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खातरीपूर्वक न आपी शके - केवळ तर्क रूपे ज आपी शके, आम विविध स्थितिओ संभवती हती. आ बधी स्थितिओमां शुं करवू अने शब्दार्थने केम रजू करवा ए विशे चोक्कस नीतिनियम नक्की करवा जरूरी हता. केटलीक मथामणने अंते शब्दार्थ रजू करवानी नीचे प्रमाणेनी पद्धति नीपजी आवी :
(१) मूळ ग्रंथमा स्पष्ट रीते खोटो शब्दार्थ होय ते आ शब्दकोशमां न ज लेवो. आ कोशना संपादक पोताना तरफथी अर्थ आपी शके तेम होय त्यां ए [ ] चोरस कौंसमां मूकवो, एणे आपेलो अर्थ खातरीपूर्वकनो न होय, तर्करूप होय त्यां एनी आगळ * फूदडी करीने ए स्थिति दर्शाववी अने ए कोई प्रकारनो अर्थ आपी शके तेम न होय त्यां प्रश्नार्थ ज मूकवो. कोई एक ग्रंथमांथी एक शब्दनो खोटो अर्थ छोडवानो थाय अने बीजा ग्रंथोमांथी एनो साचो अर्थ मळी रहेतो होय त्यां, देखीती रीते ज, आ कोशना संपादके कई करवानुं न रहे. एणे जे ग्रंथनो अर्थ छोड्यो होय तेना संक्षेपाक्षरनी पूर्वे * फूदडी मूकीने परिस्थितिनो निर्देश मात्र करवानो रहे.
थोडा दाखला जोईए : पड (पड पितराई) * प्रेमाका. [पितराईना पितराई, वधु एक पेढी दूरना पितराई] पड-पितराई * नरका. [दूरना पितराई]
प्रेमाका.मां ‘पड' शब्द छे ने एनो अर्थ आप्यो छे 'रणपट, युद्धनुं मेदान'. कृतिमां शब्दनो प्रयोग आम मळे छे - मेल मेल रे पड, पितराई ! दुर्योधनपुत्र लक्ष्मण अभिमन्युना सकंजामां आवतां ए आंखमां आंसु साथे आ उक्ति बोले छे. मूळ ग्रंथना संपादके आपेलो अर्थ पहेली दृष्टिए बेसतो लागे, पण जरा विचार करतां आपणने शंका थाय छे के लक्ष्मण अभिमन्युने युद्धमेदान छोडवायूँ कहे के पोताने छोडवान कहे ? आ ज कृतिमा अन्यत्र थयेलो 'पड पितराई' प्रयोग पण आपणी नजर सामे आवे छे :
मस्तक छेदवा आवतो दीठो ज्यारे पड-पितराई
पड्यां पड्यां अभिमन्युने क्रोध आव्यो भराई. दुःशासनपुत्र काळकेतु अभिमन्यु सामे आवे छे तेनो अहीं उल्लेख छे. देखीती रीते अहीं काळकेतुने ज 'पड-पितराई' कह्यो छे. हिंदीमां प्रपौत्र माटे परपोता, पडपोता एवा शब्दो छे ते जोतां 'पडपितराई मां ‘पड' 'प्र'मांथी आवेलो छे एनी शंका रहेती नथी. प्रपौत्र, परपोता के पडपोता एटले पौत्रनो पुत्र, तो 'पडपितराई' एटले पितराईनो पितराई, वंधु एक पेढी दूरनो पितराई. अर्जुन ने दुर्योधन के दुःशासन ए पितराई, तेथी अभिमन्यु अने लक्ष्मण के काळकेतु ए पडपितराई. तेथी ‘मेलमेल रे, पड-पितराई' एम पाठ सुधारी लक्ष्मण पोताना पडपितराई अभिमन्युने पोताने छोडी देवा वीनवे छ
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