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लोगों के दोष-मात्र को ग्रहण मत करो, उनके विरले गुणों को भी प्रकाशित करो। क्योंकि लोक में घोघों की प्रचुरतावाला समुद्र भी रत्नों की खान/रत्नाकर कहा जाता है ।
---कुवलयमाला
गुणवती किं पुण गुणसहिदाओ, इत्थीओ अस्थि वित्थडजसाओ। णरलोग देवदाओ, देवेहिं वि वंदणिजाओ।
लोक में ऐसी भी गुणसम्पन्न स्त्रियाँ हैं, जिनका यश सर्वत्र व्याप्त है। वे मनुष्य-लोक की देवता है और देवों के द्वारा वन्दनीय है ।
-भगवती-आराधना (६६५)
गुणानुराग उत्तम गुणाणुराओ-निवसइ हिययंमि जस्स पुरिसस्स। आतित्थयरपयाओ, न दुल्लहा तस्स रिद्धीओ॥ जिस पुरुष के हृदय में उत्तम गुणवान व्यक्तियों के प्रति अनुराग है, उसे परमपद तक की ऋद्धियाँ भी दुर्लभ नहीं है ।
-गुणानुरागकुलक (२) जइवि चरसि तवं विउलं, पढसि सुयं करिसि विविहकट्ठाई। न धरसि गुणाणुरायं, परेसु ता निष्फलं सयलं ॥
यद्यपि तुम भारी तप करते हो, शास्त्रों का अध्ययन करते हो और अनेक कष्टों को सहन करते हो किन्तु दूसरों के गुणों के प्रति अनुराग नहीं है तो ये सब निष्फल हैं।
-गुणानुरागकुलक (५)
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