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१६० पाइअसहमहण्णवो
ऊह-एक्क ऊह सक [ऊह. ] १ तर्क करना। २ संख्या-विशेष (राज)। ४ अोघ-संज्ञा, अव्यक्त | ऊहा स्त्री [ऊहा] तक, विचार-बुद्धि (आवम) । विचारना। ऊहइ (विसे ८३१), ऊहेंमि (सुर | ज्ञान (विसे ५२२: ४२३)।
ऊहापोह ऊहापोह सोच-विचार, मन में ११, १८५) । संकृ. अहिऊण (प्राउ ५२)। ऊहंग न [ऊहाङ्ग] संख्या-विशेष (राज) होनेवाला तर्क-वितर्क (कुप्र ६१)। ऊह न [ऊधस् ] स्तन (विपा १, २)।। ऊहट्ट वि [दे] उपहसित (द १, १४०)। ऊहिअ वि [ऊहित] अनुमान से ज्ञात (से ६, ऊह पुं[ऊह] १ विचार, विवेक-बुद्धि ऊहसिय वि [उपहसित] जिसका उपहास | ४२)। (राज)। २ तर्क, वितर्क (सूम २, ४)। ३ किया गया हो वह (दे १, १४०)।
V ए पु[ए] स्वर-वर्ण विशेष (हे १,१; प्रामा)।
॥ इस सिरिपाइअसहमण्णवे ऊपाराइसहसंकलणो
छट्ठो तरंगो समत्तो ॥
ए पुं[ए] स्वर वर्ण-विशेष (हे १,१ प्रामा) एअ देखो एव = एव (कुमा)
एकूण देखो अउण = एकोन (सुज्ज १६) ए प्र[ए, ऐ] इन पर्थों का सूचक अव्यय- एअ) देखो एवं 'एस वि सिरीष दिट्ठा' |
एक देखो एक तथा एग (हे २, ६६; सुपा १ आमन्त्रण, सम्बोधन; 'ए एहि सवडहुत्तो एअं(से ३, ४६; गउड; पिंग) मज्झ' (पउम ८, १७४) । २ वाक्यालंकार, एअंत देखो एकंत (वेणी १८) ।।
१४३, सम ६६ ५५; पउम ३१, १२८; वाक्य-शोभाः ‘से जहाणाम ए' (अणु)। ३ एआईस (अप) पुं. ब. [एकविंशति]
गउड; कप्पू: मा १८; सुपा ४८६ मा ४१,
पि ५६५; नाट; गाया १,१, गा ६१८%; स्मरण। ४ असूया, ईर्ष्या। ५ अनुकम्पा, एक्कीस (पिंग)
काल; सुर ५, २४२, भगः सम ३६ पउम करुणा । ६ आह्वान (हे २, २१७ भविः गा ६०४)
एयारिच्छ वि [ एतादृश] ऐसा, इसके २१,९३, कप्प)। वए देखो एगपए ए सक [आ + इ] पाना, प्रागमन करना।
जैसा (प्रामा)।
(गउड, सुर १, ३८)। सणिय वि [शएह (उवा)। भवि. एहिइ (उवा)। वकृ. एइज्जमाण देखो एय = एज् ।
निक] एक ही बार भोजन करनेवाला (पराह एंत (पउम ८, ४३; सुर ११, १४८), इंत
एइय वि [एजित] कम्पित (राय ७४) २, १)। सत्तरि स्त्री [°सप्तति] संख्या(सुर ३, १३), एज्जत (पि ५६१), एजमाण
एइस देखो एईस (सुख २, १७)। विशेष, ७१, एकहत्तर (सम ८२)। सरग, (उप ६४८टी)
एईस वि [एतादृश ऐसा (विसे २५४६) सरय वि [सरक, सर्ग] एक समान, ए देखो एत्तिअ (उवा)।
एउंजि (अप) अ [एवमेव १ इसी तरह। एक सरीखा (उवाः भग १६; पएह २, ५) । ए देखो एवं (उवा)। २ यही (भवि)IV
सि अ[शस् ] एक बारः 'सव्वजहन्नो एअ वि [एत] पाया हुआ, प्रागत ( सम्मत्त एऊण देखो एगूण (पिंग)।
उदयो दसगुरिणो एक्कसि कयाणं (भग); ११६) एंत देखो इ% इ ।
'एक्कसि को पमानो जीवं पाडेइ भवसमु एअ स [एतत् ] यह (भगः हे १,११; महा)। एंत देखो ए=आ + इIV
द्दम्मि' (सुर ८,११२); 'एक्कसि सीलकलंकिरिस वि [दृश] ऐसा, इसके जैसा एक देखो एक तथा एग (षड् ; सम ६६; अहं देज्जहिं पच्छित्ताई' (हे ४, ४२८)। (द्र ३२)। रूव वि [रूप] ऐसा, इस पउम १०३, १७२ हेका ११६ परह २, "सि अ[त्र] एक (किसी एक) में, प्रकार का (णाया १, १, महा)।
५, पउम ११४, २४; सुपा १६५; कप्प; 'एक्कसि न खु त्थिरो सित्ति पिमो कीइवि एअ देखो एग (गउड; नाट; स्वप्न ६०; सम ७१; १५३) । इआ अ [°दा] एक उवालद्धो (कुमा)। सि, सि अ १०६)। आइ वि [किन् ] अकेला समय में, कोई वक्त (हे २, १६२)। °ल [दा] कोई एक समय में (हे २, १६२)। (अभि १६०; प्रति ६५)। रह त्रि. ब. (अप) वि [क] एकाकी (पि ५६५)। °सिं अ[शस् ] एक बार (पि ४५१)। [दशन् ] ग्यारह की संख्या, दश मौर "लिय वि [किन्] एकाकी, अकेला (उप इ वि [किन्] अकेला (प्रयौ २३)। एक (पि २४५) । रहम वि [दश] ७२८ टी)। उइ स्त्री [नवति संख्या- इ पुं[दि] स्वनाम-ख्यात एक माएडलिक ग्यारहवाँ (भवि)।
विशेष, एकानबे (सम ६५; पि ४३५)1V | (सूबा) (विपा १, १)। णउय कि
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