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मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश
थोडी शब्दार्थचर्चा
छे. ए ज अर्थ नेमिछं.नी उपर्युक्त पंक्तिमां बंध बेसे छे : "हुं सदा वणपुरायेली इच्छावाळी रही. तें मारी एक पण आशा पूरी न करी." असंतुष्ट, कर्कशा स्त्रीनो ज आ उद्गार छे.
भगवद्गोमंडलमां उद्धृत थयेली पद्मनाभकृत 'कान्हडदेप्रबंध मांनी पंक्ति आ प्रमाणे
छे :
लागुं वली अणूरुं मानि, जोतां आवइ मरण निदानि.
वीरमदेवनुं कपायेलुं मस्तक अल्लाउद्दीननी पुत्री पिरोजा समक्ष आवे छे त्यारे एना रूप पर ए वारी जाय छे। अने पछी आ उद्गार करे छे. कान्तिलाल ब. व्यासे पोताना संपादनमां आ पंक्तिनो अर्थ आम कर्यो छे : " (एने जोतां) वळी मनमां (कांईक) जुदो ज (अणूरुं; सर. अणु-अन्यत्, प्रा.गु.का.सं.) भास थाय छे (लागु) के (जो) तेने (तां) (वीरमदेने ) ( सर. पाठान्तर जे तां) खरेखर (निदानि) मरण आप्युं छे ( के केम) ! (एटलुं तेज अने ताजगी मुख पर हती ! ) "
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व्यासना अनुवादनी मुश्केलीओ स्पष्ट छे 'मानि'ने 'मनि' तरीके लेवुं पड्युं छे, 'अणूरुं' ने स्थाने 'अणु'नी कल्पना करवी पडी छे वगेरे. संदर्भमां पंक्ति कंईक अस्पष्ट तो रहे ज छे, छतां 'अणूरुं' शब्द तो एना प्रचलित अर्थमां ज अहीं छे एमां शंका नथी. वीरमदेवे पिरोजानुं मोढुं जोवा इनकार कर्यो हतो ते याद करी पिरोजा अत्यारे, आ उद्गार पछी टोणो मारे छे के “वीर पुरुषे जे वचन लीधुं हतुं के कुंवरीनुं मोढुं नहीं जोउं तेनो ते भंग करी रह्या छे. जे सुकुलीन साहसिक पुरुष होय छे ते मरण समये पण पोतानुं मान मूकता नथी." ए जोतां आ पंक्तिनो अर्थ आम होवानो संभव लागे छे : “पण (ए मस्तक) मान परत्वे ऊणुं लाग्युं. ए जोतां मरण नक्की आव्युं छे.” आ अर्थ दुराकृष्ट लागे तो "वळी ओष्टुं आव्युं छे एम माने छे" एदी कंईक अर्थ लेवो जोईए.
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'अणूरुं'ना मूळमां सं. 'अन्+ पूर्' छे. आनुं संज्ञारूप 'अणूरति' (सं. 'अन्+ पूर्ति') पण समयप्रमोदकृत ‘आरामशोभा चोपाई' मां वपरायेलुं मळे छे :
किसीय अणूरति तास.
(एने शी न्यूनता / खोट छे ? )
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षडाबा. मां नीचे प्रमाणेना एकथी वधु प्रश्नोत्तर मळे छे : " छम्मास उत्कृष्टु तपु रे जीव ! करी सकइ ?"
"अत न सकुं.
संपादक प्रबोध पंडिते 'अत'ना 'now, here' एवा अर्थो आप्या छे ने आ
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२२. अत
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