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रही गयेला शब्दो पूर्ति रूपे आपवामां आवेल छे. संस्कृत शब्दोना अंग्रेजीमा अर्थ आपवामां आव्या छे अने घणे स्थाने शब्दनो प्रयोग दर्शावती मूळनी पंक्तिओ उद्धृत करी छे. शब्दो नागरी लिपिमा अने संस्कृत कोशना वर्णक्रममा छे. बधी कृतिओना थईने कुल ४००० जेटला शब्दो नोंधायेला छे, परंतु एक शब्द एकथी वधु कृतिओमां मळतो होय एवा दाखला पण घणा छे.
जैन संस्कृत देशी शब्दोना संस्कृतीकरण माटे जाणीतुं छे. केटलाक शब्दोमां विशिष्ट अर्थछायाओ पण विकसी छे. मध्यकालीन गुजरातीमां पण आमांना केटलाक शब्दोनुं अनुसंधान देखाय छे ने तेथी केटलाक लाक्षणिक शब्दप्रयोगोमां आ कोश मार्गदर्शक बन्यो छे. वनौषधिकोश, संपा. केशवराम का. शास्त्री, प्रका. प्राच्यविद्या मंदिर, महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, वडोदरा, १९८२.
आ ग्रंथनो मुख्य भाग ते वनस्पतिओनां संस्कृत नामोनो कोश छे. मूळ शब्द, एना एक के वधु गुजराती पर्यायो मूळ शब्दना अन्य संस्कृत पर्यायो, लॅटिन पारिभाषिक पर्याय अने मळी शक्या ते मराठी, हिंदी, पंजाबी, बंगाळी, तामिळ अने अंग्रेजी पर्याय - ए रीते बधां वनस्पतिनामो अकादिक्रमे आपवामां आव्यां छे. आ कोशमां आशरे ४५०० वनस्पतिनामो छे. चार परिशिष्टोमांथी पहेलामां कच्छी नामो गुजराती पर्याय साथे, बीजामां लॅटिन नामो संस्कृत पर्याय साथे, जीजामां गुजराती नामो संस्कृत पर्यायो साथे अने चोथामां 'सोढल-निघंटु'मां मळतां नवां वनस्पतिनामो समावायां छे.
मध्यकालीन गुजराती वनस्पतिनामोने उकेलवामां आ कोश उपयोगी थयो
वर्णकसमुच्चय भाग १ अने २, (भाग १) संपा. भोगीलाल ज. सांडेसरा, (भाग २)
भोगीलाल ज. सांडेसरा अने रमणलाल ना. महेता, प्रका. महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, वडोदरा, १९५७ अने १९५९.
___ पहेला भागमां वर्णको छे अने बीजा भागमां एने आधारे करवामां आवेखें सांस्कृतिक अध्ययन अने शब्दसूचिओ छे. शब्दसूचिओ बे प्रकारे छे - विषयवार अने सामान्य. विषयवार शब्दसूचिमां भोजनसामग्री, वस्त्र, अलंकार, देशप्रदेश, नगररचना अने स्थापत्य, राजलोक अने पौरलोक, शस्त्रास्त्रो, अश्वजाति वगेरेनां नामोनी सूचिओ छे अने सामान्य शब्दसूचिमा ए सिवायना सर्व शब्दोनी सूचि छे. शब्दसूचिमा पहेला भागनो स्थाननिर्देश मात्र छे, अर्थो नथी, परंतु जुदाजुदा विषयोना जे शब्दो छे तेनी समजूती ए विषयोना सांस्कृतिक अध्ययनोमांथी मोटे भागे मळे
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