________________
अफाय-अब्भणुजाण
पाइअसद्दमहण्णवो अफाय पुं[दे] भूमि-स्फोट, वनस्पति-विशेष अबाहिरय वि [अबाह्य] भीतरी, आभ्यन्तर अभंग सक [अभि + अञ्] तैल आदि (पएण १)। (वव १)।
से मर्दन करना, मालिश करना। अभंगइ, अफास वि [अस्पर्श] १ स्पर्श-रहित (भग)। | अबाहिरिय वि [अबाहिरिक] जिसके किले अभंगेइ (महा)। संकृ. अभंगिउं, अभं
२ खराब स्पर्श पाला (सूत्र १, ५, १)। के बाहर वसति न हो ऐसा गाँव या शहर गेत्ता, अब्भंगित्ता (ठा ३, १; पि अफासुय वि [अप्रासुक] १ सचित्त, सजीव (बृह १) ।
२३४)। हेकृ. अब्भंगेत्तए (कस)। (भग ५,६)। २ अग्राह्य (भिक्षा) (ठा ३,१)। अबीय देखो अवीय (कप्प)।
अब्भंग पुं [अभ्यङ्ग] तैल-मर्दन, मालिश अफुड वि [अस्फुट अस्पष्ट, अव्यक्त (सुर ३,
अबुज्झ अ [अबुद्ध्वा ] नहीं जान कर, (निचू ३)। १०६; २१३; गा २६६; उप ७२८ टी)।
'केसिंचि तक्काइ अबुझ भावं' (सूत्र १, अब्भंगण न [अभ्यञ्जन] ऊपर देखो (गाया अफुडिअ वि [अस्फुटित] अखण्डित, नहीं १३, २०)।
१, १, महा)। टूटा हुआ (कुमा)।
अबुद्ध वि [अबुध] १ अजान, मूर्ख । (दस अब्भंगिएल्लय! वि [अभ्यक्त] तैलादि से
२)। २ अविवेकी (सूम १, ११)। अब्भंगिय मदित, मालिश किया हुआ अफुस वि [अस्पृश्य स्पर्श करने के अयोग्य
अबुद्धिय वि[अबुद्धिक] बुद्धि-रहित, मूर्ख (मोघ ८२, कप्प)। (भग)।
अबुद्धीय (गाया १,१७सूत्र १,२,१ अब्भंतर न [अभ्यन्तर] १ भीतर, में (गा अफुसिय वि [अभ्रान्न] भ्रम-रहित (कुमा)। पउम ८, ७४)।
६२३)। २ वि. भीतर का, भीतरी (राय; अफुस्स देखो अफुस (ठा ३, २)। अबुह वि [अबुध] १ अजान । (सूत्र १, | महा)। ३ समीप का, नजदीक का (सम्बन्धी) अबंभ न [अब्रह्म] मैथुन, स्त्री-सङ्ग (पराह २, १; जी १)। २ मूर्ख, बेवकूफ (पएह १, (ठा ८)। ठाणिज्ज वि [ स्थानीय] १,४)। °चारि वि [°चारिन ब्रह्मचर्य नहीं
नजदीक के सम्बन्धी, कौटुम्बिक लोग (विपा पालनेवाला (पि ४०५; ५१५) ।
अबोह वि [अबोध] १ बोध-रहित, अजान । १, ३)। तव पुं[तपस् ] विनय, वैयाअबद्धिय [अबद्धिक] 'कर्मों का आत्मा २ पुं. ज्ञान का प्रभाव (धर्म १)।
वृत्य, प्रायश्चित्त, स्वाध्याय, ध्यान और कायोसे स्पर्श ही होता है, न कि क्षीर-नीर की अबोहि पुंस्त्री [अबोधि] १ ज्ञान का प्रभाव त्सर्ग रूप अन्तरंग तप (ठा ६)। परिसा तरह ऐक्य ऐसा माननेवाला एक निव- (सूअ २,६)। २ जैन धर्म की प्राप्ति । ३ बुद्धि- स्त्री [परिषद् ] मित्र आदि समान जनों की
