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ओरत्त-ओलिंप पाइअसहमहण्णवो
२०१ ओरत्त वि [दे] १ गर्विष्ठ, अभिमानी।२ ओरी [दे] समीप (प्रास्या० कोष. पत्र-८५ ओलंबण न [अवलम्बन] सहारा, आश्रय । कुसुम्भ से रक्त । ३ विदारित, काटा हुआ गा० १५) ।
दीव पुं [दीप] शृङ्खला-बद्ध दीपक (दे १, १६५; पात्र)।
ओरंज न [६] क्रीडा-विशेष (दे १,१५६)। (राज)। ओरद्ध देखो अवरद्ध % अपराद्ध (प्राकृ ५०)। ओरंभिय वि [उपरुद्ध आवृत्त, आच्छादित ओलंबिय वि[अवलम्बित प्राश्रित, जिसका ओरम अक [उप + रम् ] निवृत्त होना। (गा ६१४)
सहारा लिया गया हो वह (निचू १)। २ ओरम (सूप्र १, २, १, १०)। ओरुण्ण वि [अवरुदित] रोया हुआ (गा
लटकाया हुआ (औप)। ओरल्ली स्त्री [दे] लम्बा और मधुर आवाज ५३८)।
ओलंबिय वि [उल्लंबित] लटकाया हुआ (दे १, १६४ पात्र)।
(सूत्र २, २ प्रौप)। ओरुद्ध वि [अवरुद्ध] रुका हुआ, बन्द किया ओरस सक [अव + त ] नीचे उतरना।
ओलंभ पुं[उपालम्भ] उलाहना, 'अप्पोलंभहुआ (गा ८००)। पोरसइ (हे ४, ८५)।
णिमित्तं पढमस्स णायज्झयणस्स अयमठे ओरुभ सक[अव+रुह. ] उतरना । वकृ. पराणत्ते ति बेमि' (गाया १,१)। ओरस वि [उपरस] स्नेह-युक्त, अनुरागी
ओरुभमाण (कस)। (ठा १०)।
ओलखिअ वि [उपलक्षित] पहिचाना ओरुम्मा अक [उद् + वा] सूखना, सूख ओरस वि [औरस] १ स्वोत्पादित पुत्र,
हा (पउम १३, ४२; सुपा २५४) । जाना । अोरुम्माइ (हे ४, ११)।
ओलगि (अप) देखो ओलग्गि (सिरि ५२४)। स्व-पुत्र (ठा १०)। २ औरस्य, हृदयोत्पन्न
ओलग्ग सक [अव + लग्] १ पीछे ओरुह देखो ओरुभ । वकृ. ओरुहमाण (जीव ३)। ओरसिअ वि [अवतीर्ण] उतरा हुआ (संथा ६३; कस)।
लगना । २ सेवा करना । अोलग्गति (पि ओरुण न [अवरोहण] नीचे उतरना ४८८) । हेकृ. ओलग्गिउं (सुपा २३४; (कुमा)। ओरस्स वि [औरस्य] हृदयोत्पन्न, आभ्य- (पउम २६, ५५; विसे १२०८)।
महा) । प्रयोः, संकृ. ओलग्गाविवि (सण)। न्तरिक (प्रारू)।
ओरुहण न [अवरोहण] नीचे उतारना,
| ओलग्ग वि [अवरुग्ण] १ ग्लान, बीमार । ओराल देखो उराल = उदार (ठा ४, १० अवतारण (पव १५५)।
२ दुर्बल, निबंल (णाया १,१-पत्र २८ ओरोध देखो ओरोह = अवरोध (विपा १,६)। जीव १)।
श्री विपा १, २)। ओराल देखो उराल (दे) (चंद १)। ओरोह देखो ओरुभ। वकृ. ओरोहमाण
ओलग्ग वि [अवलग्न] पीछे लगा हुआ, ओराल न [औदार] नीचे देखो (विसे ६३१)। (कसा ठा ५)।
अनुलग्न (महा)। ओरालिय न [औदारिक] १ शरीर विशेष, | ओरोह पुं[अवरोध] १ अन्तःपुर, जनानखाना
ओलग्ग [दे] देखो ओलुग्ग (दे १, १६४) । मनुष्य और पशुत्रों का शरीर (प्रौप)।२ (प्रौप)। २ अन्तःपुर की स्त्री (सुर १,
ओलग्गा स्त्री [दे] सेवा, भक्ति, चाकरी वि. शोभायमान, शोभा वाला (पास) । ३ १४३) । ३ नगर के दरवाजा का अवान्तर
'करेउ देवो पसायं मम अोलग्गाए' (स ६ औदारिक शरीर वाला (विसे ३७५) । णाम द्वार (गाया १, १; औप) । ४ संघात,
३९); 'पोलग्गाए वेलत्ति जंपिउं निग्गयो न [नामन] प्रौदारिक शरीर का हेतुभूत समूह (राज)।
खुजो' (धम्म ८ टी)।
ओलग्गि वि [अवलागिन् ] सेवा करनेकर्म (कम्म)। ओलअ [दे] १ श्येन पक्षी, बाज पक्षी।
वाला । स्त्री-°णी (रंभा)। ओरालिय वि [दे] १ व्याप्त । २ उपलिप्त; २ अपलाप, निहव (दे १, १६०)।
ओलग्गिअ वि [अवलन] सेवित (वज्जा 'दिट्ठोरुहिरोरालियसिरो' (सुख १, १३)। ओलअणी स्त्री [दे] नवोढा, दुलहिन (दे १,
३२) । ओरालिय वि [दे] १ पोंछा हुआ, 'मुहि |
ओलावअ पुं[दे] श्येन, बाज पक्षी (दे १, करयलु देवि पुणु ओरालिउ मुहकमलु' (वि)। ओलइअ वि [दे. अवलगित] १ शरीर में
१६०; स २१३)। २ फैल्लाया हुआ, प्रसारितः 'दसदिसि वहकयंबु सटा हुआ, परिहित (दे १ १६२पान)।
ओलि देखो ओली = पाली (हे १,८३)। ओरालियो' (भवि)। २ लगा हुमा (से १, १६२)।
ओलिदअ पुं[अलिन्दक] बाहर के दरवाजे ओराली देखो ओरल्ली (सुर ११, ८६)।
| ओलइणी स्त्री [दे] प्रिया, स्त्री (दे १,१६०) । ओलंड सक [ उत् + लङ्घ] उल्लंघन
का प्रकोष्ठ (गा २५४)। ओरिकिय न[अवरिङ्कित] महिष की आवाज,
करना । पोलंडेंति (णाया १,१-पत्र ६१)। ओलिंप सक[दे] खोलना । कवकृ. 'ओलिंप. 'कत्थइ महिसोरिकिय कत्थइ ढुहुडहुडुहंतनइ- ओलंब देखो अवलंब = अवलम्ब । संक. [?लिप्प] माणे वि तहा तहेव काया सलिल' (पउम ६४, ४३)।
ओलंबिऊण (महा)।
कवाडम्मिविभासियन्वा' (पिंड ३५४) । ओरिल्ल मुं[दे] लम्बा काल, दीर्घ काल (दे ओलंब पुं[अवलम्ब नीचे लटकना (प्रौपः ओलिंप सक [अव +लिप्] लीपना, १, १५५)। स्वप्न ७३)।
लेप लगाना। वकृ. ओलिंपमाण (राज)।
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