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विष्णुकुमार मुनिको कथा हाल फैल गया । सब शहर उनके देखनेको आया । राजा भी आये । सबने एक स्वरसे उन्हें धिक्कारा । है भी तो ठीक, जो पापी लोग निरापराधोंको कष्ट पहुंचाते हैं वे इस लोकमें भी घोर दुःख उठाते हैं और परलोकमें नरकोंके असह्य दुःख सहते हैं । राजा ने उन्हें बहुत धिक्कार कर कहापापियों, जब तुमने मेरे सामने इन निर्दोष और संसारमात्रका उपकार करनेवाले मुनियोंकी निन्दा की थी, तब मैं तुम्हारे विश्वासपर निर्भर रहकर यह समझा था कि संभव है मुनि लोग ऐसे ही हों, पर आज मुझे तुम्हारी नीचताका ज्ञान हुआ, तुम्हारे पापी हृदयका पता लगा। तुम इन्हीं निर्दोष साधुओंकी हत्या करनेको आये थे न ? पापियों, तुम्हारा मुख देखना भी महापाप है। तुम्हें तुम्हारे इस घोर कर्मका उपयुक्त दण्ड तो यही देना चाहिये था कि जैसा तुम करना चाहते थे, वही तुम्हारे लिये किया जाता। पर पापियो, तुम ब्राह्मण कुलमें उत्पन्न हुए हो और तुम्हारी कितनी ही पीढ़ियाँ मेरे यहाँ मंत्रीपदपर प्रतिष्ठा पा चुकी हैं, इसलिये उसके लिहाजसे तुम्हें अभय देकर अपने नौकरोंको आज्ञा करता हूँ कि वे तुम्हें गधोंपर बैठाकर मेरे देशको सीमासे बाहर कर दें। राजाकी आज्ञाका उसी समय पालन हआ। चारों मन्त्री देशसे निकाल दिये गये। सच है-पापियोंकी ऐसी दशा होना उचित ही है।
धर्मके ऐसे प्रभावको देखकर लोगोंके आनन्दका ठिकाना न रहा । वे अपने हृदयमें बढ़ते हुए हर्षके वेगको रोकने में समर्थ नहीं हुए। उन्होंने जयध्वनिके मारे आकाशपातालको एक कर दिया। मुनिसंघका उपद्रव टला । सबके चित्त स्थिर हुए। अकम्पनाचार्य भी उज्जयिनोसे विहार कर गये।
हस्तिनापुर नामका एक शहर है। उसके राजा हैं महापद्म । उनकी रानीका नाम लक्ष्मीमती था। उसके पद्म और विष्णु नामके दो पुत्र . हुए। ____ एक दिन राजा संसारकी दशापर विचार कर रहे थे। उसकी अनित्यता और निस्सारता देखकर उन्हें बहुत वैराग्य हुआ ! उन्हें संसार दुःखमय दिखने लगा । वे उसी समय अपने बड़े पुत्र पद्मको राज्य देकर अपने छोटे पुत्र विष्णुकुमारके साथ वनमें चले गये और श्रुतसागर मुनिके पास पहुंचकर दोनों पिता-पुत्रने दीक्षा ग्रहण कर ली । विष्णुकुमार बालपनेसे हो संसारमे विरक्त थे, इसलिये पिताके रोकनेपर भी वे दाक्षित हो गये। विष्णुकुमार मुनि साधु बनकर खूब तपश्चर्या करने लगे। कुछ दिनों बाद तपश्चर्याके प्रभावसे उन्हें विक्रियाऋद्धि प्राप्त हो गई।
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