। जोव्वणणार । न [दे] वयः-परिणाम, वृद्धत्व, जाहार सकाद] जुहारना
जोहार सक [दे] जुहारना, जोहार करना, जोण्ह वि [ज्योत्स्न १ शुक्ल, श्वेत, 'कालो
जोव्यगवेअबुदापाः 'जोब्बणणीरं तरु- प्रणाम करना। कर्म. जोहारिज्जइ (प्राक वा जोएहो वा केणणुभावेण चंदस्स (सुज
| णतणे वि विजिएंदियाण पूरिसाण' (दे २५, १३)। १९)। २ पुं. शुक्र पक्ष (जो ४)।
जोहार पुं[दे] जोहार, प्रणाम (पव ३८)। जोण्हा स्त्री ज्यिोत्स्ना] चन्द्र-प्रकाश (षड् जोव्वणिया स्त्री [यौवांनका ] यौवन, जोहि वि [योधिना लड़नेवाला, सभट काप्र १९७)। जवानी (राय)
(पव ७१)। जोव्वणोवय न [दे] बूढापा, वृद्धत्व, जरा . जोहाल वि [ज्योत्स्नावत् ] ज्योत्स्ना
जोहि वि [योधिन्] लड़नेवाला, लड़ वैया । (दे ३, ५१)। वाला, चन्द्रिकायुक्त (हे २, १५६)।
(प्रौप)। जोस देखो जुस = जुष्। वकृ. जोसंत जोत्त देखो जुत्त = युक्त (कुप्र ३८१)।
| जोहिया स्त्री [योधिका] जंतु-विशेष, हाथ (राज)। प्रयो., संकृ. जोसियाण (वव ७)
से चलनेवाली एक प्रकार की सर्प-जाति जोत्त । न [योक्त्र, क] जोत, रस्सी या | जोस पुं [झोष] अवसान, अन्त (सूत्र १,
(जीव २) जोत्तय चमड़े का तस्मा, जिससे बैल या
२, ३, २ टि)। घोड़ा, गाड़ी या हल में जोता जाता है |
जिअ (शौ) अ [दे] अवधारण-निश्चय जोसिअ वि [जुष्ट सेवित (सूत्र १, २,३) (पएह २,५,गा ६६२)।
ज्जे का सूचक भव्यय (प्राकृ १८) । जोसिआ स्त्री [ योषित् ] स्त्री, महिला, जोव देखो जोअ = दृश् । जोवइ (महा। भवि)
जेव । (शौ) । देखो एव = एव (पि २३; नारी (षड् ; धर्म २)।
जेव्व) ८५)। जोव पु [दे] १ बिन्दु। २ वि. स्तोक, जोसिणी देखो जोण्हा (अभि ३१)। उझड देखो झड । झडइ (हे ४, १३० टि)। थोड़ा (दे ३, ५२)।
जोह अक युध् ] लड़ना । जोहइ (भवि)- झहराविअ वि [दे] निवासित, निवासजोवण न दे १ यन्त्र. कल; 'भाउज्जोवण' | जोह [योध] सुभट, योद्धा (प्रौप कुमा) प्राप्त (षड्)।
॥ इन सिरिपाइअसहमहण्णवम्मि जमाराइसहसंकलणो
सोलहमो तरंगो समत्तो॥
म ' [झ] १ तालु-स्थानीय व्यजन वर्ण- भंख सक [दे] स्वीकार करना । झंखहु 'घणनासापो गहिलीभूमो झंखइ नरेस ! एस धुवं । विशेष (प्रामाः प्राप)। २ ध्यान (विसे (अप) (सिरि ८६४) ।
सोमोवि भरणा झंखसि तुमेव बहुलोहगहगहिरो' ३१९८) । झंख प्रक [सं+तप्] संतप्त होना, संताप
(था १४)। भंकार [झङ्कार] नूपुर वगैरह की आवाज __ करना । झंखइ (हे ४, १४०)। मंख सक [उपा+लभ ] उपालंभ देना, (सुर ३, १८ पडि; सण)।
मंख प्रक [वि + लप] विलाप करना, उलाहना देना । झंखइ (हे ४, १५६)। मंकारिअ न [दे] भवचयन, फूल वगैरह का बकवाद करना। झंखइ (हे ४, १४८)। मंख मक [निर् + श्वस् ] निश्वास लेना । मादान या चुनना (द ३,५६)।" __ वकृ. भखंत (कुमा);
| झंखइ (हे ४, २०१)।
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