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३४२ पाइअसहमहण्णवो
जइ-जंप विपा १, १)। वि [ अपि] जो भी | जउण । स्त्री [यमुना] भारत की एक [संतार्य] जाँघ तक पानीवाला जलाशय (महा)।
अँउण प्रसिद्ध नदी, जमुना (ठा १, २, हे (पाचा २, ३, २)। जइ अ [यत्र] जहाँ, जिस स्थान में (षड् ) अँउणा ) १, ४, १५८)।
जंघाच्छेअ [दे] चत्वर, चौक (दे ३, जइ वि [जयिन्] जीतनेवाला, विजयी | जउणा देखो अँउणा (वजा १२२: प्राकृ ११)। ४३)। (कुमा)।
जओ प्रयत:] १ क्योंकि, कारण कि, चूँकि जंघामय रवि [दे] जंघाल, द्रुत-गामी, वेग जइअव्य वि [जेतव्य] जीतने योग्य (प्रवि । (श्रा २८)। २ जिससे, जहाँ से (प्रासू ८२, जंघालुअ से जानेवाला (द ३, ४२ षड् )।१२)। १४८)
जंघाल वि [जङ्घाल] द्रुत-गामी (दे ८,७८)। जइआ प्र[यदा] जिस समय, जिस वक्त जं यत् 1 १ क्योंकि, कारण कि। २ जत सकयन्त्र १ वश करना, काबू में (उब हे ३, ६५)। दाक्यान्तर का संबन्ध-सूचक अव्यय (हे १,२४,
करना । २ जकड़ना, बाँधना (उप पृ १३१)।। जइच्छा स्त्री [यदृच्छा] १ स्वतन्त्रता। २ महा, गा ६६)। 'किंच अ[किश्चित् ]
जंत न [यन्त्र] १ कल, युक्ति-पूर्वक शिल्प स्वेच्छाचार (राज)। १ जो कुछ, जो कोई (पडि परह १, ३)।
प्रादि कर्म करने के लिए पदार्थ-विशेष, तिलजइण वि [जैन] १ जिन-देव का भक्त, जिन- २ असंबद्ध, प्रयुक्त, तुच्छ, नगण्य (पंचव ४)।
यन्त्र आदि (जीव ३; गा ५५४: पडि; महा; धर्मी । २ जिन भगवान् का, जिन-देव से जंकयसुकय वि [दे] अल्प सुकृत से ग्राह्य, .
कुमा)। २ वशीकरण, रक्षा वगैरह के लिए सैबन्ध रखनेवाला (विसे ३८३; धम्म ९ टी; थोड़े उपकार से अधीन होनेवाला (द ३,
किया जाता लेख प्रयोग (पएह १, २)। ३ सुर ८, ६४) । स्त्री. °णी (पंचा ३)। ४५)
संयमन, नियन्त्रण (राय)। पत्थर पुं जइण वि [जयिन्] जीतनेवाला; 'मणपवण- जंगम वि [जंगम] १ चलनेवाला, जो एक
[प्रस्तर] गोफण का पत्थर (पएह १, २) ।। जइएवेगं (उवा; णाया १,१-पत्र ३१) स्थान से दूसरे स्थान में जा सकता हो वह
"पिल्लणकम्म न [पीडनकर्मन यन्त्र द्वारा जण विजिबिना वेगवला. वेग-यत (ठा ६, भवि)। २ छन्द-पिशेष (पिंग)।
तिल, ईख आदि पीलने या पेरनेका धंधा
(पडि)५ पुरिस पुं[°पुरुष] यन्त्र-निर्मित त्वरा-युक्त 'उवइयउप्पश्यचवलजइणसिग्यवे- जंगल [जङ्गल] १ देश-विशेष, सपादलक्ष देश (कुमा; सत्त ६७ टो)। २ निर्जल प्रदेश
पुरुष, यन्त्र से पुरुष की चेष्टा करनेवाला पुतला गाहि' (प्रौप)। (बृह १)। ३ न. मांस; 'गयकुंभवियारिय
(प्रावम)५ वाडचुल्ली स्त्री [पाटचुल्ली] जइत्त वि [जैत्र] १ जीतनेवाला, विजयी (ठा ६)। २ पुं. नृप-विशेष (रंभा)।, मोत्तिएहि जं जंगलं किएई (वजा ४२) ।
इक्षु-रस पकाने का चूल्हा (ठा ८-पत्र | जंगा स्त्री [दे] गोचर-भूमि, पशुओं को चरने
४१७) 1 "हर न [गृह] धारा-गृह, पानी जइत्ता देखो जय = जि । | की जगह (दे ३, ४०)।
का फवारावाला स्थान (कुमा)। जइय वि [जयिक जयावह, विजयी (णाया | जंगिअ वि [जाङ्गमिक] १ जंगम वस्तु से
जंत देखो जा = या । १, ८–पत्र १३३)। संबन्ध रखनेवाला, जंगम-संबन्धी। २ न.
