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दा] एक
(औप) |
विशेष (रायले
पदार्थ
वि [एक
कीस स्त्रीन [विशाल सण एकुणालीसवां (पउम ३६, १२
पाइअसहमहण्णवो
एगंत-एजण भी एक (षड् ) । °या प्र[°दा एक समय ली] विविध प्रकार की मणियों से ग्रथित हार एगठाण न [एकस्थान] एक प्रकार का तप में (प्रारू; नव २४) । राइय वि[ रात्रिक] (औप) । विलीपविभत्ति न [वलीप्रवि- (पव २७१) IV एक-रात्रि-सम्बन्धी, एक रात में होनेवाला भक्ति] नाटक-विशेष (राय )। "वाइ पुं एगिदिय वि [एकेन्द्रिय] एक इन्द्रियवाला, (सम २१; सुर ६, ६०) । राय न [ रात्र] [वादिन] एक ही आत्मा वगैरह पदार्थ | केवल स्पर्शेन्द्रियवाला (जीव) (ठा७ )। एक रात्र (ठा ५, २)। ल्ल वि [एक] को माननेवाला दर्शन, वेदान्त-दर्शन (ठा | एगीभूत वि [एकीभूत] मिला हुआ, एकताएकाकी, अकेला (ठा ७; सुर ४, ५४)। ८)। वीस स्त्रीन [विंशति] संख्या- प्राप्त (सुपा ८६) ' 'विह वि [विध] एक प्रकार का (नव ३)। विशेष, एक्कीस (पउम २०, ७२) । सिण | एगूण देखो अउण। चत्ताल वि [चत्वा'विहारि वि [विहारिन] एकल-विहारी, न [शन, सिन] व्रत-विशेष, एकाशन अकेला विचरनेवाला (बृह १)। वीसइम | (धर्म २)। ह पुंन [ह) एक दिन __ चत्तालीस स्त्रीन [°चत्वारिंशत् ] उनचालीस वि [विंशतितम] एक्कीसवाँ (पउम २१, (प्राचा २, ३, १)। हच्च वि [हित्य] | (सम ६६)। चत्तालीसइम वि [°चत्वा८१)। वीसा स्त्री [विंशति] एक्कीस एक ही प्रहार से नष्ट हो जानेवाला (भग ७, । रिंशत्तम] उनचालीसवाँ (सम८६)। °णउइ (पि ४४५) । सट्ट वि [°षष्ट] एकसठवां,
६)। हिय वि [हिक] १ एक दिन | स्त्री [नवति नवासी (पि ४४४)। तीस ६१ वां (पउम ६१, ७५)। सटि स्त्री
का उत्पन्न । २ पुं. ज्वर-विशेष, एकान्तर स्त्रीन [°त्रिंशत् ] उनतीस, २६ । तीसइम [पष्टि] एकसठ (सम ७५) । सत्तर वि
ज्वर (भग ३,७)। यि वि [धिक एक वि [त्रिंशत्तम उनतीसवाँ, २६ वाँ (पउम [सप्तत] एकहतरवाँ, ७१ वां (पउम ७१, से ज्यादा (पंच)। देखो एअ, एक और एक्काल २६, ४६) । नउइ देखो उइ (सम ६४)।
नउय वि [नवत] नवासीवाँ (पउम ८६, ७०)। समइय वि [सामयिक] एक एगंत देखो एकत (ठा ५ सूत्र १, १३, प्रोघ समय में होनेवाला (भग २४, १) । °सरिया
६५) । पन्न, पन्नास स्त्रीन [पञ्चाशत् ] ५५; पंचा ५; १०)। दिदि स्त्री [ दृष्टि १ जैनेतर दर्शन। २ वि. जैनेतर दर्शन को
उनचास (सम ७०; भग)। पन्नास वि स्त्री [ सरिका] एकावली, हार-विशेष (जं
[°पञ्चाश] उनपचासवाँ (पउम ४६, ४०)। १)। साडिय वि [शाटिक] एक वस्त्रमाननेवाला (सूत्र २, ६)। ३ स्त्री. निश्चित
पन्नासइम वि [पञ्चाशत्तम] उनपचासम्यक्त्व, निश्चल सत्य-श्रद्धा (सूप १, १३)। वाला, 'एगसाडियमुत्तरासंगं करेइ' (कप्प;
