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अद्दा-अद्भक्खण
पाइअसहमहण्णवो अद्दा स्त्री [आर्द्रा] १ नक्षत्र-विशेष (सम कुडव, कुलव [कुडव, कुलव] एक टी)। रजिय वि [ राज्यिक] राज्य का २) । २ छन्द-विशेष (पिंग)।
प्रकार का धान्य का परिमाण (राय)। प्राधा हिस्सेदार, अधं राज्य का मालिक अद्दाअ [दे] १ आदर्श, दर्पण (दे १, १४; क्खेत्त न [क्षेत्र] एक अहोरात्र में चन्द्र (विपा १, ६)। रत्त पुं [सत्र] मध्य पएण १५; निचू १३) । पसिण पुं[प्रश्न] के साथ योग प्राप्त करनेवाला नक्षत्र (चंद रात्रि का समय, निशीथ (गा २३१) । विद्या-विशेष, जिससे दर्पण में देवता का पाग- १०) खल्ला स्त्री [°खल्वा] एक प्रकार 'वेयाली स्त्री [°वेताली] विद्या-विशेष (सूप मन होता है (ठा १०)। विज्जा स्त्री [विद्या] का जूता (बृह ३)। घडय पुं [ घटक] २, २)। संकासिया स्त्री [मांसाश्यका] चिकित्सा का एक प्रकार, जिससे बीमार को आधा परिमाणवाला घड़ा, छोटा घड़ा (उवा)। एक राज-कन्या का नाम (आव ४)। सम दर्पण में प्रतिबिम्बित कराने से वह नीरोग °चंद पुं [°चन्द्र] १ आधा चन्द्र (गा | न [°सम] एक वृत्त, छन्द-विशेष (ठा ७)। होता है (वव ५)।
५७१) । २ गल-हस्त, गला पकड़ कर बाहर हार पुं [हार] १ नवसरा हार (रायः अद्दाइअ वि [दे] आदर्श वाला, आदर्श से करना (उप ७२८ टी)। ३ न. एक हथियार | प्रौप)। २ इस नाम का एक द्वीप । ३ समुद्रपवित्र (बृह १)।
(उप पृ ३६५)। ४ अर्भ नन्द के आकारवाले विशेष (जीव ३) । हारभद्द [ भद्र] अद्दाग [दे] देखो अद्दाअ (सम १२३)। सोपान (णाया १,१)। ५ एक तरह का | अर्धहार-द्वीप का अधिष्ठाता देव (जीव ३)। अद्दि पुं[अद्रि] पहाड़, पर्वत (गउड)। बाण, 'एसो तुह तिवखणं सीसं छिदामि प्रद्ध- हारमहाभद्द [हारमहाभद्र] पूर्वोक्त ही अहिट्ठ वि [अदृष्ट] १ नहीं देखा हुआ (सुर
चंदेण' (सुर ८, ३७) । चकवाल न अर्थ (जीव ३)। हारमहावर पुं हार१, १७२)। २ दर्शन का अविषय (सम्म
[चक्रवाल] गति-विशेष (ठा ७)। चक्कि महावर] अर्धहार समुद्र का एक अधिष्ठायक
पुं[°चक्रिन् ] चक्रवर्ती राजा से अधं देव (जीव ३)। हारवर पुं [ हारवर ] अद्दिय वि [आर्द्रित] भाद्र किया हुआ विभूति वाला राजा, वासुदेव (कम्म १, १२)। १ द्वीप-विशेष । २ समुद्र-विशेषः । ३ उनका भिगाया हुआ (विक्र २३)।
°च्छद्र, छ? वि [°षष्ट] साढ़े पाँच (पि अधिष्ठायक देव (जीव ३)। हारवरभद्द पुं अद्दिय वि [अर्दित] पीटा हुआ, पीड़ित
४५०; सम १००)। म वि [ष्टिम] [हारवरभद्र] अर्धहारवर द्वीप का एक (वव १०)।
साढ़े सात (ठा है)। णाराय न [°नाराच] अधिष्ठाता देव (जीव ३)। हारबरमहावर अदिस्स वि [अदृश्य देखने के अयोग्य या |
