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अरिहंतों को नमस्कार । सिद्धों को नमस्कार । आचार्यों को नमस्कार । उपाध्यायों को नमस्कार । विश्व में सर्व साधुओं को नमस्कार। ये पंच नमस्कार सर्व पापों के नाशक हैं तथा सर्व मंगलों में प्रथम मंगल रूप हैं ।
-आवश्यक सूत्र (१/२) अरिहंता मंगलं । सिद्धा मंगलं । साहू मंगलं ।
केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं । अरिहंत ( अर्हत ) मंगल हैं। सिद्ध मंगल हैं । साधु मंगल हैं। केवलिप्रणीत धर्म मंगल है।
-आवश्यक सूत्र (४/१)
सत्यादिमज्झ अवसाणएसु जिणतोत्त मंगलुच्चारो।
णासइ णिस्सेसाई विग्धाइ रवि व्व तिमिराइ । शास्त्र के आदि, मध्य और अंत में किया गया जिन-स्तोत्र रूप मंगल का उच्चारण सम्पूर्ण विघ्नों को उसी प्रकार नष्ट कर देता है, जिस प्रकार सूर्य अंधकार को।
-तिलोयपण्णत्ति ( श३१) मंगलफलं देहितो कय अब्भुदयणिस्सेयससुहा इत्तं । मंगलादिक से प्राप्त होनेवाले अभ्युदय और मोक्ष सुख के आधीन मंगल का फल है।
-घवला ( १/१, १, १/३६/१० ) मंगलमरिहंता-सिद्धा-साहू-सुरं च धम्मो ।
अरिहंत, सिद्ध, साधु, श्रुत (शान ) और धर्म ये सब सभी के लिए मंगल रूप हैं।
-वंदित्तु सूत्र (४८) मंगलं हि कीरदे पारद्धकज विग्घयर कम्मविणासणठें।
प्रारम्भ किये हुए कार्य में विघ्नकारक कर्मों के विनाशार्थ मंगल किया जाता है।
. -कषाय-पाहुड़ ( १/१)
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