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पाठ सुधारवानुं मूळ संपादके पण कर्यु होय छे. जोके झाझे ठेकाणे तो आई आ संकलित कोशना संपादके ज करवानुं थयुं छे.
प्राथमिक तबक्के छोडी देवायेला खोटा शब्दो बधा ज चोकसाईथी पाछा दाखल नहीं थई शक्या होय. ते उपरांत जेनां पाठांतरो कशो प्रकाश पाडनारां नहोतां के जेनो कोई अर्थ बेसाडी शकातो नहोतो एवा भ्रष्ट जणायेला केटलाक शब्दो तो आ संकलित कोशमा छोड्या ज छे. ज्यां भ्रष्ट पाठने सुधारतां हाथमा आवतो शब्द अत्यारे परिचित होय त्यां ए पण न ज लेवानो होय. जेमके 'सीगरिने स्थाने 'सागरि' पाठ नक्की थतो होय, तो ‘सीगरि' शब्द अहीं लेवानी जरूर होय नहीं.
मूळ आधारग्रंथोना शब्दकोशोमां केटलीक छापभूलो ने सरतचूको पण पकडाई छे. शब्दकोशमां 'अखर', 'उतरीअ', 'कडक' ने 'जटाजूटी' होय पण कृतिपाठमां 'अखेर', 'उत्तरीअ', 'कटुक' ने 'जटाजूटा' होय. आवां स्थानोए केटलीक वार शब्द आ संकलित कोशमां सीधो सुधारीने ज मूक्यो छे; तो केटलीक वार मूळ शब्द राखी सुधारेलो शब्द बाजुमां ( ) कौंसमां मूक्यो छे. ज्यां शब्द सीधो सुधारी लेवामां आव्यो छे त्यां मूळ ग्रंथमां शब्द ए रूपे न मळे ए देखीतुं छे. पण अभ्यासीने मूळ शब्द पकडी पाडतां मुश्केली नहीं पडे. ज्यां संभ्रमनी शक्यता होय त्यां मूळ शब्द ने सुधारेलो शब्द बन्ने आप्या ज छे. ___मध्यकालीन लेखनपद्धतिमां 'ख' 'ष' तरीके लखातो, 'ज'ने स्थाने 'य' लखातो अने 'ब'-'व' वच्चे अभेद जेवू हतुं. 'वीसळदेव रासो'ना संपादके 'ख' उच्चारणवाळा शब्दो 'ष'मां ज आप्या छे, तो 'उक्तिरलाकर'मां एवा शब्दो 'ख'मां तेमज 'ष'मां पण अपायेला छे. अलबत्त, मोटा भागना कोशो आवा शब्दो 'ख' मां ज बतावे छे. आ संकलित कोशमां आवा शब्दो 'ख'मां लई लीधा छे, सिवाय के 'ष' उच्चारण ज ज्यां अभिप्रेत होय. आ संकलित कोशमां 'ख' थी आरंभाता शब्दो मूळ ग्रंथमां शोधती वखते आ स्थिति लक्षमा राखवानी रहेशे.
'व'ने स्थाने 'ब' के 'ब'ने स्थाने 'व' मूकवाथी शब्द वधारे स्पष्ट थतो होय तो अहीं एवं कर्यु छे, मूळ शब्दनी बाजुमां सुधारेलो शब्द मूक्यो छे ने सुधारेलो शब्द एना वर्णक्रममां मूकी प्रतिनिर्देश कर्यो छे. जेमके,
अबंझ [अवंझ अवंझ जुओ अबंझ 'ज'ने स्थाने 'य' लखायो होय त्यां पण आबु कयुं छे. जेमके, जमिवउं जुओ यमिवउं जसउ जुओ यसउ
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