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इड्ढि व सक्कारण-पूयणं च, चए ठियप्पा आणि हे जे स भिक्खू ।
जो ऋद्धि-सत्कार, पूजा-प्रतिष्ठा के मोह से रहित है और स्थितात्मा एवं निस्पृह है, वही भिक्षु है ।
__-दशवैकालिक (१०/१७) न जाइमत्ते, न य रूवमत्ते न लाभमत्ते न सुरण मत्ते । मयाणि सव्वाणि विवजइत्ता, धम्मज्झाणरए जे स भिक्खू ।
जो जाति, रूप, लाभ और पांडित्य के अभिमानों का परित्याग कर केवल धर्म-ध्यान में रत रहता है, वही भिक्षु है ।
-दशवैकालिक (१०/१६)
भूख किं किं न कयं को न पुच्छियो, कह कह न नामिअं सीसं। दुब्भरउअरस्स कए कि न,
कयं किं न कायव्वं ॥ __इस पापी पेट के पूरा करने के लिए क्या-क्या नहीं किया ? किसको नहीं पूछा? कहाँ-कहाँ मस्तक नहीं नमाया ? और क्या नहीं किया ? और क्या नहीं करूंगा? अर्थात् सब कुछ किया और करना भी पड़ेगा।
-कामघट-कथानक (५३) जीवंति खग्गछिन्ना, अहिमुहपडिया वि केवि जीवंति । जीवंति जलहिपडिआ, खुहाछिन्ना न जीवंति ॥
तलवार से काटे गए प्राणी प्रायः जी सकते हैं, सर्प के मुँह में पड़े हुए भी कोई जीते हैं और कोई समुद्र में गिरे हुए प्राणी भी जी जाते हैं मगर भूख रूपी महाशस्त्र से काटे हुए प्राणी कभी जिंदे नहीं रह सकते।।
-कामघट-कथानक (५५)
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