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थोडी शब्दार्थचर्चा
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मुक्त के क ॠण, उपकार के एना भारमांधी
(१) सिंहा (म).मां राजा उपर एक वखते उपकार करनार ब्राह्मण वांकमां आवे छेने राजसभा एने शूळीए देवानुं सूचवे छे त्यारे राजा कहे छे
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एह उपगार उसीकल केम, पसाउ करी पुहचाडो खेम. ( ११४ )
( एना उपकारना भारमांथी मुक्त केम थवाय ? भेटसोगाद आपी एने क्षेमकुशळ घेर पहोंचाडो . )
मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश
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संपादके 'आभारी, ओशिंगण' अर्थ लई अनुवाद आप्यो छे – “एना उपकारनो हुं ओशिंगण छु,” एमां 'केम' शब्द बाकात रह्यो छे. उपरांत, संदर्भमां पण ए अर्थ टकी शके तेम नथी.
(२) नलाख्या. मां हंस नळने कहे छे
प्राणदान ति मूझने दीधुं ते ओशीकल थांउं,
प्रत्युपकार करेवा, राजा, कुंडिनपुरि हूं जांउं. (६, १९)
(तें मने प्राणदान कर्तुं छे तेना ऋणमांथी मुक्त थाउं . )
संपादके 'ओवारणा लीधेल, वारी जवायेलुं, उपकृत' एवा अर्थो नोंध्या छे. रा. चू. मोदीए एमना संपादनमां 'आभारी' अर्थ आप्यो छे. आ अर्थो योग्य नथी. (३) विक्ररा.मां
मां -
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माता कही गंग समान, अड़सठि तीरथ मांहिं प्रध्यान,
निशिदिन धोई पीइ पाय, तुहि ओसंकल पुत्र न थाय. (४७६) ( माताना पग धोईने रोज पीए तोये पुत्र एना ऋणमांथी मुक्त न थाय.) संपादके 'ओशिंगण, आभारी' ए अर्थ आप्यो छे, जे टकी शकतो नथी. (४) नलरा.मां
ताहरी दृष्टि संपनु, जीवी दीधू माय,
तूझ उसीकल नवि थाउं, प्रणमउ तारा पाय. (६९०)
(तारी नजरे चड्यो अने माता ! तें मने जीवतदान आप्युं. तारा ऋणमांथी हुं मुक्त नहीं थाउं.)
(५) ए ज कृतिमां पोताने आश्रय आपनार दधिपर्णने नल कहे छे
मित्र सहोदर भाई माहरु, उसीकल नही थाउं ताहरु. ( १०२१ ) (तुं मारो मित्र, सहोदर, भाई छे. तारा ऋणमांथी हुं मुक्त नहीं थाउं . ) ने परत्वे संपादके 'आभारी, ओशिंगण' अर्थ आप्यो छे, जे खोटो छे. (६) रत्नसूरिशिष्यकृत 'रत्नचूडरास' (१६५३) (संपा. ह. चू. भायाणी, १९७७)
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