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संपादके व्युत्पत्ति के समान्तरता दर्शावी छे एमां अन्य साधनोनी घणी मदद लेवामां आवी छे. व्युत्पत्तिनी बाबतमां, सामान्य रीते, डॉ. भायाणीए एमना ग्रंथोमां आपेली व्युत्पत्तिओ वधु साधार लेखवानुं वलण रमु छे. छतां संपादक पोताना आ प्रयासनी अधूरपथी सभान छे ज. एथी ज एवी विनंती करवानी छे के अभ्यासीओ अहीं अपायेली व्युत्पत्तिओने कामचलाउ रीते अपायेली लेखे अने प्रमाणभूत व्युत्पत्ति माटे मान्य लेखातां साधनोनो आश्रय ले. हवे तो डॉ. हरिवल्लभ भायाणीना गुजराती भाषानो लघु व्युत्पत्तिकोशमां घणी व्युत्पत्तिओ हाथवगी पण थई छे. अलबत्त, ए अर्वाचीन गुजराती शब्दोनो व्युत्पत्तिकोश छे, तेथी केवळ मध्यकाळमां प्रचलित शब्दोनी व्युत्पत्ति एमांथी नहीं जडे. जेवी छे तेवी आ संकलित कोशमां अपायेली व्युत्पत्तिओ थोडी पण काम आवशे तो संपादके ए माटे करेलो श्रम लेखे लागशे.
आधारग्रंथो (शब्दसामग्री माटे उपयोगमां लीधेला संपादित ग्रंथोनो परिचय,
एमना संक्षेपाक्षरोने क्रमे) अखाका. अखानी काव्यकृतिओ खंड २, संपा. शिवलाल जेसलपुरा, प्रका. साहित्य
संशोधन प्रकाशन, अमदावाद, १९८८. __ आ संपादन अखाभगतनां पदो उपरांत बीजी केटलीक कृतिओने समावे छे. कोई कृति रचनावर्ष धरावती नथी, परंतु अखाभगतनो कवनकाळ सत्तरमी सदी मध्यभाग निश्चित छे.
आमां आशरे १५०० शब्दोने समावतो कोश छे. एमां संस्कृत शब्दो अने रूढिप्रयोगो पण नोंधवामां आव्या छे. 'शुद्धि अने वृद्धि'मां पण
शब्दकोशने लगती शुद्धिवृद्धि छे. अखाछ. अखाना छप्पा, संपा. उमाशंकर जोशी, प्रका. वोरा, अमदावाद, त्रीजी
आवृत्ति १९७७.
आ कृतिने पण रचनावर्ष नथी, परंतु अखाभगतनो कवनकाळ सत्तरमी सदी मध्यभाग सुनिश्चित छे. ___आमां ४५०० जेटला शब्दोंने समावती शब्दसूचि छे ते उपरांत छप्पाओनी साथे टिप्पण रूपे पण अर्थ ने समजूती आपेला छे, टिप्पणमां अपायेला शब्दार्थोमांथी केटलाक शब्दसूचिमां आव्या न होय एबुं देखाय
छे. शब्दकोशमां शब्दो परत्वे एकधी वधु स्थाननिर्देश कर्या छे. अखेगी. अखेगीता, संपा. उमाशंकर जोशी अने रमणलाल जोशी, प्रका. गुजरात
युनिवर्सिटी, अमदावाद, बीजी आवृत्ति १९७८.
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