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मिथ्यात्व के कारण विपरीत श्रद्धानी बने हुए इस जीव में तप, ज्ञान, चारित्र और वीर्य-ये गुण नष्ट होते हैं और मिथ्यात्वरहित तप आदि मुक्ति के उपाय हैं।
-भगवती-आराधना (७३४)
विद्यार्जन सच्चं सया महादिट्ठी, एयं पुणो वि सिक्खिसु
मुद्ध अत्थक्कविन्नाणं ॥ वाणी की सत्यता और निर्मल दृष्टि-ये कलाएँ अवसर न रहने पर भी पुनः सीखो।
-वज्जालग्ग (५५६/१)
विनय जत्थेव धम्मायरियं पासेज्जा,
तत्थेव वंदिज्जा नमंसिज्जा । धर्माचार्य का जहाँ कहीं पर दर्शन करें, वहीं पर उन्हें वन्दना और नमस्कार करना चाहिए ।
–राजप्रश्नीय (४/७६) विणओ मोक्खहारं विणयादो संजमो तवो णाणं । णिगएणा राहिज्जइ आयरिओ सव्व संघो य ।। विनय मोक्ष का द्वार है, विनय से संयम, तप और ज्ञान होता है और विनय से आचार्य तथा सर्व संघ की सेवा होती है ।
-भगवती-आराधना ( १२६ ) रायणिएसु विणयं पउंजे । बड़ों के साथ विनयपूर्ण व्यवहार करना चाहिए ।
-दशवैकालिक (८/४१) २१० ]
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