दूसमा स्त्री [°दुष्षमा] अवसर्पिणी-काल णाया १, १)। "सिअंअ [°दा] एक
सवाँ (सम ६६) । वीस स्त्रीन [विंशति] समय में (षड्)।
उन्नीस (सम ३६; पि ४४४; गाया १, सेल पुं [शैल]
का छठवां और उत्सर्पिणी-काल का पहला पर्वत-विशेष (ठा २, ३)।
१६) । वीसइ स्त्री [विंशति उन्नीस (सम आरा, काल-विशेष (सूअ १, ३)। पंडिय सेलकूड पुन
बाल
[पण्डित] साधु, संयत (भग)। बाल [शैलकूट एकशैल पर्वत का शिखर-विशेष
७३) । वीसइम, वीसईम, वीसम वि
[विंशतितम] उन्नीसवाँ (णाया १, १८ (जं ४)। सेस पु[शेष] व्याकरण
पुं[बाल] १ जैनेतर दर्शन को माननेवाला। २ असंयत जीव (भग)। वाइ वि [वादिन]
पउम १६, ४५; पि ४४६)। "सट्र वि प्रसिद्ध समास-विशेष (अणु)। हा प्र [धा] एक प्रकार का (ठा १)। हुत्त प्र जैनेतर दर्शन का अनुयायी (राज)। वाय
[°षष्ट] उनसठवाँ ५६ वा (पउम ५६, ८९)। पुं[वाद] जैनेतर दर्शन (सुपा ६५८)।
'सत्तर वि [सप्तत] उनसत्तरवाँ (पउम [सकृत् ] एक बार (प्रामा)। णिअ
६६, ६०)। सी, सीइ स्त्री [शीति] वि [किन्] अकेला (कसा ओघ २८ भा)।
सुसमा स्त्री [°सुषमा ] काल-विशेष, दस त्रि. ब. [दशन् ] ग्यारह ।
अवसर्पिणी काल का प्रथम और उत्सपिणी उन्नासी (सम ८७; पि ४४४: ४४६) । सीय दिसुत्तरसय वि [दशोत्तरशततम] काल का छठवाँ पारा (णंदि)।
वि [शीत] उन्नासीवाँ, ७६ वा (पउम एक सौ ग्यारहवाँ, १११ वाँ (पउम १११,
एगंतिय वि [ऐकान्तिक] १ अवश्यंभावी | ७६, ३५) । देखो अउण । २४)। भोग पुं[भोग] एकत्र-बन्धन (विसे)। २ अद्वितीयः 'एगंतियं कम्मवाहि- एगूरुय पुं [एकोरुक] १ इस नाम का एक (निचू १)। मोस वि [°मर्श] १ प्रत्यु
प्रोसह (स ५६२)। ३ जैनेतर दर्शन (सम्म अन्तद्वीप । २ वि. उसका निवासी (ठा ४, २)। पेक्षणा का एक दोष, वस्त्र को मध्य में ग्रहण | १३०)।
एग्ग (अप) देखो एग (पिंग)। कर दोनों अंचलों को हाथ से घसीट कर एगतिय न [ऐकान्तिक] मिथ्यात्व का एक एज पुं[एज] वायु, पवन (प्राचा) TV उठाना (मोघ २६७)। यय वियत भेद वस्तु को सर्वथा क्षणिक आदि एक ही एजणया स्त्री [एजना] कम्प, काँपना (सपनि एकत्र संबद्ध (कप्प)। रिस देखो दस दृष्टि से देखना (संबोध ५२) ।। (पि ४३५)। "रसी स्त्री [दशी] तिथि- एगट्टि देखो एग्ग-सट्टि (देवेन्द्र १३९; सुज्ज एज्ज देखो एय = एज् । वकृ. एज्जमाण विशेष, एकादशी (कप्प; पउम ७३, ३४)। १२)
(राय ३८) विण्ण स्त्रीन [पञ्चाशत् ] एकावन एगट्ठिया स्त्री [दे] नौका, जहाज (गाया १, एज्जत देखो ए = मा + इ । (पि २६५)। वलि, ली स्त्री [वलि, १६)
एजण न [आयन] आगमन (वव ३)।
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