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मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश
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छेए/छोहलउ
छेए मदमो. छये
विक्ररा. छेडो, अंत (सं.छेद+ड) छेक अभिऊ. दशरक(१). नरका. प्रेमाका. छेहल्यो आनंस्त. छेल्लो
छेडो, अंत; अखाका. चित्तसं. अंत, छेहा विमप्र. दगो, [त्याग]
छेडो; साव, [जराय] [सं.छेद+क] छेहि उक्तिर. छेडे, अंते छेकडि उक्तिर. ["छेकवानुं साधन के *छिद्र छेहिलं उक्तिर. उपबा. छेल्लु
पाडवानुं साधन] (*सं.छिद्रकरी) छेहु नेमिछं. छेह, दगो छेकि आरारा. छेक सुधी, पुष्कळ, पूरेपूरुं छेहे मदमो. छ छेड नरका. छेडती
छोई चतुचा. स्पर्शी छेदि ०षडाबा. छेडो, हद
छोकलडां प्रेमाका. छोगां, वस्त्रना टुकडा, छेबकै जिनरा. [छिद्र वाटे], छुपाईने [अंगूछा] छेय प्राचीसं. अंत, छेडो सिं.छेद] छोछ प्रेमाका. अशुद्धि, अपवित्रता छेल अखाका. चतुचा. पंचवा. रसिक, चतुर छोडूं सिंहा(शा). ओर्छ, चंद्रवा. हलकुं छेवष्टि जिनरा. छेवट्टा संस्थान, पाटा, प्रेमाका. *नमालु, असहाय, एकलुं (सं.
खीली वगेरे विना हाडकां अरसपरस तुच्छ, प्रा.छुच्छ) .एम ज वळगेला होय तेवो शरीरबंध] छोड-भलाई दशस्कं(१). प्रेमाका. [जै.] [सं.छेद+पट्ट]
छोडाववानी भलाई, एनो जश छेवेट (लीधा छे वेट) *प्रेमाका. [वींटी छोति उक्तिर. छोत, अस्पृश्यनो स्पर्श, लीधा छे]
स्पर्शदोष, मलिनता दि.छुत्ति] छेह आराम. छेद, भंग; अंबरा. षष्टिप्र. छोबन प्राचीका. छोबंध, छोवाळां (सं.
खोट, [हानि]; अभिऊ. आरारा. सुधा+बद्ध) ऋषिरा. उपबा. कादं(शा). कामा(शा). छोयो * नरका. स्पर्यो गुर्जरा. दशस्कं(१). प्राचीसं. विमप्र. छोवरावियां प्रेमाका. चूनाथी धोळाव्यां वीसरा. सिंहा(शा). षडाबा. छेडो; अंत; छोवाय प्रेमाका. अभडाय, अपवित्र थाय उषाह. कपडानो छेडो, आरारा. उषाह. छोह प्राचीसं. क्षोभ, [रोष]; अभिऊ. क्षोभ, तेरका. नलरा. नलाख्या. .प्रेमाका. [आघात, दुःख] हम्मीप्र. प्रक्षोभ, हरिख्या. विश्वासभंग, दगो, छोडी देवू शूरातन ते, त्याग; हरिख्या. घा, दुःख (सं.छेद) छोह उक्तिर. षडाबा. षष्टिप्र. चूनानी छो छेह शृंगाम. [धूळ] [रा.]
(सं.सुधा) छेहडइ आनंस्त. उपबा. छेडे, अंते छोहरी उषाह. छोकरी, छोरी दि.] छेहडउ प्रद्युचु. वस्त्रनो छेडो; आरारा. छोहलउ [? सोहलउ] प्राचीसं. उत्सव
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