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थोडी शब्दार्थचर्चा
५८० मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश
? तीरने कही शकाय पण ए शब्द तो पंक्तिमां घणो दूर छे अने एनी साथे 'अणीसर' नो अन्वय करवो मुश्केल छे. वस्तुतः भगवद्गोमंडल 'अणीसर' नो अर्थ 'आरपार' आपे छे ने एना समर्थनमां नीचेनुं उदाहरण 'बुद्धिप्रकाश' मांथी आपे छे :
कंठ [कठ] चंदण कोर्यां भमार पड्यां अणीसर एह. (चंदनकाष्ठ कोर्यां अने एनी आरपार काणां पड्यां.)
विक्ररा.मांनी पंक्तिमा आ अर्थ बंधबेसतो थाय छे : जरह जरद ए बख्तरोने आरपार वींधीने तीर शरीर साथे जडाय छे.
गुर्जरा. - अंतर्गत हीराणंदकृत 'विद्याविलास पवाडउ 'मां पण आ शब्द वपरायेलो
छे :
फोडइ पक्खर जरद अणीसर तीरइ तीर पडंति.
(पाखर अने जरदने आरपार वींधे छे अने तीर उपर तीर पडे छे.) २१. अणू, अणूरति
नेमिछं. मां नीचे प्रमाणे पंक्ति मळे छे :
हुं सदा अणूरी, एक न पूरी तई पुहुचाडी आस.
संपादके 'अणूरी' नो अर्थ 'दासी, पत्नी' एवो आप्यो छे, अने एना मूळमां सं 'अनुचरी' शब्द मान्यो छे. पण मध्यकाळमां 'अणूरुं' शब्द व्यापक रीते 'अधूरुं, ओछु, न्यून' एवा अर्थमां वपरायेलो मळे छे अने भगवद्गोमंडले आ अर्थमां आ शब्द नोंध्यो पण छे. त्यां ‘कान्हडदेप्रबंध' मांथी पंक्ति पण उद्धृत थई छे. अन्यत्र आ शब्द वपरायेलो छे. तेनां उदाहरण जुओ :
आरारा. अंतर्गत पूंजाऋषिकृत 'आरामशोभाचरित्र' मां पीहरनी वांछा करइ, नही अणूं तांह. (पियरमांथी कई इच्छे एवं त्यां कई ओछु नथी.) विमप्र.मां
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किसिउं अणूंरूं ताहरइ स्वामि .
(तारा स्वामीने शुं ओखुं छे ?)
गुर्जरा. - अंतर्गत शालिसूरिकृत 'विराटपर्व' मां
एतलई अति पराभव पूरी, एक दासपण चित्त अणूरी.
(एक तो दासपणाने लीधे जेने मनमां ओटुं आव्युं हतुं / जे असंतुष्ट हती एवी ए हती, तेमां अति अपमानथी ए भराई . )
गुर्जरा. ना संपादकोए 'अणूरी'नो' अर्थ 'unfulfilled, unsatisfied’ (वणपुरायेली इच्छाओवाळी, असंतुष्ट ) एवो अर्थ आप्यो छे ए संदर्भमां अत्यंत उचित
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