जंतण न [यन्त्रण] १ नियन्त्रण, संयमन, जइय वि [ यष्ट्र] याग करनेवाला, 'तुब्भे जंगम जीवों के रोम का बना हुआ कपड़ा
काबू । २ रोकनेवाला, प्रतिरोधक, (से ४, जइया जन्नाणं (उत्त २५, ३८)।
(ठा ३, ३, ५, ३; कस)। जययव्य देखो जय = यत् ।। जंगुलि स्त्री [जालि] विष उतारने का मन्त्र,
| जंतिअ पुं [यान्त्रिक] यन्त्र-कर्म करनेवाला, जइवा अ[यदि वा] अथवा, या (वव १)।
कल चलानेवाला (गा ५५४)। विष-विद्या (ती ४५)। जइस (अप) वि [यादृश] जैसा, जिस तरह
जंगुलिय पुंजाङ्गलिका गारुड़िक, विषमन्त्र जतिअ वि [यन्त्रित नियन्त्रित, जकड़ा हमा का (षड्)
का जानकार, विषहरिया (पउम १०५,५७) (पउम ५३, १४५) १४ जउ न [जतु] लाक्षा, लाख, लाह (ठा ४,४; जंगोल स्त्रीन [जाङ्गल] विष-विधातक तन्त्र, जंतु पुं[जन्तु] जीव, प्राणी (उत्त ३ सण)। उप पू २४)।
विष-विद्या, आयुर्वेद का एक विभाग जिसमें जंतुग न [जन्तुक] जलाशय में होनेवाला जउ पुं[यदु] १ स्वनाम-ख्यात एक राजा। विष की चिकित्सा का प्रतिपादन है (विपा। तृण-विशेष (पराह २, ३–पत्र १२३)। २ सुप्रसिद्ध क्षत्रिय वंश (उव)। गंदण पुं। १, ७.-पत्र ७५) । स्त्री.°ली (ठा ८)। जंतुय विजान्तुक] जन्तुक नामक तृण का ['नन्दन] १ यदुवंशीय, यदुवंश में उत्पन्न । जंघा स्त्री [जङ्घा] जाँघ, जानु के नीचे का (आचा २, २, ३, १४) । २ श्रीकृष्ण (उव)।
भाग (प्राचाः कप्प)। °चर वि [°चर] जंप सक [जल्प ] बोलना, कहना। जंपइ जउ पुं[यजुष] वेद-विशेष, यजुर्वेद पादचारी, पैर से चलनेवाला (अणु)। चारण (प्राप्र)। वकृ. जंपंत, जंपमाण (महा: गा
[चारण] एक प्रकार के जैन मुनि, जो १९८; सुर ४, २)। संकृ. जंपिऊण, जउण पुं[यमुन] स्वनाम-प्रसिद्ध एक राजा अपने तपोबल से आकाश में गमन कर सकते जंपिऊणं, जंपिय (प्रारू, महा)। हेकृ. (उप ४५७)।
हैं (भग २०, ८ पब ६७)। संतारिम वि जंपिउं (महा)। कु. जंपिअव्व (गा २४२)।
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