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मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश
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थोडी शब्दार्थचर्चा
थाडा शब्दावरचा
(आम मनमां विचारता लाखोनी गणतरी / संख्यामां लोको....) संपादके ‘गाने'नो 'ज्ञाने' अर्थ आप्यो छे ते खोटो छे. सं.'गणना' प्रा. गण्णा' परथी 'गान' शब्द आव्यो जणाय छे.
[गुजरात दीपोत्सवी अंक, सं. २०५०]
४४. उशंकल, उसंकल, उसीकल, उसींकल, ओशिंगळ, ओशीकळ,
ओशींगल, ओसंकल, ओसीकल बोलीकक्षाए वपरातो 'ओशिंगण' शब्द आपणने परिचित छे. ए शब्द आपणे 'आभारी, ऋणी, उपकृत, अहेसानमंद' एवा अर्थमा योजीए छीए अने शब्दकोशो पण ए शब्दने ए अर्थमां ज नोंधे छे. भगवद्गोमंडले एनो एक वधारानो अर्थ 'बदलो वाळी आपनारूं' नोंध्यो छे ते विरल अपवाद छे. कोशो 'ओशिंकळ/ओशिंगळ' ए शब्द पण नोंधे छे अने आ ज अर्थमां नोंधे छे. एक ज शब्दना आ बे उच्चारभेदो होय एवी एमनी समज जणाय छे. भगवद्गोमंडले 'उसंकल, उसीकल' वगेरे घणा उच्चारभेदो नोंध्या छे, पण एणे पण त्यां बधे 'आभारी, ऋणी' एवो ज अर्थ दर्शाव्यो छे.
.. मध्यकालीन साहित्यमा ‘ओशिंगण' एवं 'ण'कारवाळु रूप जोवा मळ्युं नथी, 'ल'कारवाळु रूप ज जोवा मळे छे-- उशंकल, उसंकल, उसीकल, उसींकल, ओशिंगळ,
ओशीकल, ओशींकळ, ओशींगल, ओसंकल, ओसीकल वगेरे. स्वाभाविक रीते ज मध्यकालीन साहित्यना आपणा घणा संपादको-अभ्यासीओ आ मध्यकालीन प्रयोगने 'ओशिंगण' ना अत्यारना अर्थमां – 'आभारी, उपकृत' एवा अर्थमां - वांचवा ललचाया
छे, जे आपणा कोशोए पण कर्यु छे. पण मध्यकालीन 'उसींकल' वगेरे शब्द, 'ओशिंगण' थी ऊलटा ज अर्थमां, 'ऋणी' नहीं पण 'ऋणमुक्त', ने एमांथी विकसेला केटलाक अर्थोमां वपरातो होवानुं स्पष्टपणे देखाय छे. ए नोंधपात्र छे के ऐतिरा.(१९१६)ए सौप्रथम 'गुण-उसंकल'नो 'गुणनी भरपाई' (=गुण/उपकारनो बदलो) एवो अर्थ आप्यो छे. ते पछी उपबा.(१९३५)मां 'उसंकल'नो 'fulfilling the obligation' (ऋण चूकवq ते) एवो अर्थ अपायो छे. आ पछी मदमो.(१९५५)मां 'ओशीकल/ओशींगल'नो 'ऋणमुक्त' एवो अर्थ अपायो छ ने एना अर्थ- भारतीय विद्याभवननां प्रकाशनोमां अने अन्यत्र क्यांक-क्यांक अनुसरण थयेलुं छे, पण आ शब्दने 'ओशिंगण, आभारी, ऋणी' एवा अर्थमां लेवानुं पण व्यापकपणे जोवा मळे छे.
___ 'उसींकल थर्बु | करवु' एटले 'ऋण, उपकार के एना भारमांथी मुक्त थवू.' एमांथी 'बदलो वाळवो' 'वचन पाळ' वगेरे अर्थोनो पण विकास थयो छे. आ विविध अर्थोने अनुलक्षीने 'उसींकल' वगेरेना मध्यकालीन प्रयोगो आपणे जोईए.
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