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________________ * प्रकाशकीय जणावतां अमोने आनन्द थाय छे के अमारो आ श्री सेठ दे० ला जैन संस्थाना स्थापक आगमोद्धारक श्री छे. ते आ अमारी संस्था जैन धर्मना अनेक ग्रन्थोनुं प्रकाशन करे छे. तेमां श्री - अल्पपरिचित सैद्धान्तिकशब्दकोस के जे तेओश्रीनी संकलना छे. तेना प्रथम भागने अमारी संस्थाना क्रमांक १०१ मां, बीजा भागने नं० ११५ अने भाग त्रीजा ने नं० ११६ तरीके प्रगट कर चुकी छे. अने अत्यारे आ तेना चौथा भागने नं० १२५ मा तरीके प्रगट करे छे. ते आनंदनी बात छे. जो के चार भागमा कोष पूर्ण करवो हतो पण हवे पांचमा भागमां पूर्ण करी शकशु आ भागमा 'फ' थी 'व' सुधिना शब्दोनो समावेश कर्यो छे. अमारा निवेदननी केटलोक वातो पूर्वेना भागोमा आपी छे. ने हवे पांचमा भागमां विशेष बात आपशु . संपादक वक्तव्य पण आमां आपवामां आव्यु नथी, ते पण पांचमा अन्त्य भागमां आवशे.. प्रस्तावना पण पाँचमां भागमां आवशे. आगमोद्धारकना तो ऋणथी मुक्ति थवाय तेम नथीज. संपादक आगमोद्धारक उपसंपदा प्राप्त शिशु पं कंचनसागरजी म० तेमज तेमना सहसंपादक मुनि प्रमोदसागरजी छे. तेमना पण संपादन करवा बदल ऋण छीए. आनु शुद्धिपत्रक पं० श्रीप्रबोधसागरजी म. करी आप्युं ते बदल तेओ श्रीनो अमे आभार मानीए छीए. जैनेन्द्रप्रेसना मालीक पंडित परमेष्ठिदासे प्रीन्टीग करी आपवा बदल तेमनो पण आभार मानीए छीए. शुद्धिपत्रक आपेलु छे तेनो उपयोग करवा वाचकवृन्दने विनंती करीए छीए. ग्रन्थमां जाणे अजाणे थयेली भुलने वाचकवृ दादि दरगुजर करशे एज अभ्यर्थना. अमारा प्रयासने सफल करशो एवि आशा अस्थाने नथी. वि० सं० २०३० अक्षयतृतीया ता० २५-४-७४ Jain Education International शे० दे० ला ० जै० ना ट्रष्टीमंडल वती मोतीचन्द मगनभाई चोकसी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016077
Book TitleAlpaparichit Siddhantik Shabdakosha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1974
Total Pages286
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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