जैनाभास । २ न. उसका मत (ठा ७; विसे) । विशेष का प्रभाव (भग १,६)। ४ मिथ्या- सभा (राय)। लद्धि स्त्री [लब्धि अवधिअबल वि [अबल] बल रहित, निर्बल (पउम
ज्ञान, 'प्रबोहि परियाणामि बोहि उवसंप- ज्ञान का एक भेद (विसे)। संबुक्का स्त्री ४८, ११७)।
जामि' (प्राव ४)। ५ वि. बोधि-रहित स्त्री [शम्बूका भिक्षा की एक चर्या, गतिअबला स्त्री [अबला] स्त्री, महिला, जनाना
विशेष (ठा ६)। सगडुद्धिया स्त्री [शक(पान)।
अबोहिय न [अबोधिक] ऊपर देखो (दस | टोद्धिका] कायोत्सर्ग का एक दोष (पव ५)। अबस पुं[अबश] वडवानल (से १, १)।
६: सूत्र १, १, २)।
अब्भंतर वि [अभ्यन्तर] भीतरी, भीतर अबहिद न [दे. अबहित्थ] मैथुन, स्त्री-सङ्ग अब स्त्री. ब. [अप] पानी, जल (श्रा २३)। का (जं ७ ठा २, १; परण ३६)।
अब्भसि वि अभ्रंशिन] १ भ्रष्ट नहीं होने(सूत्र १, ६)।
| अब्बंभ देखो अबंभ (सुपा ३१०)। अबहिम्मण वि [अबहिर्मनस्क] मिष्ठ, अब्बभण्ण न [अब्रह्मण्य] ब्रह्मण्य का
वाला (नाट)। २ अनष्ट (कुमा)। अब्बम्हण्ण अभाव (नाट; प्रयौ ७६)।
अब्भक्खइज देखो अब्भक्खा धर्म-तत्पर (आचा)। अबहिल्लेस । वि [अबहिलेश्य] जिसकी अब्बीय देखो अवीय (चेइय ७३८)।
अब्भक्खण न [दे] अकीति, अपयश (दे अबहिल्लेस्स चित्त-वृत्ति बाहर न धूमती हो,
अब्बुद्धसिरी स्त्री [दे] इच्छा से भी अधिक संयत (भगः परह २, ५)। फल की प्राप्ति (दे १, ४२)।
अब्भक्खा सक [अभ्या + ख्या] झूठा अबाधा देखो अबाहा (जीव ३)।
दोष लगाना, दोषारोप करना। अब्भक्खाइ अब्बुय पुं[अर्बुद] पर्वत-विशेष, जो आजअबाह पुं [अबाह] देश-विशेष (इक)।
(भग ५, ७) । कृ. अब्भक्खइज्ज (आचा)। कल 'पाबू' नाम से प्रसिद्ध है (राज)। अबाहा स्त्री [अबाधा] १ बाध का प्रभाव अब्बुय न [अबुंद] जमा हुआ शुक्र और
| अब्भक्खाण न [अभ्याख्यान] भूठा अभि(प्रोष ५२ भा; भग १४, ८)। २ व्यवधान, शोणित (तंदु ७)।
योग, असत्य दोषारोप (पएह १,२)। अन्तर (सम १६)। ३ बाध-रहित समय अब्भ न [अभ्र] १ आकाश । (रायः पात्र)।
अब्भ? देखो अब्भत्थिय; 'उ(अ)भटुपरि(भग)। २ मेघ, बादल (ठा ४, ४; पाप्र)।
नाय (पिंड २८१)। अबाहिर प्र[अपहिस्] बाहर नहीं, भीतर | अब्भ सक [आ + भिद्] भेदन करना। अब्भड प्र[दे] पीछे जाकर (हे ४, ३६५)। (कुमा)। । अब्भे (प्राचा १, १, २, ३)।
अब्भणुजाण सक [अभ्यनु + ज्ञा] अनुमति,
(भग)।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org