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arty वि [ अनल्प ] अधिक, बहुत ( औप ) । अणप्प [अनात्मन] निज से भिन्न सामा से परे (पउम ३७, २२) । 'जवि ['ज्ञ] १ निर्वाच२ पागल, भूताविष्ट, पराधीन ( निचू १) । वसगवि ['वंश ] परवश, पराधीन (पउम ३७, २२) । अप्प पुं. [दे] खड्ग, तलवार (दे १, १२) ।
अपि वि[अर्पित ] १ नहीं दिया हुआ २ साधारण, सामान्य, प्रविशेषित (ठा १० ) । "य ["नय] सामन्याप अणस्तर वि[अनभ्यन्तर] भीतरी तस्व को नहीं जाननेवाला, नर्भि तरा खु अम्हे मदरणगदस्स वृत्तंतस्स' (श्रभि ११) ।
अणभिग्गह न [ अनभिग्रह ] 'सर्वे देवा वन्द्याः' इत्यादि रूप मिथ्यात्व का एक भेद (भा६) । अभिगवन [अनभिपदिक] ऊपर (२१) ।
अभिग्गहिय वि [अनभिगृहीत] १ कदाग्रह - शून्य (श्रा ६) । २ अस्वीकृत (उत २८ ) । वि 7 [अनभिज्ञ] [मजान, निर्वाध
अभि (अभि १७४; सुपा १६८ ) |
अणभिन्न
अभिलाप वि [ अनभिलाप्य] अनिर्वच नीय, जो वचन से न कहा जा सके ( लहु ७) ।
मिसवि [ अनिमिष] १ विकसित, खिला हुआ (सुर, १४३) २ निमेष-रहित, । पलक वर्जित (सुपा ३५.४) । अणय [अन्य] नीति अन्याय (था २७ स ५०१) ।
अणयार देखो अणगार ( पउम ११, ७) । अणरण्य [अनरण्य] साकेतपुर का एक राजा जो पीछे से ऋषि हुआ था (पउम १०, ८७) ।
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अणरह अणरिह
वि [ अन ] प्रयोग्य, नालायक, (कुमा); 'गवि दिजति अरारिहे, अणरुह रिहत्ते तु इमो होई' (पंचभा) । रहू स्त्री [] नवोढ़ा, दुलहिन ( पड् ) । अणरामय पुं [दे] अरति, बेचैनी (दे १, ४५ भवि ) ।
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पाइअसहमणो
अणप्प - अणह
अणराह पुं [दे] सिर में पहनी जाती रंगबिरंगी पट्टी (दे १२४ ) । अणरिक्क वि [दे] अवकाश-रहित, फुरसतरहित (दे १. २०)। २ दधि और आदि गोरस भोज्य (निचू १६ ) । अगर [] योग्य नालायक अगर (गाया १, १) । } T
अणराय वि [अराजक ] राज-शून्य, जिसमें अणवत्थ वि [ अनवस्थ ] अव्यवस्थित, अनिराजा न हो वह (बृह १ ) । यमित, असमंजस (दे १, १३६) । अणवत्था स्त्री [अनवस्था ] १ अवस्था का अभाव ( उव) । २ एक तर्क -दोष (विसे) । ३ अव्यवस्था, 'जरगरणी जायइ जाया, जाया माया पिया य पुत्तो य । प्रणवत्था संसारे, कम्मवसा सव्वजीवाणं' (पिवे १०७) । अवदग्गवि (दे] १ अनन्त, अपरिमित निस्सीम (भाग ११) २ विनाश (सुम २, ५) ।
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अणलं प [ अनलम् ] समर्थ (धाचा २, ५, १, ७) ।
tra वि [ अनवद्य] निष्पाप, निर्दोष, शुद्ध ( प्राकृ २१ ) ।
अगल पुं [अनल] १ अग्नि, आग (कुमा) । २ वि. श्रसमर्थं । ३ अयोग्य, 'अगलो अपच्चलोति होति होगो व एम (११) अणव वि [ ऋणवत् ] १ करजदार । पुं. दिवसका
अगवन्निय देखो अगयि (श्रीप) अणवयग्ग देखो अगवद्ग्ग (सम १२५: परह 1, 3; 5)
वयमाण a वाद नहीं करता
३)। अवगल्लfa [ अनवग्लान ] ग्लानि-रहित, अणवरय वि [ अनवरत ] १ सतत, निरन्तर, निरोग; श्रविच्छिन्न । २ न. सदा, हमेशा (गा २८० 2)।
अणवराइस ( प ) वि [ अनन्यादृश ] श्रसाधारण, पतिीय (कुमा) । अपसरवि[अनपसर] प्राकस्मिक चि
(पा)
अवयव [ अनपकृत ] जिसका अपकार न किया गया हो वह ( उव)
'सट्टस अरण वगल्लस्स, निरुवकिटुस्स जंतुर एगे ऊसासनीसासे एस पात्ति वुबई' (ठा २, ४) । अणवमपि [ अनपत्य] सन्तान रहित निर्वंश (सुपा २५९) ।
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अणवज्जन [ अनवद्य] १ पाप का प्रभाव, कर्म का अभाव (सूत्र १, १, २ ) । २ वि. निर्दोष, निष्पाप (प ) | अणवाज दि [अगव] ऊपर देखो (विसे)। अणचटुप्प वि [अनवस्थाच्य]
जिसको फिरसे दीक्षा न दी जा सके ऐसा गुरु अपराध करनेवाला (बृह ४) । २ न. गुरु प्रायश्चित्त का एक भेद (ठा ३,४) ।
अणवट्ठिय वि [अनवस्थित] १ श्रव्यवस्थित, नियमित (प्रा १३७३ र ४, ७६) २ मंच पर चितिं (सुर अस्थिर 'रणवट्टियं १२. १३०)। ३ [पत्य-विशेष नाप-विशेष (कम्म ४, ७३) ।
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वणिय पुं [ अणपत्रिक, अणपणिक ] वानव्यंतर देवों की एक जाति (पराह १, ४ भग १०, २) ।
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[ अनपवदत् ] १ अपहुआ। २ सत्यवादी ( वव
torate वि [ अबाध ] बाधा रहित, निर्बाध ( सुपा २६८ ) ।
अगवेक्सि वि [अनपेक्षित] उपेक्षित, जिसकी परवाह न हो ।
अगक्खियवि [अनबेक्षित] १ नहीं देखा हुआ । २ श्रविचारित, नहीं सोचा हुआ । करिव [कारिन्] साहसिक । कारिया
[कारिता ] साहस कर्म ( उप ७६८ टी) । अगसण न [ अनशन ] प्रहार का त्याग, उपवास (सम ११९ ) ।
असिव [अनशित] उपोषित, उपवासी ( धावम) |
अगह वि [अनघ] निर्दोष, पवित्र (श्री गा २७२; से ६, ३) 1
अह वि [] अक्षत, क्षति-रहित, व्रणशून्य (दे १, १३ सुपा ६, ३३; सरण) ।
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