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वीसरा.
प्रका. गूर्जर ग्रंथरल कार्यालय, अमदावाद, १९६९.
कृति पंदरमी सदीमा १४२२ पूर्वे रचाई झैवानुं नक्की थाय छे.
शब्दकोशमा ४५० जेटला शब्दों छे. 'रखे "रडवडइ' रूपई' 'रूड' जेवा सामान्य उच्चारभेदथी अत्यारे प्रचलित शब्दों पण नोंधाया छे. शब्दोनां व्याकरणी रूपो ओळखाव्यां छे ने व्युत्पत्ति दर्शावी छे. ध वीसळदेव रास, ए रेस्टोरेशन ऑब्ध टेंकस्ट, ज्हॉन डी. स्मिथ, प्रका. केम्ब्रिज युनिवर्सिटि प्रेस, केम्ब्रिज, १९७६.
कृतिमा रचनावर्ष नथी, पण एनी रचना १४५० आसपासमां थई होवानु अनुमानवामां आव्युं छे.
शब्दकोश आशरे १४५० शब्दोने समावे छे. एकेएक शब्द अने एकेएक प्रयोग नोंधवामां आव्यो छे.. एमां अत्यारे प्रचलित घणा शब्दो पण होय ज. देखीती रीते ज आ बधा शब्दोने आ संकलित कोशमां स्थान न होय. शब्दोना व्याकरणी पदप्रकार दर्शाववामां आव्या छे. क्रियापदो धातु रूपे ज नोंध्यां छे. शब्दमूळ दर्शाव्यां छे अने शब्दोनी विशेष समजूती माटे टिप्पणनो हवालो आप्यो छे. कृतिनो अनुवाद छे ते पण अर्थने स्पष्ट करवामां काम आवे तेम छे. अर्थो अंग्रेजीमा छे तेनो आ संकलित कोशमां गुजराती अनुवाद करी लीयो छे.
राजस्थानी भाषानी एक लाक्षणिकता तरीके अहीं सर्वत्र 'ळ' राखवामां आव्यो छे, 'ल' नहीं, जोके वर्णक्रममा ए 'ल'ने स्थाने ज छे. 'ख' उच्चारवाळा शब्दो 'ष' लिपिचिह्नथी अने 'ष'ना ज क्रममां मुकाया छे. आ संकलित कोशमां एने 'ख'ना क्रममा लई लीधा छे. (शामळ भट्टकृत) वेतालपचीसी, संपा. अंबालाल स. पटेल, प्रका. भारतीय विद्याभवन, मुंबई, १९६२.
कृतिनुं रचनावर्ष १७४५ (सं.१८०१) छे. शब्दकोशमां आशरे १७५ शब्दो छे.
शब्दकोश हरिवल्लभ भायाणीए तैयार करेलो छे. (उदयकलशकृत) शीलवती कथा, संपा. कनुभाई व्र. शेठ, धनवंत ति. शाह, प्रका. समता प्रकाशन, अमदावाद, १९८२.
कृतिनुं रचनावर्ष १५५२ (सं.१६१८) छे.
शब्दकोशमां आशरे १०० शब्दो छे. थोडा शब्दोमां व्युत्पत्ति दर्शावी छे. कोईक शब्दो वर्णक्रमभंगथी मुकाया छे.
वेताप.
शीलक.
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