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भवसमुद्र दुस्तर तभी तक है, जब तक महाविस्तृत मोह दूर्जय है, और लोभ भी तभी तक अति विषम है, जब तक आत्म-बोध नहीं हुआ है । - आत्मावबोधकुलक (७)
जत्थम्मि आयनाणं, नाणं विरयाण सिद्ध सुहयंतं । जहाँ आत्मज्ञान है, वहाँ निश्चय ज्ञान है और सिद्धिसुख को देनेवाला यही ज्ञान है । - आत्मावबोधकुलक ( ३६ )
अवरो न निंदिअव्वो, पसंसिअव्वो कया वि नहु अप्पा | समभावो कायव्वो, बोहस्स रहस्समिणमेव ||
पर की निन्दा न करना, स्वयं की प्रशंसा न करना और समभाव रखना -यही आत्म बोध का रहस्य है ।
- आत्मावबोधकुलक ( ४० )
आत्म-विजय
अप्पा चैव दमेयव्वो, अप्पाहु खलु दुद्दमो | अप्पा दन्तो सुही होइ, अस्सि लोए परत्थ य ॥ प्रत्येक को स्वयं पर नियन्त्रण रखना चाहिए । अपनी आत्मा का दमन करना चाहिए | स्वयं पर स्वयं का नियन्त्रण रखना कठिन अवश्य है किन्तु. दुर्लभ नहीं । स्वयं पर नियन्त्रण रखनेवाला आत्म-विजेता ही इसलोक एवं परलोक में सुखी होता है ।
करूँ । नहीं है ।
अच्छा यही है कि मैं संयम और तप के द्वारा अपनी आत्मा का दमन दूसरे लोग बन्धन और वध के द्वारा मेरा दमन करे -- यह अच्छा
- उत्तराध्ययन ( १/१६ )
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- उत्तराध्ययन ( १ / १५ )
वरं मे अप्पा दन्तो, संजमेण तवेण य । माहं परेहि दम्मन्तो, बन्धणेहि वहेहि य ॥
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