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एटलांबधां परिचित छे के एमां सांप्रदायिकता भासती नथी. जैनधर्मीओए पण एमांगें ... केटलुक स्वीकारी लीधुं छे. त्यारे जैन धर्मनां तत्त्वो एटलां अन्यपरिचित नथी. नवकारमंत्रनो महिमा, नवपदपूजा, दानमहिमा, कर्मवाद, दीक्षा वगेरेमां सांप्रदायिकता छे, तो अवतारवाद, अद्वैतवाद, यज्ञयागादि कर्मो, कृष्ण-शिव-शक्तिभक्ति, वर्णाश्रमधर्म वगेरेमां सांप्रदायिकता नथी एम केम-कहेवाय? शामळनी कौतुकरसप्रधान लोकवार्ताओमां पण आवी रेखाओ तो जडवानी. हिंदु संस्कार बहुमती संस्कार छे, एनाथी अलिप्त बीजा प्रजावर्गो भाग्ये ज रही शके. त्यारे जैन, मुस्लिम, ख्रिस्ती वगेरे लघुमती संस्कार छे. ए अलग पडी जवाना अने तेथी एमां सांप्रदायिकता सहेजे प्रतीत थवानी. सांप्रदायिकतानुं ओर्छवत्तुं भारण ए जुदी चीज छे अने सांप्रदायिकताने वटी जती बौद्धिक प्रतिभा अने काव्यशक्ति प्रवर्ते ए पण जुदी बाबत छे. एथी कृतिमां धार्मिक-सांप्रदायिक संस्कारनी भूमिका होवानुं मिथ्या थतुं नथी.
मध्यकाळमां प्रजाजीवन धर्मसंप्रदायबद्ध हतुं एनो अर्थ एवो थतो नथी के ए समयना लोको, मुनशी कहे छे तेम, परलोकपरायण थई गया हता, भक्तिवैराग्यमय जीवन जीवता हता ने ऐहिक जीवनरसो परत्वे अनासक्त हता. प्रजाजीवनना केन्द्रमां धर्म हतो, पण एनी आजुबाजु संसार - एना सर्व रंगो साथे - विस्तरेलो हतो. मध्यकाळमां ज्ञानभक्तिवैराग्यनां गाणां ज मळे छे एवं थोडुं छे ? आख्यानो, लोकवार्ताओ, रासाओ आदिनुं साहित्य पण विपुल प्रमाणमां मळे छे, जेमा ऐहिक जीवनना घणा रसो व्यक्त थया छे, भले एमां ओछोवत्तो धार्मिक संदर्भ रहेलो होय. अने भक्तिसाहित्य - खास करीने कृष्णभक्तिनुं साहित्य लौकिक मानवभावो - सहज मानवसंवेदनोथी नथी धबकतुं शुं ? मध्यकालीन साहित्य जीवनरसथी अनभिज्ञ प्रजानुं सर्जन नथी ज, भले एना जीवनादर्शो जुदा होय.
अने आपणुं जीवन पाश्चात्य संस्कृतिने रंगे | एटलुंबधुं रंगाई गयुं छे के आपणे मध्यकालीन साहित्य साथे कशो अनुबंध न अनुभवी शकीए ? आकाशवाणी वहेली सवारमा ज (अने पछीथी पण) भजनसंगीत रेलावे छे, लोकसाहित्यना डायराओमां लोको ऊमटे छे अने गुजराती फिल्म उद्योग मध्यकालीन कथावार्ता पर ज नभे छे एनुं शुं ? समाजनो एक मोटो वर्ग कया वातावरणमां श्वसे छे एनो ए संकेत नथी शुं ? हिंदी फिल्मोमां निरुपातुं परंपरागत कुटुंबजीवन अने एनी समस्याओ लोकोने पोतीकां नथी लागतां ? वस्तुतः आपणुं आधुनिक जीवन पाश्चात्य संस्कारो अने परंपरागत भारतीय संस्कारोना अजब मिश्रण समुं छे. संयोगोए आपणा कुटुंबने विभक्त कर्यु छ, पण विच्छिन्न कर्यु नथी. हजु आपणे सामाजिक प्रसंगोथी, कर्तव्योथी, अपेक्षाओथी, भावनाओथी बंधायेला रह्या छीए अने सांसारिक-सामाजिक-कौटुंबिक सुखदुःखोना
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