चौथा संहनन, शरीर के हाड़ों की रचना- पुं [ हारवरमहावर] अर्धहारवर समुद्र का अशक्य (सुर ६, १२०; सुपा ८५ श्रा २७)।
विशेष (जीव १)। णारीसर [ नारीश्वर] एक अधिष्ठाता देव (जीव ३)। हारोभास पुं अहिस्संत । वकृ. [अदृश्यमान] नहीं
शिव, महादेव (कप्पू) । तइय वि [तृतीय] [हारावभास] १ द्वीप-विशेष । २ समुद्रअद्दिस्समाण दिखाता हुआ (सुपा १५४;
ढाई (पउम ४८, ३५) । तेरस वि [त्रयो- विशेष (जीव ३) । हारोभासभद्द [हारा४५७)। दश साढ़े बारह (भग)। तेवन्न वि ["त्रिप
वभासभद्र] अर्धहारावभास नामक द्वीप का अद्दीण वि [अद्रीण] क्षोभ को अप्राप्त,
शाश] साढ़े दावन (सम १३४)। द्ध वि एक अधिष्ठाता देव (जीव ३)। हारोभास
[धि चौथा भाग, पौपा (बृह ३)। नवम अक्षुब्ध, निर्भीक (पएह २, १)।
महाभद्द पुं[हारावभासमहाभद्र] पूर्वोक्त वि [ नवम] माड़े पाठ (पि ४५०)। ही अर्थ (जीव ३)। हारोभासमहावर पुं अद्दीण देखो अदीण (मोघ ५३७) ।
'नाराय देखो °णाराय (कम्म १, ३८)। [हारावभासमहावर अर्धहारावभास नामक अदुमाअ वि [दे] पूर्ण, भरा हुआ (षड्)।
पंचम वि [पञ्चम] साढ़े चार (सम समुद्र का एक अधिष्ठाता देव (जीव ३)। अद्देस वि [अदृश्य देखने के अशक्य (स
१०२) । पलिअंक वि [पर्यङ्क] आसन- हारोभासवर पुं [हारावभासवर] देखो १७०)।
विशेष (ठा ५, १)। 'पहर पुं [प्रहर] पूर्वोक्त अर्थ (जीव ३)। ढ़य पुं [ढिक] अद्देसीकारिणी श्री [अदृश्यीकारिणी अदृश्य
ज्यौतिष शास्त्र प्रसिद्ध एक कुयोग (गण एक प्रकार का परिमारण, आढ़क का प्राधा बनानेवाली विद्या (सुपा ४५४) ।
१८)। बब्बर पुं [बबर] देश-विशेष भाग (ठा ३, १)। अद्देस्सीकरण वि [अदृश्यीकरण] १ अदृश्य (पउम २७, ५)। मागहा, 'ही स्त्री करना । २ अदृश्य करनेवाली विद्या, 'किंपुण [मागधी] प्राचीन जैन साहित्य की प्राकृत
अद्ध पुं [अध्वन्] मार्ग, रास्ता (महा; आचा)। विजासिज्झा अद्देस्सीकरणसंगमो वावि' (सुपा भाषा, जिसमें मागधी भाषा के भी कोई २
अद्धत पुं[दे] १ पर्यन्त, अन्त भाग (दे १, ४५५)। नियम का अनुसरण किया गया है। 'पोराण
१८ से ६, ३२; पाप); 'भरिजंतसिद्धपहद्धंतो अद्दोहि वि [अद्रोहिन] द्रोह-रहित, द्वेष- मद्धमागहभासानिययं हवइ सुत्त (हे ४, २८७;
(विक्र १०१)। २ पुं.ब. कतिपय. कईएक वर्जित (धर्म ३)।
पि १६; सम ६०; पउम २,३४)। मास पुं (से १३, ३२)। अद्ध पुन [अर्ध] १ आधा (कुमा)। २ खण्ड, [ मास] पक्षः पनरह दिन (दे १०)। अद्धक्खण न [दे] १ प्रतीक्षा करना, राह अंश (पि ४०२)। करिस [कर्षे परि- मासिय वि [ मासिक] पाक्षिक, पक्ष- देखना (दे १, ३४)। २ परीक्षा करना (दे माण-विशेष, फल का पाठवा भाग (मरण)।। सम्बन्धी(महा)। यंद देखो चंद (उप ७२८ । १, ३४)।
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