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छेवाडी-जह
पाइअसहमहण्णवो
३४१
छोढूण
देखो छह ।
छोदणं । देखो छुह।
शरीर-रचना (सम ४४ १४६; भग; कम्म छोडि श्रीदे] छोटी, लध्वी, क्षुद्र (पिंग)। ३ न. अभ्याख्यान, कलंक-पारोपण, दोषारोप १, ३६)। २ कर्म-विशेष, जिसके उदय से छोडिअ विछोटित १ छोड़ा हुआ, बन्धन (बृह १; वव २)। ४ न. वन्दन-विशेष, दो पूर्वोक्त संहनन की प्राप्ति होती है वह कर्म मुक्त किया हुआ; 'वत्थानो छोडियो गंठो' खमासमरग-रूप वन्दन (गुभा १)। ५ आघात; (कम्म १, ३६)
(सुपा ५०४ स ४३१)। २ घट्टित, आहत 'कोवेण धमधमंतो दंतच्छोभे ये देइ सो छेवाडी [दे] देखो छिवाडी (पव ८०; (पएह १, ४-पत्र ७८)।
तम्मि' (महा)। निचू १२ जीव ३)। छोडिअ देखो फोडिअ (प्रौप)।
छोम देखो छउम (णाया १,६-पत्र १५७) । छेह पुंदे.क्षेप] प्रेरण, क्षेपण; 'तो वन- छोहण वि [दे] छोड़कर (कुप्र ३१) । छोयर ' [दे] छोरा, लड़का, छोकरा (उप परिणामोणमभुममावलिरुब्भमाणदिविच्छेहो'
पृ २१५)।
छोलिअ देखो छोडिअ = छोटित (पिंग)।। छेहत्तरि (अप) देखो छाहत्तरि (पिंग)।
छोप्प वि [स्पृश्य स्पर्श-योग्य, छूने लायक छोअ पुं[दे] छिलका (सूम २, १, १६)।
छोल्ल सक [तक्ष ] छीलना, छाल उतारना।
छोल्लइ ( षड्)। कर्म. छोल्लिज्जंतु (हे ४, छोइअ ' [दे] दास, नौकर (दे ३३)। (माचा २, १५, ५)।
३६५)। छोइआ स्त्री [दे] छिलका, ईख वगैरह की |
छोभ पुं[दे] पिशुन, खल, दुर्जन (दै ३, | छाल (उप ७६८ टी); 'उच्छुखंडे पत्थिए | ३३)। देखो छोभ ।
| छोल्लण न [तक्षण] छीलना, निस्तुषीकरण,
छिलका उतारना (गाया १, ७)। छोइयं पणामेई' (महा)।
छोब्भ वि [क्षोभ्य क्षोभ योग्य, क्षोभणीय;
4 छोल्लिय वि [तष्ट] छिलका उतारा हुआ, तुषछोकरी स्त्री [दे]छोकरी,लड़की (कप्र५३) 'होति सत्तपरिवज्जिया य छोभा (? भा)।
रहित किया हुआ (उप १७५)। छोट्टि स्त्री [दे] उच्छिष्टता, जूठाई (पिंड |
सिप्पकलासमयसत्यपरिवज्जिया' (पएह १,
| छोह पुं[दे] १ समूह, यूथ, जत्था। २ विक्षेप ५८७) ३-पत्र ५५)।
(दे ३, ३६)। ३ माघात; 'ताव य सो छोड सक [छोटय] छोड़ना, बन्धन से मुक्त छोन्मत्थ विदे] अप्रिय, अनिष्ट (दे ३, ३३) मायंगो छोहं जा देइ उत्तरिजम्मि' (महा)। करना । छोडइ, छोडेइ (भवि महा)। संकृ. छोभाइत्ती स्त्री [दे] १ अस्पृश्या, छूने छोह पुं[क्षेप १ क्षेपण, फेंकना; 'निर्यादट्टि.. छोडिवि (सुपा २४६)।
के अयोग्या। २ द्वेष्या, अप्रीतिकर स्त्री (
दे च्छोहनमयधाराहि (सुपा २६८)। छोडय वि [दे] छोटा, लघु (वज्जा १६४)। ३, ३९)।
छोहर [दे] देखो छोयर (सुपा ५५२) । छोडाविय वि [छोटित] छुड़वाया हुआ, | छोभ [दे ] देखो छोब्भ (दे ३, ३३ टि)। छोहिय वि [क्षोभित क्षोभ-प्राप्त, घबड़ाया बन्धन-मुक्त कराया हुमा (स ६२)।
२ निस्सहाय, दीन (पएह १, ३-पत्र ५५)। हुमा, व्याकुल किया गया (उप १३७ टी)।
॥ इम सिरिपाइअसहमहण्णवम्मि छमाराइसहसंकलणो
पंचदसमो तरंगो समत्तो॥
ज पुंज तालु-स्थानीय व्यंजन वर्ण-विशेष जअकार पुं [जयकार जीत, अभ्युदय (प्राक जइपु[यति] १ साधु, जितेन्द्रिय, संन्यासी (प्रामाः प्राप)।
(प्रौप; सुपा ४४४)। २ छन्द-शास्त्र में प्रसिद्ध ज स [यत् ] जो, जो कोई (ठा ३, १७ जी जअड मक [त्वर त्वरा करना, शीघ्रता करना। विश्राम-स्थान, कविता का विश्राम स्थान ८ कुमा; गा १०६)।
जाडइ (हे ४,१७० षड्)। वकृ. जअडंत (धम्म १ टी)। ज वि [ज उत्पन्न, 'आसाइयरससेयो होइ (हे ४, १७०)। प्रयो. जमडावंति (कुमा)। जइ वि [यति] जितना (वव १) विसेसेण णेहजो दहणों (गा ७६८); 'भारं-जअल वि[दे] छन्न, पाच्छादित, ढका हमा | जइम [यदा] जिस समय, जिस वक्त (प्राप्र)। भज (प्राचा)।
(षड्)।
| जइम [यदि यदि, जो, अगर (सम १५५;
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