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थोडी शब्दार्थचर्चा
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मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश
संपादके 'अघाट' नो अर्थे 'पूरेपूरुं' आप्यो छे ते संदर्भमां बेसाडी शकातो नथी. उपरांत 'अघाट' आवो अर्थ केवी रीते आपी शके ते प्रश्न छे.
आपणे त्यां 'आघाट' चतुःसीमा माटे वपरातो शब्द छे. मकान 'आघाट' एटले एनी चार सीमा साथे वेचाण आप्यानुं लखातुं होय छे. अहीं 'उभो आघाट' नो अर्थ 'चारे आघाट - सीमा वच्चे ऊभो रहीने' एटले 'जाहेरमां, खुल्लेखुल्लुं' एम होवानुं समजाय छे: "राजाने तें केम मार्यो ए जाहेरमां, खुल्लेखुल्लुं साचुं बोली दे." ए नोंधपात्र छे के 'अघाट'नुं 'आघाट' एवं पाठांतर मळे छे.
१२. अच्छउं आ
'आछु' शब्द अत्यारे गुजरातीमां 'झीणुं, बारीक' एवा अर्थमां प्रयोजाय छे, पण संस्कृत-प्राकृतमां ' अच्छ' एटले 'सुंदर, निर्मल' एवा अर्थो छे. हिंदीमां ' अच्छु' शब्द 'सुंदर, सरस' एवा अर्थमां छे ए जाणीतुं छे अने राजस्थानी कोश पण 'आछौ' ना 'अच्छा, सुंदर, भला, उत्तम' एवा अर्थो नोंघे छे, 'बारीक, झीणुं' एवो अर्थ नहीं.
मध्यकालीन गुजरातीमां पण आ शब्द 'सरस, सुंदर' ना अर्थमां होय एवं जणाय छे. नरपतिकृत 'वीसलदेव रास' (संपा. ज्हॉन डी. स्मिथ) मां 'आछउ' शब्दनो 'good, fine' (सरस, सुंदर) एवो अर्थ ज लेवायेलो छे. त्यां आछि गोरी, आछा चावल एवा प्रयोगो मळे छे ते आ अर्थनुं समर्थन करे छे.
परंतु तेरका. (संपा. हरिवल्लभ भायाणी) मां 'अच्छय' शब्दनो 'आछु' अर्थ अपायेलो छे. अति अच्छउं सुकुमाल चीरु एवी उक्तिने संदर्भे अपायो छे एटले 'आछु' नो अत्यारे प्रचलित 'बारीक, झीगुं' ए अर्थ ज अभिप्रेत होवानुं मानी शकाय .
प्राचीफा. मां पण 'आछउं 'नो 'झीणुं' अर्थ अपायेलो छे. एमां पण आ वस्त्रनुं विशेषण ज छे अतिआछउ सुकमाल चीरु, आछां अंबर.
म लागे छे के मध्यकालीन गुजरातीमां वस्त्र संदर्भे पण 'आछु'नो 'सरस, सुंदर' एमज अर्थ होवो जोईए. उपरना संदर्भोमां बारीक वस्त्रनी कोई प्रस्तुतता नथी. 'वर्णकसमुच्चय' (संपा. भोगीलाल सांडेसरा ) मां सामान्य सूचना रूपे अच्छा कपड़ा पहरियइ एवी उक्ति मळे छे तेमां 'सुंदर, सरस' अर्थ ज लेवानो रहे छे. 'माल निगद' (कोई खाद्य पदार्थ) ने आछु कहेल छे त्यां पण 'बारीक' अर्थने अवकाश नथी, 'सुंदर' अर्थ ज लेवो जोईए.
[कंकावटी]
१३. अज उभां
सिंहा (शा). मां एक पंक्ति आ प्रमाणे मळे छे :
अज उभां लें जे दान, मागण जांणि नवी द्ये मान.
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