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वृत्-वृत्ति
शब्दरत्नमहोदधिः।
१९२३ व्यावर्तयितुमीश्वरः-रघु० १५।७। सम्+वृत्=संवृत्तः- वृत्तपुष्प पुं. (वृत्तं वर्तुलं पुष्पं यस्य) बर्नु, उ, ये थj, जनj -ते यथोक्ता संवृत्तां-पञ्च० १। स.२४.31, शिरीष. (दिवा. आ. स सेट्-वृत्यते) विCHU२ ४२६॥ ५२६ | वृत्तफल न. (वृत्तं वर्तुलं फलं यस्य) भरी. (पुं.) 5२j, १२.
उम, मो२. वृत् त्रि. (वृत्+भूते क्विप्) थये...
वृत्तफला स्त्री. (वृत्तं वर्तुलं फलं यस्याः ) aausst, वृत् त्रि. (वृ+कर्मणि क्त) १२८, स्वी.३स, यादव,
मानसी, घाउमी, जो२४ी.. नमिल. (न. वृ+भावे क्त) वतु, ति. वृत्तमल्लिका स्त्री. (वृत्ता मल्लिकेव) धागो Au331, वृतपत्रा स्री. (वृतानि पत्राणि अस्याः) में dil.
એક લતા. al.
वृत्तवत्, वृत्तसंपन्न, वृत्तस्थ त्रि. (वृत्त+अस्त्यर्थे वत्) वृति स्री. (वृ+क्तिन्) ५२-५२६ ४२, स्वी5t२j,
यरित्रवाणु-सहवर्तनवा. (वृत्तेन संपन्नः) नीम, योxj, 43, भाग ते.
सवतनवाणु. (वृत्त+स्था+क) सहवर्तनवाणु, वृतिकर त्रि. (वृतिं करोति, कृ+अच्) 413 5२८२,
यारित्र्यवान, सायानिष्ठ- गुरुपूजा घृणा शौचं धेरनार, स्व.5॥२॥२, नीमना२.
सत्यमिन्द्रिनिग्रहः । प्रवर्तनं हितानां च तत् सर्वं । वृतिङ्कर पुं. (वृतिं करोति, कृ+खच्) मे. आ3.
वृतमुच्यते-गोपालपञ्चाननकृतस्मृतिसंग्रहः । वृत्त न. (वृत्+भावे क्त) सवतन, गुरुपू-६या
वृत्तबीज पुं. (वृत्तं बीजं यस्य) लीन 53. સત્ય-ઇન્દ્રિયનિગ્રહ વગેરે ચરિત્ર, શિખરિણી વગેરે
वृत्तवीजा स्त्री. (वृत्तं वीजं यस्याः ७.६, जास. रीन. मात्रामी- गन (न. वृत्+कर्तरि
) तुवे२.
वृत्तसादिन् त्रि. (वृत्त+सद्+घिनुण्) यारित्र्यहन, माया२ क्त) वृद्धि. गो.२ तर, मावि- सतां
अष्ट, नीय. वृत्तमनुष्ठितामनु० १०।१२७। गोपति, वृत्तांत, 30- अनेनारण्यकवृत्तान्तेन पर्याकुलाः स्मः
वृत्ता स्त्री. (वृत्+क्त+टाप्) २७1, प्रियंगुशBिell, शाकुं०१। -को नु खलु वृत्तान्ता-विक्रम० ४।
એક વેલ, પીત પાપડો, વનસ્પતિ ઝિઝિરિષ્ટ. छतिहास.. (त्रि. वृत्+क्त) वर्तुस, थयेस, ४८,
वृत्ताध्ययनर्द्धि स्त्री. (वृत्ताध्ययनयोः ऋद्धि) यारित्र ગોળાકારવાળું, મજબૂત, આવરણ કરેલ, ઢાંકેલ, મરણ
भने विद्यार्नु ते४, बहाते४. पामेल, उत्पन थयेस, अध्यात, अभ्यास व सह वृत्तान्त पुं. (वृत्तो जातोऽन्तो निर्णयो यस्मात) संवाद ४३८, 643स, नीर. (पुं. वृत्+क्त) आयलो.
संदेश, २- सर्वमाजन्म वृत्तान्तं विस्तरादिदमब्रवीत्वृत्तखण्ड न. (वृत्तस्य खण्डम्) वर्तुलना 331.
कथासरित्० २।२९। प्रतिया , सभA५, प्रस्ताव, वृत्तगन्धि न. (वृत्तस्य पद्यभेदस्य इव गन्धो लेशोऽत्र प्रसंग, तशत, आन्त, माव.. इत्) मे तन , indi पछठेवी सानह । वृत्ति स्त्री. (वृत्+क्तिन्) धंधी- वार्धके मुनिवृत्तीनाम्मा. - भवत्युत्कलिकाप्रायं समासाढ्यं द्दढाक्षरम् ! रघु० १।८।२४॥२- शतैस्तमक्ष्णामनिमेषवृत्तिभिःवृत्तैरेकदेशसम्बन्धाद् वृत्तगन्धि पुनः स्मृतम्
रघु० ३।४३। भावि., वतन- कुरु प्रियसखीवृत्ति छन्दोमञ्जर्याम् ६ स्तबके ।
सपत्नीजने-शाकुं. ४।१८। स्थिति, विव२९५- सद्वृत्तिः वृत्तज्ञ त्रि. (वृत्तं जानाति, ज्ञा+क) वृत्तांत. ना२, सन्निबन्धना-शिशु० २।११२ । न12२यन मेह-शि.51ચરિત્ર જાણનાર, ઇતિહાસ જાણનાર.
सापती-भारती-मा२मटी- 'शृङ्गारे कौशिकी वीरे वृत्ततण्डुल पुं. (वृत्तः वर्तुलस्तण्डुलोऽस्य) : dru सात्वत्यारभटी पुनः । रसे रौद्रे च बीभत्से वृत्तिः योमा.
सर्वत्र भारती । चतस्रो वृत्तयो ह्येताः सर्वनाट्यस्य वृत्तनिष्पाविका स्त्री. (वृत्ता वर्तुला निष्पाविका) . मातृका ।' सा० द० ६ परि० । वहान्तमा अडेस. नेयी ..
અંતઃકરણ વગેરેની વૃત્તિ, શબ્દની શક્તિ તે અભિધા, वृत्तपर्णी स्त्री. (वृत्तं वतुलं पर्णं यस्याः ङीप्) मे. લક્ષણા અને વ્યંજના, જેની દ્વારા અર્થની સંજ્ઞા, સંકેત तनी वनस्पति-41.
અગર વ્યંજના કરવામાં આવે
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