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१९१२ शब्दरत्नमहोदधिः।
[विषायुधी-विष्णु विषायुधी स्त्री. (विषायुध+स्त्रियां जाति. ङीष्) २५५. | विष्किर पं. स्त्री. (विकिरति, वि+कृ+क सुट् च) विषाराति (पुं. विषस्य अरातिः) uो धतू२. ततनी तनु, पक्षी- छायापस्किरमाणविष्किर___ (त्रि. विषस्य अरातिः) २नो शत्रु.
मुखव्याकृष्टकीट-त्वचः -उत्तर० २।९। विषारि पुं. (विषस्य अरिः) धृत:२४y, वृक्ष. (त्रि. विषस्य | विष्किरी स्त्री. (विष्किर+स्त्रियां जाति. ङीष्) तत२ ____ अरिः) २नी. शत्रु.
___तनी पक्षि.. विषालु त्रि. (विष+अस्त्यर्थे आलुच्) ॐ२, रवाj. / विष्ट त्रि. (विश्+कर्मणि क्त) प्रवेश. ४३.८८, पैसे... विषास्या स्त्री. (विषं आस्ये यस्याः) स॥५९l, मीसामु. विष्टप न. (विश्+कपन्+तुट च) ४ात भुवन. विषु अव्य. (विष्+कु) भने ५२नु, समानता. विष्टब्ध त्रि. (वि+स्तम्भ+क्त) आवेj, रोयेj, विषुप न. (विषु+पा+क) २. स्थग लिंदुओ या सूर्य.
બરાબર જમાવવું, ટેકો આપેલો, લકવાનો રોગી, વિષુવૃત્ત રેખાને પાર કરે છે.
ગતિ રહિત. विषुव, विषुववत् न. (विषु दिनरात्र्यो साम्य वाति, विष्टम्भ पं. (वि+स्तम्भ+घज) .391, 12514, वा+क/विषुवं साम्यं दिवानिशोऽस्यास्ति मतुप् मस्य
આફરાનો રોગ, મૂકવું, બરાબર જમાવવું, મૂત્રાવરોધ, वः) समान. हिव.स. तथा स२४ी. त्रिवाणो १m,
मलावरोध, Asal. भेषराशि अथवा तुदाशिनु प्रथम बिंदुभ सूथ विष्टम्भिन त्रि. (वि+स्तम्भ+णिनि) रोवuj. શરદકાળ અગર વસંતકાલીન વિષુવમાં પ્રવેશ કરે
21यतवाणु, भाइराना रोगाणु, भूना२. ते, अयनांश भएस.
विष्टर पुं. (वि+स्तृ+घञ् षत्वम्) हमन, भासन, विषूचिका स्त्री. (वि+सूच्+ण्वुल+टाप् षत्वम् इत्वम्)
हमनी भूठी, वृक्ष, ६२४ मासन... અજીર્ણ રોગ.
विष्टरश्रवस् पुं. (विष्टरः कुशमुष्टिरिव श्रवसी कणी विषौषधी स्त्री. (विषस्य औषधी) नामहन्ती. वनस्पति..
यस्य) वि. विष्क (चु. आ. स. सेट-विष्कयते) हिंसा ४२वी.. विष्कन्द पुं. (वि+स्कन्द्+अच्, षत्वम्) व२विजे२.
विष्टरस्थ त्रि. (विष्टरे तिष्ठति, स्था+क) शासन
6५२ २३नार, भासनेस. थQ8j. विष्कम्भ, विष्कम्भक पुं. (वि+स्कम्भ+ अच् /
विष्टरुहा स्त्री. (विष्टा भूमौ प्रविष्टा सती रोहति, विष्कम्भ+संज्ञायां कन्) सूर्य तथा यन्द्रना योगथा
___ रुह+क+टाप्) मे तन 34.. ઉત્પન્ન થયેલા યોગો પૈકી પહેલો યોગ, વિસ્તાર,
विष्टार पुं. (वि+स्तृ+घञ् षत्वम्) तिन्नो मेह, પ્રતિબિંબ, રૂપક, નાટકનું એક અંગ
मे छन्६. "वृत्तवर्तिष्यमाणानां कथांशानां निदर्शकः संक्षिप्तार्थस्तु / विष्टि ना. (विष्+क्तिन् क्तिच् वा) वह, पसीनाना विस्कम्भ आदाबकस्य दर्शितः ।। -मध्येन
मदूरी, ५२॥२, म, १२स, ज्योतिष प्रसिद्धि विष्टि, मध्यमाभ्यां वा पात्राभ्यां संप्रयोजितः । शुद्धः स्यात्
भोsaj, ३४. (पुं. विष्+क्तिच्) सेवड़, या४२. स तु संकीर्णो नीचमध्यमकल्पितः-सा० द० ३०८। ।
___ (त्रि.) 14. १२२, वठियो, पैसा विनानी भठू२. યોગીઓનો એક બન્ધ, વૃક્ષ, રોકનાર, અટકાવનાર,
विष्ठल न. (विप्रकृष्टं स्थलम्) दूरनु, स्थल... ખીલો વગેરે, એક પર્વત.
विष्ठा स्री. (विविधं तिष्ठति, स्था+क षत्वम् टाप्) विष्कम्भित त्रि. (विष्कम्भ+ इतच्) नाधायुत, शायद. पेट, पटन. मण, न२४. विष्कम्भिन् पुं. (विष्कम्भ+इनि) ६२वानी sirl, विष्णु, विश्वक्सेन पुं. (विष्-व्यापने+नुक्/विषुची સાંકળ અથવા સ્ટોપર.
सेना यस्य) विष्णु- साम्यमाप कमलासखविष्वक्सेनविष्कल पुं. (विबं विष्टां कलयति, कलि+ अण् पृषो.) सेवितयुगान्तपयोधेः- शिशु० १०५५। विश्वक्सेनः ગામમાં રહેતું ભૂંડ.
स्वतनुमविशत् सर्वलोकप्रतिष्ठाम् -रघु० १५।१०३। विष्कली स्त्री. (विष्कल+स्त्रियां जाति. ष्) मम પરમેશ્વર, અગ્નિ વસુદેવ, ધર્મશાસ્ત્રકાર, એક મુનિ, રહેતી ભૂંડણ.
श्रा नक्षत्र, यित्र वनस्पति. (त्रि. विष्
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