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दे] देखो उमि, २४५)। उद्यकिया
उम्मूलण-उलीण
पाइअसद्दमण्णवो वकृ. उम्मूलंत, उम्मूलयंत (से १, ४. स | उयाइय न [उपयाचित] मनौती (सुपा | उरविय वि [दे] १ आरोपित। २ खण्डित, ५६६)। संकृ. उम्मृलिऊण (महा) ५७८)।
छिन्न (षड् )IV उम्मूलण न [उन्मूलन] उत्पाटन, उत्खनन | उयाय वि [उपयात] उपगत (राज) उरसिज पुं[उरसिज] स्तन, थन (धर्मवि (पि २७८)
उयारण न [अवतारण] निछावर, उतारा, ६६)। उम्मूलणा स्त्री [उन्मूलना] ऊपर देखो (पएह । हर्ष-दान, गुजराती में 'उवारणु" (कुप्र ६५) । उरस्स वि [उरस्य १ सन्तान, बच्चा (ठा १, १)
उयाहु देखो उदाहु (सुर १२, ५६, काला
हा साहु (3 ,२१ काला १०)। २ हार्दिक, आभ्यन्तरः 'उर स्सबलउम्मूलिअ वि [उन्मूलित] उत्पाटित, मूल नि उपाटित मलविसे १६१०) ।
समगणागय-' (राय)। से उखाड़ा हुआ (गा ४७५ सुर ३,२४५) उय्यकिय वि [दे] इकट्ठा किया हया
उराल वि [उदार] १ प्रबल (राय)। २ उम्मेठ [दे] देखो उम्मिठ (पउम ७१, (षड्) IV
प्रधान, मुख्य (सुज्ज १)। ३ सुन्दर, श्रेष्ठ २६ स ३३२)। उय्यल वि [दे] अध्यासित, आरूढ़ ( षड् )।
(सूम १,६)। ४ अद्भुत (चन्द २०) । ५ उम्मेस [उन्मेष] उन्मीलन, विकास (भग उर पुन [ उरस् ] वक्षःस्थल, छाती (हे १,
विशाल, विस्तीर्ण (ठा ५)। ६ न. शरीर१३, ४) । ३२)। अ, ग पुंस्त्री [ग] सर्प, साँप
विशेष, मनुष्य और तिर्यच् (पशु पक्षी) इन उम्मोयणी स्त्री [उन्मोचनी] विद्या-विशेष (काप्र १७१)
दोनों का शरीर (अणु) ।
'उरगगिरिजलणसागरनह(सुर १३, ८१)
तलतरुगणसमो अजो होइ। | उराल विउदार स्थूल, मोटा (सूम १,१, उम्ह पुत्री [ऊष्मन् ] १ संताप, गरमी,
भमरमियधररिगजलरुहरविपवउष्णता; 'सरीरउम्हाए जीवइ सयावि' (उप
समो असो समणो।' (अण) उराल वि [दे] भयंकर, भीष्म (सुज्ज १) ५६७ टी; गाया १, १: कुमा)। २ भाफ,
तब पुं[तपस् ] तप-विशेष (ठा ४) उरालिय न [औदारिक ] शरीर-विशेष बाष्प (से २, ३२; हे २, ७४)।
त्थ न [स्त्रि] अस्त्र-विशेष, जिसके फेंकने (सण)V उम्हइअ । वि [ऊष्मायित संतप्त, गरम से शत्रु सो से वेष्टित होता है (पउम ७१, उरिआ स्त्री [उड्रिका] लिपि-विशेष (सम ३५)। उम्हविय किया हुप्रा (से ४,१, पउम २, ।
६६) परिसप्प पुंस्त्री [परिसर्प] पेट | उरितिय न [दे. उरसि-त्रिक] तीन सर६६ गउड) ।
से चलनेवाला प्राणी (सादि) (जो २०) वाला हार (प्रौप) । उम्हाअ अक [ऊष्माय्] १ गरम होना।
सुत्तिया स्त्री [सूत्रिका] मोतियों को हार | उरिस देखो पुरिस (गा २८२)। २ भाफ निकालना । वकृ. उम्हाअंत, (राज)
उरु वि [उरु] विशाल, विस्तीर्ण (पान)। उम्हाअमाण (से ६, १०; पि ५५८)।
उर न [दे] प्रारम्भ, प्रारम्भ (दे १,८६) । उरुघुल्ल पुं[दे] १ अपूप, पूमा । २ खिचड़ी उम्हाल वि [ऊष्मवत् ] १ गरम, परितप्त। | उरंउरेण अ[दे] साक्षात् (विपा १, ३)। (द १, १३४) । २ बाष्प युक्त (गउड)
उरत्त वि [दे] खण्डित, विदारित (दे १, उरुमल्ल उम्हाविअ न [दे] सुरत, संभोग (दे १,
उरुमिल्ल वि [दे] प्रेरित (षड् ; दे १, १०८)।
उरुसोल्ल ११७)।
उरत्थ वि [उर:स्थ] १ छाती में स्थित । २ उयचिय वि [दे] देखो उविअ = परिकर्मितः छाती में पहनने का आभूषण (प्राचा २, |
उरोरुह पुं[उरोरुह] स्तन, थन (पब ६२) ।। 'उयचियखोमदुगुल्लपट्टपडिच्छराणे' (गाया १, | १३, १)।
उरोरुह न [उरोरुह] १ स्तन, थन। २ जैन १-पत्र १३) ।
- साध्वियों का उपकरण-विशेष (ोध ३१७ उरत्थय न [दे] वर्म, बस्तर, कवच (पान) साध्विय
उरब्भ पंत्री [उरभ्र] मेष, भेड़ (गाया १, उयट्ट देखो उव्वट्ट = उद् + वृत् । उयटुंतिः
भा)।
उल देखो कुल (से १,२६, गा ११६, सुर भूका. उयट्टिसु (भग)।
१ः परह १,१)V उयट्ट देखो उव्वट्ट = उद्वृत्त ।। उरब्भिअ वि [औरभ्रिक भेड़ चरानेवाला
३, ४१; महा)। उयत्त अक [अप + वृत्] हटना । उय- (सूअ २, २, २८)
उलय । पुन [उलप] तृण-विशेष (सुपा
उलव उभिज्ज । वि [उरभ्रीय] १ मेष-सम्बन्धी।
२८१; प्राप्र)। त्तति (दस ३, १ टो)। उरम्भिय २ उत्तराध्ययन सूत्र का एक
उलवी स्त्री [उलपी] तृण-विशेषः 'उलवी उयर वि [उदार] श्रेष्ठ, उत्तम; 'देवा भवंति अध्ययन; 'तत्तो समुद्धियमेयं उरन्भिज्जति
वीरणं' (पास) विमलोयरकंतिजुत्ता' (पउम १०,८८) अज्झयणं' (उत्तनि राज)
उलिअ वि [दे] असंकुचित नजरवाला, स्फार उयरिया स्त्री [अपवरिका] छोटा कमरा उरय पुं [उरज वनस्पति-विशेष (राज)
दृष्टि (दे १, ८८) (सम्मत्त ११६) ।
उररि पुं[द] पशु, बकरा (दे १,८८)। उलित्त न [दे] ऊँचा कुंआ (दे १, ८६) उयविय देखो उविअ = (दे) (राय ६३ टी)।, उरल देखो उराल (कम्म १; भगः दै २२) उल.ण देखो कुलीण (गा २५३) ।
(जो २०)
चुरस देखो पुरिस (गाविस्तीर्ण (पार
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